प्रदूषण

संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने चेताया पर्यावरण और मानवाधिकारों को खतरे में डाल रही हैं प्लास्टिक प्रदूषण की 'उफनती लहर'

हाल के दशकों में प्लास्टिक का उत्पादन तेजी से बढ़ा है और आज दुनिया में हर साल औसतन 40 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है

Lalit Maurya

संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने बढ़ते प्लास्टिक प्रदूषण पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इसकी 'उफनती लहर', पर्यावरण और मानवाधिकारों को खतरे में डाल रही हैं। ऐसे में मानवाधिकार मामलों के विशेषज्ञों ने इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए जल्द से जल्द कारगर उपाय अपनाने का आग्रह किया है।   

इसके बढ़ते खतरे के बारे में उनका कहना है कि, "हाल के दशकों में प्लास्टिक का उत्पादन तेजी से बढ़ा है और आज दुनिया में हर साल औसतन 40 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा हो रहा है।"

उनका यह बयान विश्व पर्यावरण दिवस से ठीक पहले जारी किया गया है। जब प्लास्टिक प्रदूषण पर अन्तरराष्ट्रीय सन्धि के लिए पेरिस में वार्ता चल रही है। गौरतलब है कि प्लास्टिक प्रदूषण पर वार्ता के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतर सरकारी वार्ता समिति (आईएनसी-2) की दूसरी बैठक पेरिस में शुरू हो चुकी है। यह बैठक 29 मई से 2 जून, 2023 के बीच संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के मुख्यालय में आयोजित की गई है। इस वार्ता के आज समाप्त होने की उम्मीद है, जबकि प्रतिनिधियों ने सहमति के लिए 2024 की समय सीमा तय की है।

ऐसे में मानवाधिकारों और पर्यावरण मामलों पर संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र विशेषज्ञ डेविड बॉयड और विषाक्त पदार्थों एवं मानवाधिकारों से जुड़े यूएन के विशेष रिपोर्टर मार्कोस ओरेलाना ने देशों और अन्य हितधारकों से मानव अधिकारों को अंतरराष्ट्रीय संधि के केंद्र में रखने का आग्रह किया है।

इसके बढ़ते खतरे को लेकर उनका कहना है कि बढ़ता प्लास्टिक हमारे पर्यावरण को दृष्टि कर रहा है और अपने जीवन चक्र में मानवाधिकारों पर अलग-अलग तरीके से दुष्प्रभाव डाल रहा है। उनके मुताबिक हम एक अंत्यंत जहरीली लहर के बीच हैं। प्लास्टिक का जीवन चक्र असंख्य तरीकों से स्वस्थ पर्यावरण, जीवन, भोजन, जल और आवास पर प्रभाव डाल रहा है, जिन्हें पाना हर इंसान का मानवाधिकार है।

उन्होंने बताया कि प्लास्टिक जो करीब-करीब पूरी तरह जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है। उसके उत्पादन के दौरान उनके हानिकारक पदार्थ निकलते हैं। इसमें ऐसे जहरीले केमिकल्स होते हैं जो इंसानी स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरा हैं। वहीं इनके उपयोग के बाद फेंका गया कचरा हमारे ग्रह को दूषित कर रहा है। अनुमान है कि इसमें सिंगल यूज प्लास्टिक भी शामिल है। इस सिंगल यूज प्लास्टिक के 85 फीसदी हिस्से को या तो लैंडफिल में डंप कर दिया जाता है या फिर ऐसे ही खुले वातावरण में फेंक दिया जाता है।

विशेषज्ञों ने सचेत किया है कि इसके भ्रामक समाधान, जैसे कि विषाक्त पदार्थों से भरे प्लास्टिक का जलाना या उसे रीसायकल करना इसके खतरे को और बढ़ा रहा है। आज प्लास्टिक और उसके सूक्ष्म कण जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक के रूप में जाना जाता है वो हमारे पानी, भोजन और यहां तक की जिस हवा में हम सांस लेते हैं उस तक में मौजूद हैं।

इतना ही नहीं यह प्लास्टिक आज धरती के हर कोने में पहुंच चुका है जहां इंसानों के भी सबूत नहीं हैं। इसके साथ ही यह हमारे फेफड़ों से लेकर रक्त तक में घुल चुका है। एक रिसर्च से पता चला है कि प्लास्टिक में मौजूद हानिकारक केमिकल्स न केवल मौजूदा बल्कि अगली दो पीढ़ियों में भी मेटाबॉलिक डिजीज का कारण बन सकते हैं। 

हाशिए पर रह रहे लोगों को गंभीर रूप से प्रभावित कर रही है यह समस्या

उन्होंने ध्यान दिलाया है कि प्लास्टिक प्रदूषण की इस समस्या से पहले से ही हाशिए पर रह रहे समुदाय सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, क्योंकि उन्हें प्लास्टिक प्रदूषण और इसके कचरे के साए में रहना पड़ता है। ये वो समुदाय हैं, जो प्लास्टिक प्रदूषण के सबसे ज्यादा सम्पर्क में आने की वजह से पर्यावरण सम्बन्धी अन्याय का शिकार हैं।

यह समुदाय अक्सर पैट्रोलियम रिफाइनरी, स्टील प्लांट, कोयला आधारित बिजली संयत्रों, लैंडफिल के आसपास सहित ऐसे इलाकों में रहते हैं, जहां प्रदूषण एक बड़ी चुनौती है। उनका कहना है कि प्लास्टिक प्रदूषण ऐसा खतरा है जो जलवायु में आते बदलावों में भी योगदान कर रहा है, लेकिन अक्सर उसे नजरअंदाज कर दिया जाता है।

उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि महासागर में पाए जाने वाले प्लास्टिक के कण, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों को सोखने की क्षमता को सीमित कर देते हैं। एनवायर्नमेंटल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी, यूके द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट ‘कनेक्टिंग द डॉटस: प्लास्टिक पॉल्यूशन एंड द प्लैनेटरी इमरजेंसी’ से पता चला है कि 2050 तक महासागरों में प्लास्टिक की मात्रा मछलियों के कुल वजन से भी ज्यादा होगी।

वहीं संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) का अनुमान है कि जलीय पारिस्थितिकी तंत्रों में हर साल पहुंच रही प्लास्टिक कचरे की मात्रा 2040 तक बढ़कर हर साल 3.7 करोड़ टन तक पहुंच सकती है।

उनके मुताबिक यह चौंकाने वाला है कि कैसे दुनियाभर में पसरा प्लास्टिक मानव अधिकारों को अलग-अलग तरह से प्रभावित कर रहा है, जिसमें स्वस्थ वातावरण, स्वास्थ्य, भोजन, पानी और बेहतर जीवनस्तर का अधिकार शामिल है। देखा जाए तो यह देशों और व्यवसायों के मानवाधिकार से जुड़े विशिष्ट दायित्व हैं, जो प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई के संदर्भ में लागू होते हैं।

क्या है समाधान

उन्होंने ध्यान दिलाया कि पिछले दो वर्षों में मानवाधिकार परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा ऐतिहासिक प्रस्तावों को पारित करके स्वच्छ, स्वस्थ और शाश्वत पर्यावरण के मानव अधिकार को मान्यता दी है। इसमें सुरक्षित वातावरण भी शामिल है जहां लोग पढ़, खेल, काम कर सकते हैं और जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

ऐसे में प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या से निपटने के प्रयासों को प्रोत्साहित और निर्देशित किया जाना चाहिए। उनके मुताबिक प्लास्टिक के उत्पादन, उपयोग में कमी के साथ-साथ इसके हानिकारक प्रभावों और ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन को कम करने के लिए किए जा रहे प्रयासों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।

दोनों ही मानवाधिकार विशेषज्ञों ने प्लास्टिक प्रदूषण के बहाव का रुख मोड़ने के लिए अन्तरराष्ट्रीय सन्धि पर जारी वार्ता का स्वागत किया है। साथ ही 2024 के अंत तक इसे पूरा करने का आग्रह किया है।

गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन ने इस वार्ता के उद्घाटन सत्र में कहा था कि, "हम पेरिस में एकत्र हुए हैं क्योंकि वर्तमान में प्लास्टिक अर्थव्यवस्था व्यापक प्रदूषण पैदा कर रही है, जो पारिस्थितिक तंत्र, जलवायु और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही है।" उन्होंने पारदर्शिता के साथ प्लास्टिक के पूरे जीवन चक्र में कटौती करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि, "यह ऐसी समस्या है जिसे हम अपने तरीके से रिसाइकिल नहीं कर सकते हैं।"

उनके मुताबिक इससे पूरी तरह निजात पाने के लिए इसके इस्तेमाल में कमी के साथ इसके सम्पूर्ण जीवन-चक्र से जुड़े उपायों, पारदर्शिता और न्यायसंगत समाधानों पर ध्यान देना जरूरी है। वहीं संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने सरकारों और इससे जुड़े लोगों से प्लास्टिक प्रदूषण को मात देने के लिए मानवाधिकार-आधारित दृष्टिकोण को अपनाने की सिफारिश की है।