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प्रदूषण

भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं बिजली संयंत्रों से निकलने वाली कोयले की राख के जहरीले तत्व: अध्ययन

बिजली संयंत्र सक्रिय कार्बन या चूने को ग्रिप गैस में इंजेक्ट करते हैं, जो पारा और सल्फर उत्सर्जन को कैप्चर करता है, 1000 डिग्री फारेनहाइट पर, फ़्लू में आर्सेनिक और सेलेनियम जैसे विषाक्त पदार्थ गैस में बदल जाते हैं

Dayanidhi

कोयला जलाने से वायु प्रदूषण होता है जो जलवायु और मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। लेकिन बची हुई राख भी भारी नुकसानदायक हो सकती है।

ड्यूक एनर्जी ने लंबे समय तक कैरोलिनास के 36 बड़े तालाबों में कोयले की राख के तरल रूप को जमा किया। लेकिन जब भारी बारिश ने इस 2.7 करोड़ गैलन राख के तालाब को स्थानीय इलाकों में बहा दिया तो सब कुछ बदल गया।

इस घटना में राख में आर्सेनिक और सेलेनियम जैसे जहरीले तत्वों की मात्रा से जुड़े खतरों के बारे में चिंता जताई गई। हालांकि, इस बारे में बहुत कम जानकारी थी कि राख के पानी में ये खतरनाक पदार्थ कितनी मात्रा में मौजूद थे या वे कितनी आसानी से आसपास के वातावरण को दूषित कर सकते हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने बताया कि, भविष्य में होने वाले रिसाव की आशंका को देखते हुए, ड्यूक एनर्जी आने वाले वर्षों में अपने अधिकांश कोयले की राख के तालाबों को डीकमीशन करने के लिए 1.1 बिलियन डॉलर का भुगतान करने के लिए सहमत हो गई हैं। इस बीच, शोधकर्ता राख को उपयोग में लाने के बेहतर तरीकों पर काम कर रहे हैं, जैसे इसे रीसायकल करना या इसे कंक्रीट जैसी निर्माण सामग्री में इस्तेमाल करना शामिल है

लेकिन किसी भी समाधान को अमल में लाने के लिए, शोधकर्ताओं को यह पता होना चाहिए कि कोयले की राख के कौन से स्रोत अपने रासायनिक गुण के कारण भारी खतरे पैदा करते हैं। यह एक ऐसा सवाल जिसका जवाब वैज्ञानिकों के पास भी नहीं है।

अध्ययन में नैनो, ड्यूक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बताया कि, सेलेनियम और आर्सेनिक जैसे जहरीले तत्वों से बचना इस बात पर निर्भर करता है कि, कोयले की राख में इनकी मात्रा कितनी है। यह बड़े पैमाने पर उनके नैनोस्केल संरचनाओं पर निर्भर करता है।

ड्यूक विश्वविद्यालय में सिविल और पर्यावरण इंजीनियरिंग के प्रोफेसर हेलेन सू-किम ने कहा, ये परिणाम दिखाते हैं कि सामग्री के रूप में कोयले की राख कितनी जटिल है। उदाहरण के लिए, हमने आर्सेनिक और सेलेनियम को या तो कणों की सतह से जुड़ा हुआ देखा या उनके भीतर घिरा हुआ देखा, जो बताता है कि ये तत्व दूसरों की तुलना में कुछ कोयले की राख से अधिक आसानी से क्यों निकलते हैं।

इस बात की जानकारी है कि, पीएच जैसे कारक आसपास के वातावरण में इसे प्रभावित करते हैं, विषाक्त तत्व वातावरण में आसानी फैल सकते हैं। पिछले शोध में, सू-किम ने दिखाया कि विष के परिवेश में ऑक्सीजन की मात्रा उसके रसायन विज्ञान को बहुत प्रभावित कर सकती है और कोयले की राख के विभिन्न स्रोत तथा इससे बने उत्पादों के विभिन्न स्तरों का उत्पादन करते हैं।

जरूरी नहीं कि कोयले की राख में आर्सेनिक की अधिक मात्रा निकल जाएगी। इसी तरह, राख के विभिन्न स्रोत समान पर्यावरणीय परिस्थितियों के लिए अलग-अलग प्रतिक्रिया करते हैं। कम से कम कहने के लिए समस्या जटिल है। एक अलग नजरिया अपनाने के लिए, सू-किम ने इसके स्रोत पर और भी करीब से नजर डालने का फैसला किया।

सू-किम ने कहा, क्षेत्र में शोधकर्ता आमतौर पर एक या दो माइक्रोमीटर के रिज़ॉल्यूशन के साथ एक्स-रे माइक्रोस्कोप का उपयोग करते हैं, जो फ्लाई ऐश कणों के समान आकार के बारे में है। इसलिए यदि एक कण एक सिंगल पिक्सेल है, तो आप यह नहीं देख सकते हैं कि इसमें तत्वों को कैसे वितरित किया गया है।

इन तस्वीरों के पिक्सेल को नैनोस्केल में तोड़ा गया। इसे फ्यूचरिस्टिक मशीन इंफ्रारेड से लेकर हार्ड एक्स-रे तक के प्रकाश बीम का उपयोग करके सामग्रियों की रासायनिक और परमाणु संरचना को सामने लाने के लिए सूर्य की तुलना में 10 अरब गुना तेज प्रकाश किरणों का उपयोग किया गया।

इसी तरह शोधकर्ताओं को प्रत्येक कण में तत्वों के वितरण के साथ-साथ प्रत्येक कण का एक नैनोस्केल मानचित्र प्रदान किया। जिससे पता चला कि कोयले की  राख सभी प्रकार और आकारों के कणों का संग्रह है।

एक नमूने में शोधकर्ताओं ने सेलेनियम के अलग-अलग नैनोकणों को देखा जो कोयले की राख के बड़े कणों से जुड़े थे, जो सेलेनियम का एक रासायनिक रूप है जो शायद पानी में बहुत घुलनशील नहीं है। लेकिन अधिकांश राख में आर्सेनिक और सेलेनियम या तो अलग-अलग कणों के अंदर बंद थे या अपेक्षाकृत कमजोर आयनिक बंधनों के साथ सतह पर जुड़े हुए थे जो आसानी से टूट जाते हैं।

जबकि कोई भी निश्चित रूप से यह नहीं कह सकता है कि कोयले की राख के अपनी अनूठी संरचना विकसित करने के पीछे क्या कारण है। हसु-किम का अनुमान है कि यह हो सकता है कि, लाखों साल पहले कोयला मूल रूप से कैसे बना था, इससे संबंधित है।

लेकिन इसका कोयले को जलाने वाले बिजली संयंत्रों से भी कुछ लेना-देना हो सकता है। कुछ बिजली संयंत्र सक्रिय कार्बन या चूने को ग्रिप गैस में इंजेक्ट करते हैं, जो  पारा और सल्फर उत्सर्जन को कैप्चर कर लेता है। 1000 डिग्री फारेनहाइट पर, फ्लू में आर्सेनिक और सेलेनियम जैसे विषाक्त पदार्थ गैस में बदल जाते हैं। बाद ये कण ठंडे होकर कोयले की राख में समा जाते हैं। यह अध्ययन एनवायर्नमेंटल साइंस: नैनो पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।