प्रदूषण

भारत में हर साल 1.7 लाख टन कचरे के लिए जिम्मेवार हैं तंबाकू उत्पाद:अध्ययन

तंबाकू उत्पादों की पैकेजिंग के लिए सालाना 22 लाख पेड़ काटे जाते हैं, इनके द्वारा साल भर में उत्पन्न होने वाला कागज का कचरा 89,402.13 टन है। कागज का यह वजन भी 11.9 करोड़ नोटबुक के बराबर है।

Dayanidhi

जोधपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के साथ मिलकर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च (एनआईसीपीआर) द्वारा तम्बाकू उत्पाद और उनसे होने वाले कचरे को लेकर एक अध्ययन किया गया है।

17 राज्यों में किए गए इस अध्ययन से पता चलता है कि तम्बाकू उत्पाद से सालाना 1,70,331 टन कचरा पैदा होता है। यह न केवल उन लोगों के लिए हानिकारक हैं जो उनका सेवन करते हैं बल्कि पर्यावरण पर भी इनका बुरा प्रभाव पड़ता हैं।

अध्ययन से पता चलता है कि तंबाकू के सभी प्रकार जैसे सिगरेट और बीड़ी से लेकर चबाने वाले तंबाकू तक बड़े पैमाने पर कचरा पीछे छोड़ जाते हैं। 'द एनवायरनमेंटल बर्डन ऑफ टोबैको प्रोडक्ट्स वेस्टेज इन इंडिया' नामक यह अध्ययन दो दिन पहले जारी किया गया।

अध्ययनकर्ताओं द्वारा अध्ययन के लिए तंबाकू उत्पादों के 200 से अधिक ब्रांड को देखा गया, जिसमें सिगरेट के 70 ब्रांड, बीड़ी के 94 ब्रांड और धुंआ रहित तंबाकू के 58 ब्रांड खरीदे और उनमें इस्तेमाल किए गए प्लास्टिक, कागज, पन्नी और फिल्टर आदि के अलग-अलग वजन कर आंकड़ों को एक साथ जोड़ा गया, इसकी तुलना ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे इंडिया, 2016-17 ( जीएटीएस 2) के साथ की गई।

यह अध्ययन जनवरी से अप्रैल 2022 के बीच 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 33 जिलों में किया गया था, जिसमें शोधकर्ताओं ने हर जिले में तीन विक्रेताओं का दौरा किया था। एडल्ट टोबैको सर्वे इंडिया, 2016-17 (जीएटीएस 2) के अनुसार, भारत में 26.7 करोड़ लोग तंबाकू का उपयोग करते हैं

अध्ययन में सिगरेट, बीड़ी, या धुंआ रहित तंबाकू उत्पादों की खपत के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों पर भी गौर किया गया है। अध्ययनकर्ता ने कहा हम कभी भी प्लास्टिक और पन्नी की मात्रा के बारे में बात नहीं करते हैं जो तंबाकू उद्योग उपयोग कर रहे हैं। इसलिए हमने इसे आगे बढ़ाने के बारे में सोचा। यहां तक कि जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से धूम्रपान से संबंधित नहीं हैं, वे भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।

उन्होंने कहा अध्ययन में, पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले सिगरेट बट्स के बारे में बात करने पर जोर दिया गया। अध्ययन में यह पता लगाने की कोशिश की गई कि इन उत्पादों की पैकेजिंग किस तरह की है और यह पर्यावरण पर इनका कितना बुरा असर पड़ रहा है।

अध्ययन से पता चला कि तंबाकू उत्पादों द्वारा उत्पन्न कुल कचरे में 73,500.66 टन प्लास्टिक था, जो कि सभी प्रकार के तम्बाकू उत्पादों द्वारा उत्पादित कुल कचरे का 45 फीसदी था। यह साल भर में उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक कचरे से मोटे तौर पर 7.3 करोड़ प्लास्टिक की बाल्टियों के वजन के बराबर है।

अध्ययन के मुताबिक तंबाकू उत्पादों की पैकेजिंग के लिए सालाना 22 लाख पेड़ काटे जाते हैं। तंबाकू उत्पादों द्वारा उत्पन्न वार्षिक कागज अपशिष्ट 89,402.13 टन है। कागज का यह वजन भी 11.9 करोड़ नोटबुक के बराबर है।

अध्ययन में कहा गया है कि पैकेजिंग से उत्पन्न 6,073.47 टन नॉन-बायोडिग्रेडेबल या नष्ट न होने वाला एल्यूमीनियम पन्नी के कचरे से तैंतीस बोइंग 747 विमान बनाए जा सकते हैं और उत्पादित फिल्टर का कचरा 90 लाख वयस्कों के आकार की टी-शर्ट के बराबर है।

अध्ययन में पाया गया कि उत्पन्न होने वाले कुल कचरे का 68 प्रतिशत धुआं रहित तंबाकू उत्पादों से होता है। 24 फीसदी सिगरेट का उत्पादन होता है और बाकी बीड़ी से होता है। यह पहली बार नहीं है जब तंबाकू उद्योग पर्यावरण प्रदूषण के लिए जांच के घेरे में आया है।

अध्ययनकर्ताओं की नीतिगत सिफारिशें

अध्ययनकर्ताओं ने सुझाव देते हुए कहा है कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और पर्यावरण कानूनों के कार्यान्वयन पर एक मजबूत नीति के अलावा, तम्बाकू उत्पादों के निर्माताओं पर एक वित्तीय शुल्क लगाया जाना चाहिए।

वर्तमान में, कोई भी तंबाकू उत्पाद निर्माता पूरी तरह से पर्यावरण कानूनों का पालन नहीं करता है। तम्बाकू कंपनियों और उनके शेयरधारकों को अपने उत्पादों के पर्यावरणीय बोझ को कम करने की पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि ठोस अपशिष्ट, पैकेजिंग से संबंधित मौजूदा पर्यावरणीय कानूनों और नीतियों के उल्लंघनों की कड़ाई से निगरानी की जानी चाहिए, अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए रिपोर्ट और विनियमित किया जाना चाहिए।

अध्ययन में कहा गया है कि, पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य पर प्लास्टिक के न बदले जा सकने वाले प्रभावों को देखते हुए, तंबाकू उत्पादों से उत्पन्न होने वाले अनावश्यक प्लास्टिक के कचरे के प्रभावी उन्मूलन के लिए मजबूत और तत्काल नीतिगत बदलाव की आवश्यकता है।