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इस पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति समुद्र से हुई है और वही जीवन को गति भी देते हैं, लेकिन इस समय समुद्र खतरे में है। इसकी बड़ी वजह है प्रदूषण। हम समुद्र में सैंकड़ों तरीकों से कचरा डंप कर रहे हैं। हर साल हम दुनिया के सारे जलमार्गों में प्लास्टिक का कचरा, रासायनिक अवशेष, कच्चा तेल और प्रदूषण के कई अन्य कारकों को बहा देते हैं। अच्छी बात ये है कि अभी इतनी देर नहीं हुई है कि हम इस कचरे को समेट न सकें। लेकिन उसके पहले हमें समुद्री प्रदूषण के बारे में इन 11 बातों को जानना जरूरी है।
समुद्र में तेल का बिखरना भले ही समाचार की सुर्खी बनता हो, लेकिन असल में यह हमारे समुद्र में मौजूद तेल का सिर्फ 12 फीसदी ही है। इससे तीन गुना ज्यादा तेल हमारी सड़कों, नदियों और नालों के जरिए समुद्र में मिलता है।
हम सालाना महासागरों में 80 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक डंप करते हैं। यह तकरीबन 17.6 अरब पौंड है- या लगभग 57,000 ब्लू व्हेल्स के वजन के बराबर। 2050 तक समुद्र में मौजूद प्लास्टिक समंदर की सारी मछलियों के कुल वजन से ज्यादा हो जाएगा।
महासागरों में कचरे के विशालकाय पैच (टुकड़े) तैयार हो गए हैं। सभी महासागरों में कुल मिलाकर ऐसे पांच पैच हैं। इसमें सबसे बड़ा है ग्रेट पसिफ़िक गार्बेज पैच, जिसमें कचरे के तकरीबन 1.8 लाख करोड़ टुकड़े हैं और जो आकर में टेक्सस से दोगुना है।
सूरज की तेज रोशनी और लहरों के दबाव में यह कचरा बहुत छोटे टुकड़ों में टूट जाता है, जिसे माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं और जो हमारी फूड चैन में शामिल हो सकता है। जब यह कचरा आखिरकार नष्ट होता है (जिसमें 400 साल तक लग सकते हैं), तो इस प्रक्रिया से ऐसे रसायन निकलते हैं जो समुद्र को और दूषित करते हैं।
समुद्र में जितना प्लास्टिक चीन और इंडोनेशिया से आता है, वह कुल प्लास्टिक कचरे का एक-तिहाई है। असल में 80 फीसदी कचरा सिर्फ 20 देशों से आता है जिसमें अमेरिका भी शामिल है।
हर बार लांड्री करने के साथ 7,00,000 से ज्यादा सिंथेटिक माइक्रोफाइबर्स समुद्र में जा मिलते हैं। कॉटन या ऊन जैसे प्राकृतिक मटेरियल से उलट सिंथेटिक फाइबर्स आसानी से नष्ट नहीं होते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक बीच पर पाए जाने वाले कुल कचरे में 85 फीसदी सिंथेटिक माइक्रोफाइबर्स हैं।
समुद्र जितना प्रदूषित है, उसका एक बहुत छोटा भाग हम देख पाते हैं। 70 फीसदी कचरा समुद्र तल पर जमा हो जाता है, जिसके साफ होने की बहुत कम संभावना है।
अगर नाइट्रोजन जैसे कृषि में इस्तेमाल होने वाले पोषक तत्वों को बड़ी मात्रा में समुद्र में बहाया जाएगा तो इससे शैवाल (algae) बहुत तेजी से पनपेंगे। जब शैवाल डिकम्पोज होते हैं तो वे अपने आसपास की ऑक्सीजन का सोख लेते हैं, जिससे एक डेड-जोन बन जाता है जहां जीवन नहीं पनप पाता। ऐसे जोन में मछलियां और अन्य समुद्री जीव बड़ी संख्या में मरने लगते हैं।
2004 में वैज्ञानिकों ने दुनिया के समुद्रों में ऐसे 146 हाइपॉक्सिक जोन को चिह्नित किया था जहां ऑक्सीजन की मात्रा कम थी और जीवों का दम घुट रहा था। 2008 तक आते-आते यह संख्या बढ़कर 405 हो गई। 2017 में मेक्सिको की खाड़ी में वैज्ञानिकों को न्यू जर्सी के आकार का सबसे बड़ा डेड-जोन मिला।
ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से समुद्र में अम्ल बढ़ रहा है। इसके चलते सीपियां बनाने वाले मसल, क्लैम और ऑयस्टर्स जैसे जीव शेल नहीं बना पा रहे हैं, जिससे उनके जीवित रहने की संभावना कम हो जाती है। इससे फूड चैन प्रभावित होती है और अरबों डॉलर्स की शेलफिश इंडस्ट्री पर भी असर पड़ता है।
शिपिंग और सैन्य गतिविधियों के चलते समुद्र में ध्वनि प्रदूषण भी फैलता है, जिससे जेलीफिश और अनिमोन्स जैसे इन्वर्टब्रैट (बिना रीढ़ की हड्डी वाले जीव) की कोशिकाओं को क्षति होती है। यह जीव टूना मछली, शार्क, समुद्री कछुए और अन्य कई जीवों के लिए भोजन का काम करते हैं।
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