प्रदूषण

80 फीसदी जीवन का आश्रय स्थल हैं समुद्र, दोहन से पहले उनका भी रखना होगा ध्यान

जलवायु परिवर्तन, बढ़ते प्रदूषण और संसाधनों के अनियंत्रित दोहन के चलते समुद्री जीवों और जैवविविधता के साथ करीब 300 करोड़ लोगों की जीविका भी दांव पर है

Lalit Maurya

समुद्र सिर्फ इंसानों के लिए ही जरूरी नहीं यह पृथ्वी पर मौजूद 80 फीसदी जीवन का आश्रय स्थल भी हैं। ऐसे में इनके दोहन से पहले उन जीवों को भी ध्यान में रखना जरूरी है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (यूएनसीटीएडी) ने अपनी नई रिपोर्ट "ट्रेड एंड एनवायरनमेंट रिव्यु 2023" में भी देशों से ‘ग्लोबल ब्लू डील’ को अपनानें का आह्वान किया है।

यह रिपोर्ट 2022 में महासागरों पर आयोजित चौथी यूएन फोरम और दूसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन की सिफारिशों पर आधारित है। यह रिपोर्ट 08 से 09 मई 2023 के बीच जिनेवा में हो रही तीसरी यूएन ट्रेड फोरम के दौरान जारी की गई है। 

यह विशाल समुद्र हमारे ग्रह का ‘लाइफ सपोर्ट सिस्टम’ हैं, जिनपर काफी हद तक जीवन का दारोमदार है। सदियों से हम इंसान यही समझते रहे की यह समुद्र संसाधनों का अंतहीन स्रोत हैं, जिनका कितना भी दोहन किया जा सकता है। लेकिन यह सच नहीं है, जैसे-जैसे यह धारणाएं धूमिल हो रही हैं लोगों को इस बात का आभास हो रहा है कि समुद्र भी जलवायु परिवर्तन, बढ़ते दोहन, प्रदूषण के चलते ‘टिप्पिंग पॉइंट’ पर पहुंच रहे हैं।

यदि समुद्र पर निर्भर वैश्विक अर्थव्यवस्था को देखें तो उसका आकार करीब 491.6 लाख करोड़ रुपए (छह लाख करोड़ डॉलर) का है। देखा जाए तो समुद्र में मौजूद संसाधनों का यह विशाल भंडार विकासशील देशों के लिए अनगिनत अवसर पैदा कर सकता है, जो उन्हें सशक्त करने में मददगार हो सकता है।

दांव पर है 300 करोड़ लोगों की जीविका

हालांकि जिस तरह से जलवायु परिवर्तन, बढ़ते प्रदूषण और अनियंत्रित दोहन के चलते इनमें गिरावट आई है, वो समुद्रों के लिए बड़ा खतरा बन गए हैं। आंकड़ों की मानें तो हर साल करीब 1.1 करोड़ टन प्लास्टिक समुद्रों में मिल रहा है। वहीं यदि मछलियों को देखें तो उसके 34 फीसदी स्टॉक ऐसे स्तर पर पहुंच गए हैं जो जैविक रूप से अस्थिर हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक 2050 तक महासागरों में मौजूद प्लास्टिक का वजन मछलियों के कुल वजन से ज्यादा होगा। रिसर्च से पता चला है कि महासागरों में पहुंच चुके कुल प्लास्टिक कचरे की मात्रा 2025 में करीब 25 करोड़ टन होगी, जो 2040 तक बढ़कर 70 करोड़ टन पर पहुंच जाएगी।

रिपोर्ट के मुताबिक इस बढ़ते प्रदूषण और संसाधनों के अनियंत्रित दोहन के चलते समुद्री जीवन और जैवविविधता के साथ करीब 300 करोड़ लोगों की जीविका भी दांव पर है जो ज्यादातर तटीय विकासशील देशों में रह रहे हैं और अपने भोजन और आय के लिए समुद्रों पर निर्भर हैं। साथ ही इस रिपोर्ट में इंसानी गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन जैसे खतरों का भी जिक्र किया गया है जो मछली पकड़ने, शिपिंग और तटीय पर्यटन को प्रभावित कर रहे हैं।

यूएनसीटीएडी ने अपनी इस रिपोर्ट में महासागरों की रक्षा करने और इसके संसाधनों के सतत उपयोग के लिए निवेश को बढ़ावा देने की बात कही है जिसके लिए वैश्विक स्तर पर "ब्लू डील" की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। इस बारे में यूएनसीटीएडी के उप महासचिव पेड्रो मैनुअल मोरेनो का भी कहना है कि “समुद्र से लाभ लेने और उसके संसाधनों की रक्षा के बीच सही संतुलन बनाना जरूरी है।“

रिपोर्ट में सतत विकास के लिए विशेष रूप से दो क्षेत्रों- समुद्री शैवाल की खेती और प्लास्टिक के विकल्प पर प्रकाश डाला गया है। यदि सीवीड के वैश्विक बाजार को देखें तो वो दो दशकों में तीन गुणा से ज्यादा हो गया है। रिपोर्ट के मुताबिक सीवीड व्यापार 2000 में 450 करोड़ डॉलर से बढ़कर 1,650 करोड़ डॉलर पर पहुंच गया है।

यूएनसीटीएडी के मुताबिक समुद्री शैवाल को उगाने के लिए न तो ताजे पाने न ही उर्वरकों की आवश्यकता होती है। सीवीड ऐसा है जिसकी भोजन, सौंदर्य प्रसाधन और जैव ईंधन के लिए कई विकासशील देशों में खेती की जा सकती है। साथ ही यह प्लास्टिक का विकल्प भी प्रदान करती है। इस तरह जहां एक तरफ इसकी कृषि से आय में वृद्धि होगी वहीं दूसरी तरफ यह प्लास्टिक प्रदूषण के बढ़ते खतरे से निपटने में भी मददगार होगी।

हालांकि इसके बावजूद वैश्विक स्तर पर 2020 में प्लास्टिक के विकल्प का करीब 38,800 करोड़ डॉलर का व्यापार किया गया जो जीवाश्म ईंधन से बने प्लास्टिक के व्यापार का केवल एक तिहाई ही है। ऐसे में रिपोर्ट में सरकारों और व्यवसायों से समुद्री अर्थव्यवस्था में उभरते क्षेत्रों के अनुसंधान और विकास के लिए वित्त को बढ़ावा देने का आह्वान किया गया है।

रिपोर्ट में कंपनियों से भी आग्रह किए गया है कि वे अपनी प्रौद्योगिकी, कौशल और उत्पादक क्षमताओं को बढ़ाने के लिए विकासशील देशों में निवेश करें, जिससे समुद्रों के सतत विकास का फायदा उठाया जा सके।

क्या हैं समाधान

यूएनसीटीएडी के अनुसार समुद्र के उभरते क्षेत्रों में निवेश से विकासशील देशों को अपने समुद्री निर्यात में विविधता लाने में मदद मिल सकती है। देखा जाए तो समुद्रों पर आधारित सामानों का वैश्विक निर्यात मूल्य 2020 में करीब 130000 करोड़ डॉलर था। इसमें समुद्रों से प्राप्त भोजन, बंदरगाह, उपकरण, शिपिंग और तटीय पर्यटन आदि शामिल थे।

 रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि सरकारों को संकट से निपटने की रणनीतियों के साथ जलवायु अनुकूलन और शमन और के लिए किए जा रहे प्रयासों में विविधता से परिपूर्ण शाश्वत समुद्री अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देने के लक्ष्यों को भी शामिल करना जरूरी है।

अनुमान है कि दुनिया भर में मछली पकड़ने के लिए हर साल 3,500 करोड़ डॉलर की सरकारी सब्सिडी दी जा रही है। इसका एक बड़ा हिस्सा करीब 2,000 करोड़ डॉलर फ्यूल सब्सिडी और बड़ी नावों को खरीदने के लिए दी जा रही वित्तीय मदद जैसी गतिविधियों पर खर्च हो रहा है। यह मछलियों के अनियंत्रित शिकार में मददगार हो सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर मछलियों का 34 फीसदी स्टॉक पहले ही जैविक रूप से अस्थिर है ऐसे में यह सब्सिडी समुद्री पर्यावरण के लिए खतरा पैदा कर सकती है। यही वजह है कि रिपोर्ट में देशों से आग्रह किया गया है कि पिछले साल 17 जून को मछलियों की सब्सिडी के लिए अपनाए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के समझौते को तत्काल अमल में लाएं। इसी तरह रिपोर्ट में सरकारों से 4 मार्च 2023 को अन्तरराष्ट्रीय जल-क्षेत्र में समुद्री जैवविविधता के संरक्षण के लिए हुए समझौते को तत्काल अपनाने की बात कही गई है।

रिपोर्ट ने समुद्रों को बचाने के लिए चार समाधानों की बात कही है इनमें मैंग्रोव का संरक्षण और बहाली, अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग से होते उत्सर्जन पर लगाम, महासागरों से प्राप्त उत्पादों का शाश्वत उपयोग और अपतटीय पवन ऊर्जा शामिल हैं। पता चला है कि इन समाधानों पर 2.8 लाख करोड़ डॉलर का निवेश 2050 तक 15.5 लाख करोड़ डॉलर का फायदा पहुंचाएगा।