प्रदूषण

भारत में वायु प्रदूषण, अमीरों की तुलना में नौ गुना अधिक गरीब होते हैं शिकार

अधिक कमाई करने वाले 10 फीसदी के लिए प्रति यूनिट प्रदूषण में 6.3 लोगों की समय से पहले मौत का अनुमान है। जबकि सबसे गरीब 10 फीसदी के लिए, यह आंकड़ा 54.7 लोगों की मौतों का था।

Dayanidhi

दुनिया भर में समय से पहले होने वाली मौतों के लिए हवा में घुले सूक्ष्म कण (फाइन पार्टिकुलेट मैटर पीएम2.5) जिम्मेदार है। भारत में भी वायु प्रदूषण की वजह से लाखों लोग असमय मौत का शिकार हो जाते हैं। अब एक नए शोध में पता चला है कि वायु प्रदूषण को बढ़ाने में अमीरों की भूमिका अहम होती है, लेकिन वायु प्रदूषण की वजह से अमीराें की तुलना में गरीब अधिक मरते हैं। 

शोध के मुताबिक सबसे अधिक अमीर व्यक्ति अपनी भारी भरकम जीवन शैली जीने के लिए बहुत सारी चीजों का उपभोग करता है, जिससे वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी होती हैं। यूरोप और अमेरिका में शोधकर्ता यह देखना चाहते थे कि धरती के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश में वायु प्रदूषण का खतरा धन से किस तरह जुड़ा हुआ है।

उन्होंने विभिन्न आय समूहों वाले लोगों के व्यय करने के आंकड़ों की जांच की। प्रदूषण का अनुमान लगाने के लिए एक परिष्कृत कंप्यूटर मॉडल का इस्तेमाल किया। जो यह पता लगाता है कि किस तरह की खर्च करने की आदतों से वायु प्रदूषण उत्पन्न हो सकता था। उन्होंने उत्पन्न होने वाले वायु प्रदूषण का अंदाजा लगाकर एक नक्शा तैयार किया और फिर इसका उपयोग, उससे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के अनुमानों को लगाने के लिए किया गया।   

अध्ययनकर्ताओं ने कहा, हमने पाया कि अधिक खर्च करने वाले व्यक्तियों ने वायु प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में सबसे अधिक योगदान दिया, वहीं गरीब व्यक्ति इससे सबसे अधिक पीड़ित पाए गए। नेचर सस्टेनेबिलिटी नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि बाहरी और आंतरिक स्रोतों से होने वाले वायु प्रदूषण की वजह से 2010 में 11.9 लाख लोगों की मृत्यु हुई।   

उन्होंने एक नए प्रदूषण असमानता सूचकांक की भी व्याख्या की, जिसमें प्रत्येक आय समूह द्वारा योगदान किए गए परिवेशी वायु प्रदूषण की मात्रा के मुकाबले समय से पहले होने वाली मौतों के अनुपात को मापा गया। सबसे ज्यादा कमाई करने वाले 10 फीसदी के लिए, सूचकांक के अनुसार प्रति यूनिट प्रदूषण में 6.3 लोगों की समय से पहले मौत का अनुमान है। जबकि सबसे गरीब 10 फीसदी के लिए, यह आंकड़ा 54.7 लोगों के मौतों का था जोकि लगभग नौ गुना अधिक है।   

वायु असमानता को कम करने के सबसे अच्छे तरीकों का परीक्षण करने के लिए, टीम ने दो परिदृश्यों की जांच की। पहला जिसमें खाना पकाने के स्टोव को छोड़कर सभी प्रदूषण स्रोतों पर स्वच्छ तकनीक लागू की गई थी। दूसरी जिसमें ठोस ईंधन अर्थात लकड़ी या कोयले से चलने वाले चूल्हे या स्टोव को बिजली के साथ बदल दिया गया था। अप्रत्याशित रूप से, मॉडलिंग ने दूसरे परिदृश्य को दिखाया। केवल लकड़ी और कोयले से जलने वाले चूल्हे या स्टोव को दूर करने से वायु प्रदूषण से जुड़ी मौतों में सबसे अधिक कमी पाई गई।

ऑस्ट्रिया में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम एनालिसिस (आईआईएएसए) के प्रमुख और अध्ययनकर्ता ने कहा कि सिर्फ एक बदलाव करने से वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों को प्रभावी ढंग से कम किया जा सकता है। विशेष रूप से गरीबों के लिए सस्ते, स्वच्छ खाना पकाने के स्टोव और ईंधन की सुविधा प्रदान करना है।

वैगनर ने कहा काम की तलाश में लाखों भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर जा रहे हैं, इस आधार पर वायु प्रदूषण के कुल प्रभाव को मापना बहुत कठिन है। उन्होंने आगे कहा कि शहरों में जनसंख्या घनत्व लगातार बढ़ रहा है, इसका मतलब है कि अधिक से अधिक लोग खराब हवा के संपर्क में आते जा रहे हैं। इसलिए वायु प्रदूषण से होने वाले कुल खतरों में बढ़ोतरी होने की आशंका है।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि उद्योग-धंधों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित कर परिवेशी वायु प्रदूषण के प्रभावों की असमानता को कम कर सकते हैं। हालांकि कम आय वाले परिवारों को इनडोर वायु प्रदूषण से मृत्यु का खतरा अधिक है, इसलिए खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन भारत में वायु प्रदूषण से समय से पहले होने वाली मौतों की संख्या को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका है।