लॉकडाउन के बाद देश के पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र और गुजरात में भी वायु गुणवत्ता की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। यह जानकारी सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा पश्चिमी राज्यों के लिए क्षेत्रीय स्तर पर वायु गुणवत्ता के किए विश्लेषण में सामने आई है।
देखा जाए तो सर्दियों के दौरान देश के उत्तरी हिस्से में दिन और रातें कोहरे से ढक जाती है, जबकि इसके विपरीत देश का पश्चिमी हिस्सा ज्यादा साफ रहता है। पर धीरे-धीरे बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते वहां भी स्थिति खराब होती जा रही है।
इन राज्यों में दिसंबर के अंत और जनवरी की शुरुआत में प्रदूषण का स्तर ज्यादा होता है। जब मौसम की सर्द और शांत परिस्थितियां स्थानीय प्रदूषण को रोक लेती हैं। देखा जाए तो उत्तर भारत की तुलना में देश के पश्चिमी राज्यों को भौगोलिक दशाओं और मौसम का लाभ मिलता है। जहां प्रदूषण का स्तर समुद्र से निकटता और बेहतर वेंटिलेशन के कारण तुलनात्मक रूप से उतना अधिक नहीं होता है, लेकिन इसके बावजूद इन राज्यों में प्रदूषण के सतर में वृद्धि दर्ज की गई है।
वहां सर्दियों के दौरान हवा में पीएम 10 कणों की तुलना में महीन पीएम 2.5 कणों की हिस्सेदारी ज्यादा दर्ज की गई थी। जो हवा को कहीं ज्यादा जहरीला बना देते हैं। यह वृद्धि महाराष्ट्र के शहरों में 50 से 60 फीसदी और गुजरात के शहरों में 71 फीसदी तक दर्ज की गई थी।
रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र की तुलना में गुजरात के शहर कहीं ज्यादा प्रदूषित हैं। इस क्षेत्र में वटवा और अंकलेश्वर की हवा सबसे ज्यादा दूषित है। जहां 2021 के लिए पीएम 2.5 का औसत वार्षिक स्तर 67 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर मापा गया था। इसके बाद वापी में यह स्तर 54 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और अहमदाबाद में 53 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था।
वहीं यदि महाराष्ट्र की बात करें तो वहां औद्योगिक शहर चंद्रपुर में पीएम 2.5 का स्तर वार्षिक मानक से मामूली ऊपर, 43 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था, जबकि अन्य स्टेशनों ने वार्षिक मानक को हासिल कर लिया था। हालांकि यह सभी स्टेशन 2020 में प्रदूषण में आई गिरावट के बाद 2021 में इसकी बढ़ती प्रवृत्ति को दिखा रहे हैं।
बढ़ रही है 'बहुत खराब' वायु गुणवत्ता वाले दिनों की संख्या
रिपोर्ट से पता चला है कि इस क्षेत्र के ज्यादातर शहरों में लॉकडाउन के बाद प्रदूषण के स्तर में वृद्धि देखी गई है। हालांकि यदि वायु गुणवत्ता के वार्षिक औसत को देखें तो उसका स्तर उतना ज्यादा नहीं है, उसके बावजूद महाराष्ट्र के कई शहरों में 'खराब' और 'बहुत खराब' श्रेणी के वायु गुणवत्ता वाले दिनों की संख्या बहुत अधिक दर्ज की गई थी।
जहां मुंबई में खराब वायु गुणवत्ता वाले दिनों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई थी। वहीं शहर के अन्य हिस्सों की तुलना में दक्षिण मुंबई की स्थिति सबसे ज्यादा खराब थी। इस क्षेत्र में गुजरात के अंकलेश्वर में सबसे ज्यादा दिन हवा की गुणवत्ता खराब पाई गई थी, जहां साल में 102 दिनों तक वायु गुणवत्ता खराब और बहुत खराब दर्ज की गई थी। इसके बाद कल्याण में 84 दिन, वटवा में 75 दिन और नवी मुंबई में 54 दिन हवा की गुणवत्ता खराब या बहुत खराब श्रेणी की थी।
इसके बाद वापी में 48 दिन हवा की स्थिति ऐसी ही थी, लेकिन वहां विशेष तौर पर सर्दियों में 138 दिनों के आंकड़ें उपलब्ध नहीं थे, जिसकी वजह से सही तस्वीर सामने नहीं आ सकती। वहीं मुंबई ने वार्षिक गुणवत्ता मानक को हासिल जरूर कर लिया था, इसके बावजूद वहां 42 दिन वायु गुणवत्ता खराब और बहुत खराब श्रेणी की थी।
देखा जाए तो देश के पश्चिमी राज्यों के शहरों में दिसंबर के अंत में हवा की स्थिति खराब होने लगती है यह स्थिति जनवरी के अंत तक बनी रहती है। अन्य शहरों की तुलना में सर्दियों के दौरान मुंबई में प्रदूषण का प्रभाव कहीं स्पष्ट रूप से दिखता है जबकि औद्योगिक शहरों की हवा साल भर खराब रहती है।
इसी तरह सर्दियों के दौरान इस क्षेत्र के कई शहरों में प्रदूषण का साप्ताहिक स्तर, वार्षिक औसत की तुलना में दोगुने से ज्यादा बढ़ जाता है। यही वजह है कि 2021 में अपने चरम पर पहुंचने पर दिसंबर 2021 के दौरान अंकलेश्वर में पीएम 2.5 का स्तर 139 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक दर्ज किया गया था। वहीं इस सर्दी वातवा का अब तक का सबसे ऊंचा स्तर 133 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था।
वहीं कल्याण में यह स्तर 117 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर, अहमदाबाद के मणिनगर में 115 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर, वापी में 109 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और नवी मुंबई में 103 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था। गौरतलब है कि पीएम 2.5 का यह स्तर पिछली सर्दियों की तुलना में थोड़ा ज्यादा है। यह चंद्रपुर में सबसे अधिक था, जो पिछली सर्दियों की तुलना में डेढ़ गुना अधिक दर्ज किया गया था।
रिपोर्ट के अनुसार इस क्षेत्र में वायु गुणवत्ता के रियल टाइम में मिलने वाले सटीक आंकड़ों की कमी भी एक बड़ी समस्या है। इस बारे में सीएसई के अर्बन डेटा एनालिटिक्स लैब में प्रोग्राम मैनेजर अविकल सोमवंशी का कहना है कि इन राज्यों में वायु गुणवत्ता सम्बन्धी अपडेट जानकारी के लिए वायु गुणवत्ता की रियल टाइम मॉनिटरिंग की शुरुआत हो गई है, लेकिन पूरे आंकड़ें उपलब्ध न होना एक बड़ी समस्या है, जो विश्लेषण को मुश्किल बनाती हैं, जिसके कारण सटीक जानकारी हासिल करना मुश्किल हो जाता है।
उनके अनुसार महाराष्ट्र और गुजरात के कुछ स्टेशनों में तो आंकड़ों की इतनी कमी है की उनसे प्रवृत्ति का आकलन नहीं किया जा सकता। ऐसे में आंकड़ों की गुणवत्ता को नियंत्रित करना भी जरुरी है।
सभी शहरों में शाम के समय अपने चरम पर था एनओ2 का स्तर
यदि सितम्बर, अक्टूबर और नवंबर से तुलना की जाए तो दिसंबर के दौरान पश्चिमी राज्यों के सभी शहरों में हवा में मौजूद नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) के स्तर में वृद्धि दर्ज की गई थी। जहां सोलापुर में मासिक एनओ2 के स्तर में 4.9 गुना का उछाल आया था। वहीं नवी मुंबई 3.9 गुना, औरंगाबाद में 3.6 गुना, चंद्रपुर में तीन गुना, वातवा, 2.7 गुना और मुंबई में 2.5 गुना की वृद्धि दर्ज की गई थी।
यदि पूरे महीने के औसत स्तर की बात की जाए तो दिसंबर के दौरान वातवा में यह 120 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया था, जोकि एनओ2 के लिए 24 घंटे के तय मानक से भी ज्यादा है। इसके बाद यह सोलापुर में 46 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पुणे में 44 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर दर्ज किया गया था। यह स्तर इतना ज्यादा है जितना उत्तर भारतीय शहरों में भी दर्ज नहीं किया गया था।
एनओ2 के बारे में एक खास बात यह देखी गई कि सभी शहरों शाम 6 बजे से 8 बजे के बीच एनओ2 का स्तर चरम पर था, जो शहरों में भीड़ के समय से मेल खाता है। वातवा में जहां दोपहर से शाम 7 बजे के बीच इसके स्तर में 3.4 गुना वृद्धि दर्ज की गई थी। नासिक और नवी मुंबई में इसका स्तर दोपहर की तुलना में शाम को क्रमशः 2.6 और 2.2 गुना ज्यादा दर्ज किया गया था।
इसी तरह सभी शहरों में सुबह 7 से 8 बजे के आसपास एनओ2 का स्तर ज्यादा होता है, लेकिन वो शाम से थोड़ा कम दर्ज किया गया था। पुणे, मुंबई और अहमदाबाद में एनओ2 का यह उच्च स्तर आधी रात तक बना रहता है, जो रात के समय इन शहरों में ट्रक की आवाजाही से होने वाले प्रदूषण की उपस्थिति का संकेत देता है।
मानकों को हासिल करने के लिए पीएम2.5 के स्तर में कितनी करनी होगी कटौती
ऐसे में यदि रिपोर्ट की मानें तो यदि वायु गुणवत्ता के मानकों को हासिल करना है तो उसके लिए गुजरात के शहरों को अपने पीएम 2.5 के वार्षिक स्तर में बड़ी कटौती करने की जरुरत है। यह कटौती वटवा और अंकलेश्वर में 40 फीसदी, वापी में 25 फीसदी तक है, जबकि वायु गुणवत्ता के मानकों को हासिल करने के लिए अहमदाबाद और मणिनगर में पीएम 2.5 कर वार्षिक स्तर में करीब 24 फीसदी की कमी करने की जरुरत है।
इस बारे में सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी का कहना है कि, "2019 से 2021 के रियल टाइम वायु गुणवत्ता के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि 2020 में महामारी के कारण हुए लॉकडाउन के चलते प्रदूषण के स्तर में जो गिरावट आई थी वो स्थिति बदल रही है। प्रदूषण का स्तर एक बार दोबारा बढ़ रहा है। कई मामलों में तो यह स्तर 2019 की तुलना में भी अधिक है।"
उनके अनुसार मुंबई में जहां 2019 और 2021 के बीच खराब हवा वाले दिनों की संख्या दोगुनी हो गई है वहीं अच्छी वायु गुणवत्ता वाले दिनों की संख्या कम हो गई है। ऐसे में उनके अनुसार स्थिति के और ज्यादा बिगड़ने और प्रदूषण की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने के लिए सभी क्षेत्रों में तत्काल कार्रवाई करने की जरुरत है।
रिपोर्ट की मानें तो प्रदूषण के स्तर में इस कमी को हासिल करने के लिए सभी क्षेत्रों में काम करने की जरुरत है। उद्योग, बिजली संयंत्र, परिवहन, अपशिष्ट प्रबंधन, निर्माण, खाना पकाने के साफ-सुथरे विकल्प से लेकर धूल नियंत्रण तक सभी कुछ शामिल हैं।