प्रदूषण

कॉप-26: पटरी पर नहीं है 2030 तक वैश्विक ईंधन खपत को आधा करने का लक्ष्य

इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए 2019 से 2030 के बीच ईंधन की खपत में हर वर्ष 4.3 फीसदी की कमी करनी होगी

Madhumita Paul, Lalit Maurya

2030 तक वैश्विक स्तर पर ईंधन की खपत आधा करने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं वो थम से गए हैं यह जानकारी हाल ही में इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) द्वारा जारी नई रिपोर्ट में सामने आई है। गौरतलब है कि 2030 तक नए हल्के वाहनों की ईंधन खपत को 2005 की तुलना में आधा करने का लक्ष्य रखा गया है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए 2019 से 2030 के बीच ईंधन की खपत में हर वर्ष 4.3 फीसदी की गिरावट करनी होगी। 

जीएफइआई 2021 के अनुसार 2017 से 2019 के बीच नए हलके वाहनों की औसत ईंधन खपत में केवल 0.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं आईइए के अनुसार 2010 से 2015 के बीच ईंधन की खपत में करीब 1.8 फीसदी की गिरावट आई थी, जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि यह लक्ष्य साल-दर-साल और दूर होता जा रहा है। 

यदि फ्यूल इकॉनमी की बात करें तो एक वाहन किसी विशेष प्रकार के ईंधन की एक यूनिट की मदद से कितनी दूरी तय कर सकता है उसके आधार पर मापा जाता है। उदाहरण के लिए किलोमीटर प्रति लीटर। देखा जाए तो यह वाहनों के उपयोग से होने वाले ग्रीनहाउस गैसों और प्रदूषकों के उत्सर्जन का एक प्रमुख संकेतक है।  

दुनिया के तीन प्रमुख कार बाजारों में चीन, यूरोपियन यूनियन और अमेरिका मुख्य हैं।  जिन्होंने वैश्विक स्तर पर 2019 में हलके वाहनों की बिक्री में 60 फीसदी का योगदान दिया था। जिसका मतलब है कि इन देशों में 2019 में करीब 9 करोड़ हलके वाहन खरीदे और बेचे गए थे। हालांकि 2017 की तुलना में देखें तो यह 7 फीसदी कम है। 

2017 से 2019 के बीच ईंधन की खपत में सुधार की धीमी गति के लिए निम्नलिखित कारक मुख्य रूप से जिम्मेवार थे। इनमें 2019 तक अमेरिका और यूरोपियन यूनियन में फ्यूल इकॉनमी स्टैंडर्डस में आई स्थिरता, कार बाजार में एसयूवी की बढ़ती हिस्सेदारी शामिल है। गौरतलब है कि यह कारें हलके वाहनों की तुलना में करीब एक तिहाई ज्यादा ईंधन का उपयोग कर सकती हैं। इसी तरह बढ़ती तकनीकी लागत और बड़े वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक कारों को धीरे-धीरे अपनाना जैसे कारक पमुख रूप से इसके लिए जिम्मेवार थे। 

रिपोर्ट के मुताबिक जिन कारों में आंतरिक दहन इंजन होता है उनमें अधिकांश उत्सर्जन टेलपाइप ('टैंक टू व्हील') के जरिए होता है, जबकि कुल उत्सर्जन का केवल 20 फीसदी से कम उनके उत्पादन ('वेल टू टैंक') से सम्बंधित होता है। वहीं इसके विपरीत यदि बैटरी या फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक वाहनों को देखें तो उनसे होने वाला ज्यादातर उत्सर्जन, बिजली या हाइड्रोजन के उत्पादन और वितरण से होता है जिस पर वे चलते हैं। 

रिपोर्ट के अनुसार 2019 में बैटरी से चलने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों से सबसे कम उत्सर्जन हुआ था, जबकि इसके बाद प्लग-इन हाइब्रिड और हाइड्रोजन फ्यूल सेल से चलने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों का नंबर आता है। वहीं यदि गैसोलीन, डीजल या प्राकृतिक गैस से चलने वाले आंतरिक दहन इंजन वाले वाहनों को देखें तो इनमें हाइब्रिड वाहनों से सबसे कम उत्सर्जन हुआ था। 

आईईए के मुताबिक नए हल्के वाहनों के ईंधन की खपत को आधा करने के लिए 2019 से 2030 के बीच उसमें हर साल 4.3 फीसदी की गिरावट करनी होगी। यह 2005 के बाद से इसमें हर वर्ष आ रहे सुधार से करीब तिगुना है। 

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि इस लक्ष्य को हासिल करना है तो उसके लिए ठोस नीतियां बनानी होंगी। इसके लिए जहां एक तरफ बाजार में बेहतर इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी को बढ़ाना होगा। वहीं साथ ही आंतरिक दहन इंजनों में वैश्विक स्तर पर कुशल प्रौद्योगिकियों को भी अपनाना होगा।