सुप्रीम कोर्ट ने 30 जनवरी, 2025 को कहा है कि टेनरियां सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों में से हैं। स्थानीय टेनरियां पलार नदी में दूषित या आंशिक रूप से साफ पानी छोड़ रही हैं। इसकी वजह से भूजल, जल स्रोतों और आस-पास के खेतों को स्थाई नुकसान पहुंचा है। मामला तमिलनाडु के वेल्लोर का है।
ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय ने चमड़ा उद्योग और अन्य स्रोतों से पलार नदी में होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए कई निर्देश दिए हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिया है कि यदि प्रभावित परिवारों और लोगों को अभी तक मुआवजा नहीं दिया गया है तो उन्हें मुआवजा दिया जाए। यह आदेश पारिस्थितिकी क्षति प्राधिकरण द्वारा सात मार्च, 2001 और 24 अगस्त, 2009 को लिए गए निर्णयों के आधार पर दिया गया है।
अदालत ने मुआवजे के भुगतान के लिए छह सप्ताह का समय दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार से यह भी कहा कि अगर प्रदूषण फैलाने वालों से मुआवजे की राशि अब तक नहीं ली गई है तो उसे वसूला जाए। यह काम राजस्व वसूली अधिनियम या किसी अन्य कानूनी तरीके से किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को केंद्र सरकार के साथ मिलकर चार सप्ताह के भीतर एक समिति बनाने का भी आदेश दिया है।
इस समिति का नेतृत्व एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश करेंगे और इसमें राज्य और केंद्रीय विभागों के सचिव, पर्यावरण विशेषज्ञ, प्रभावित समुदायों के लोग और अन्य लोग शामिल होंगे। इस समिति का काम प्रदूषण की स्थिति की जांच और ऑडिट करना और वेल्लोर जिले को स्वच्छ और स्वस्थ रखने में मदद करना है।
प्रदूषण फैलाने वालों को देना होगा मुआवजा
अदालत का कहना है कि, "प्रदूषण तब तक जारी रहने वाली समस्या है जब तक इसका समाधान नहीं हो जाता, इसलिए प्रदूषण फैलाने वालों को पीड़ितों को मुआवजा देना चाहिए और नुकसान की भरपाई करनी चाहिए।" अदालत द्वारा गठित समिति को कहा गया है कि वह स्थिति की नियमित जांच करे और समस्या का समाधान होने तक आवश्यक निर्णय ले।
राज्य को समिति के सुझावों का पालन करने के लिए कहा गया है। इसके साथ ही पलार नदी को साफ और बहाल करने के लिए एक व्यापक कायाकल्प योजना तैयार करने का भी निर्देश दिया गया है।
इस योजना में प्रदूषण को दूर करना, गाद को साफ करना और नदी में पर्याप्त पानी का प्रवाह सुनिश्चित करने से जुड़ी योजनाएं शामिल होनी चाहिए। राज्य को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि संबंधित अधिकारी समय पर यह काम पूरा करें।
तमिलनाडु को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वेल्लोर में चमड़ा उद्योगों का हर तीन महीने में निरीक्षण किया जाए ताकि यह पता लगाया जा सके कि वे पर्यावरण नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं। सरकार को अपनी वेबसाइट पर सभी महत्वपूर्ण विवरणों के साथ एक रिपोर्ट प्रकाशित करनी चाहिए। निरीक्षण दल को यह जांच करनी चाहिए कि क्या उद्योग प्रतिबंधित क्षेत्रों से काफी दूर स्थित हैं। क्या वे जीरो लिक्विड डिस्चार्ज मानकों को पूरा करते हैं।
इसके साथ ही तमिलनाडु को राज्य में हर नदी का पर्यावरण ऑडिट भी करवाना चाहिए ताकि प्रदूषण, क्षति, जल भंडारण में बदलाव और भूजल स्तर में आती गिरावट की जांच की जा सके। इसके नतीजों को सरकारी वेबसाइट, अखबारों और अन्य सार्वजनिक मंचों पर साझा किया जाना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि पर्यावरणीय क्षति के कारण स्थानीय किसानों का जीवन कठिन हो गया है, आसपास के लोगों और चमड़ा कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों को भारी कष्ट उठाना पड़ रहा है। साथ ही इससे आम लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो गया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 116 पृष्ठ के फैसले में कहा, "यह कहना गलत न होगा कि चमड़ा कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों की स्थिति मैला ढोने वाले श्रमिकों से बेहतर नहीं है। चूंकि अधिकांश श्रमिक महिलाएं हैं, इसलिए स्थिति और भी ज्यादा चिंताजनक है।"