प्रदूषण

कोविड-19 के दौरान भारत में सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा हुई कम

Dayanidhi

सल्फर डाइऑक्साइड एक जहरीली गैस है। यह श्वसन प्रणाली, विशेष रूप से फेफड़ों के कार्य को प्रभावित करती है और आंखों में जलन पैदा कर सकती है। सल्फर डाइऑक्साइड की वजह से सांस लेने में दिक्कत होती है और यह श्वसन मार्ग के संक्रमण के खतरे को बढ़ाती है। राहत की बात यह है कि भारत में पिछले 1 साल में सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा में कमी आई है।

अप्रैल 2019 के मुकाबले अप्रैल 2020 के बीच भारत में प्रदूषित क्षेत्रों में सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा में लगभग 40% की कमी आई है। यूरोपीय संघ कोपर्निकस कार्यक्रम के तहत कोपर्निकस सेंटिनल -5 पी उपग्रह के डेटा के माध्यम से वैज्ञानिकों ने नया मानचित्र तैयार किया है। इस मानचित्र से पता चलता है कि भारत में कोविड-19 के दौरान सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा में गिरावट आई है।

एक रिपोर्ट के अनुसार भारत को वायु प्रदूषण के मामले में सल्फर डाइऑक्साइड का दुनिया का सबसे बड़ा उत्सर्जक माना गया है। सल्फर डाइऑक्साइड कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का कारण बनता है। यह संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है और एसिड वर्षा में अहम भूमिका निभाता है।

जबकि कुछ वायुमंडलीय सल्फर डाइऑक्साइड प्राकृतिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न होता है, जैसे ज्वालामुखी आदि से। सल्फर डाइऑक्साइड का मानव गतिविधियों द्वारा भी बहुत अधिक मात्रा में उत्पादन किया जाता है - मुख्य रूप से बिजली बनाने में उपयोग किया जाने वाला जीवाश्म ईंधन के द्वारा।

भारत में, सल्फर डाइऑक्साइड का उत्सर्जन पिछले दस वर्षों में काफी बढ़ा है, जो देश के बड़े हिस्सों में धुंध की समस्याओं को बढ़ा रहा है। हालांकि, कोविड-19 महामारी के कारण, मानव और औद्योगिक गतिविधि 25 मार्च 2020 को बंद होने के बाद से यह काफी कम हो गया है।

मैप में दिखाया गया है कि अप्रैल 2020 की तुलना में अप्रैल 2019 में औसत सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा अधिक थी। लाल और बैंगनी के गहरे रंग वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड की अधिकता को दर्शाते हैं, जबकि काले डॉट्स, कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के स्थानों का संकेत देते हैं।

सल्फर डाइऑक्साइड की सांद्रता पिछले साल की तुलना में काफी कम हो गई है, विशेष रूप से नई दिल्ली के इलाको में, कई बड़े कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के साथ-साथ अन्य औद्योगिक क्षेत्रों के बंद होने से कमी आई है। पूर्वोत्तर राज्यों ओडिशा, झारखंड और छत्तीसगढ़ में कुछ बड़े संयंत्रों ने काफी सक्रियता बनाए रखी है, जबकि अन्य पूरी तरह से बंद हो गए हैं।

यह विश्लेषण कोपर्निकस सेंटिनल -5 पी उपग्रह पर ट्रोपोमी उपकरण के डेटा का उपयोग करके बनाया गया था। हाल ही में एक एल्गोरिथ्म सुधार, रॉयल बेल्जियन इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस एरोनॉमी (बीआईआरए-आईएएसबी) द्वारा पूरा किया गया है। यह टीम को देश में मानवजनित सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन की बढ़ती मात्रा को बेहतर ढंग से चित्रित करने में मदद करता है।

बीआईआरए-आईएएसबी के निकोलस थेयस ने कहा हम नए एल्गोरिथम के विकास से बहुत खुश हैं क्योंकि यह एंथ्रोपोजेनिक गतिविधियों के कारण कम सल्फर डाइऑक्साइड सांद्रता के प्रति बहुत संवेदनशील है। यह एन्थ्रोपोजेनिक उत्सर्जन का सटीकता से पता लगा लेता है। 

ईएसए के कोपरनिकस सेंटिनल -5 पी मिशन मैनेजर, क्लॉज़ जेहनेर कहते हैं हमारे परिचालन उत्पाद के साथ, हम ज्वालामुखियों द्वारा उत्सर्जित सल्फर डाइऑक्साइड सांद्रता को आसानी से माप सकते हैं। लेकिन हमें मानवजनित सल्फर डाइऑक्साइड के उत्सर्जन का पता लगाने में समस्या होती है। यह नया एल्गोरिथ्म नए अनुप्रयोगों को सफल बनाने में मदद करेगा। उदाहरण के लिए, मौजूदा सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन सूची का सत्यापन करने के बाद, इसे जर्मन एयरोस्पेस सेंटर में परिचालन प्रहरी -5 पी प्रसंस्करण श्रृंखला में लागू किया गया है।