प्रदूषण

वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से बढ़ सकता है हार्ट एरिथमिया का खतरा, रिसर्च में हुआ खुलासा

एरिथमिया ह्रदय की धड़कन में आई अनियमितता से जुड़ा है। सरल शब्दों में कहें तो यह एक ऐसी समस्या है जिसमें दिल की धड़कन कभी सामान्य से तेज तो कभी धीमी हो जाती है

Lalit Maurya

वायु प्रदूषण एक ऐसी समस्या है इसे जितना ज्यादा हम समझने की कोशिश कर रहे हैं उससे जुड़े उतने नए खतरे हमारे सामने आते जा रहे हैं। एरिथमिया के रूप में इससे जुड़े ऐसे ही एक नए खतरे का पता चला है। इस बारे में किए नए अध्ययन के अनुसार लम्बे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से ‘एरिथमिया’ यानी हृदय अतालता का खतरा बढ़ सकता है।

यह जानकारी चीन में वायु प्रदूषण और एरिथमिया के बीच के संबंधों को लेकर किए अध्ययन में सामने आई है। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने चाइनीज कार्डियोवास्कुलर एसोसिएशन के डेटाबेस से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इसके नतीजे कैनेडियन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।

इस अध्ययन के दौरान 2015 से 2021 के बीच चीन के 322 शहरों में 2025 अस्पतालों में भर्ती 190,115 मरीजों का अध्ययन किया गया है, जो एरिथमिया का शिकार थे। यह मरीज एरिथमिया के विभिन्न रूपों जैसे एट्रियल फिब्रिलेशन, एट्रियल फ्लटर, एट्रियल-वेंट्रिकुलर प्रीमेच्योर बीट्स और सुप्रावेंट्रिकुलर से पीड़ित थे।

इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने उन शहरों में प्रदूषण के सूक्ष्म कणों पीएम 2.5, पीएम 10, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2), सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2), कार्बन मोनोऑक्साइड और ओजोन के प्रति घंटे के स्तर का भी अध्ययन किया है। अपनी रिसर्च में उन्होंने हर घंटे, रोज कई सालों तक इन प्रदूषकों और धड़कन में अनियमितता के बीच सम्बन्ध का विश्लेषण किया है। इसके विश्लेषण के लिए शोधकर्ताओं ने लॉजिस्टिक रिग्रेशन मॉडल का उपयोग किया है।

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गौरतलब है कि एरिथमिया ह्रदय की धड़कन में आई अनियमितता से जुड़ा है। सरल शब्दों में कहें तो यह एक ऐसी समस्या है जिसमें दिल की धड़कन कभी सामान्य से तेज तो कभी धीमी हो जाती है। ऐसा तब होता है जब ह्रदय को नियंत्रित करने वाली विद्युत तरंगे ठीक से काम नहीं करती।

इसकी वजह से सीने, गले और गर्दन में दर्द हो सकता है। साथ ही यह गंभीर रूप ले सकती है जो स्ट्रोक, हार्ट फेलियर और यहां तक की मृत्यु का भी कारण बन सकती है। सामान्य तौर पर ह्रदय गति 60 से 90 के बीच रहती है लेकिन जब वो 100 प्रति मिनट से अधिक हो जाती है तो उसे टेकी एरिथमिया कहा जाता है और यदि वो प्रति मिनट 60 से नीचे चली जाती है तो इसे ब्रेडी एरिथमिया कहा जाता है।

भारत सहित दुनिया भर के लिए बड़ा खतरा है वायु प्रदूषण

इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक वायु प्रदूषण के स्तर में वृद्धि के पहले कुछ घंटों में एरिथमिया के जोखिम में उल्लेखनीय वृद्धि हुई थी। जो ह्रदय रोग और मृत्यु के जोखिम को बढ़ा सकती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि चीन में अभी भी वायु गुणवत्ता, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों से काफी खराब है। 

इस बारे में शंघाई की फुडान यूनिवर्सिटी और अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉक्टर रेन्जी चेन ने बताया कि “जल्द वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से एरिथमिया का खतरा बढ़ गया था जो इसके संपर्क में आने के पहले कुछ घंटों के दौरान हुआ।“ उनके अनुसार यह जोखिम 24 घंटों तक बना रह सकता है। 

शोधकर्ताओं के मुताबिक अध्ययन किए गए सभी छह प्रदूषकों में से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) का सभी चार प्रकार के एरिथमिया के साथ सबसे ज्यादा  मजबूत संबंध दर्ज किया गया। साथ ही प्रदूषण के स्तर में वृद्धि के साथ उतना अधिक खतरा दर्ज किया गया।

ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी के मुताबिक 2019 में वैश्विक स्तर पर करीब 5.97 करोड़ लोग एट्रियल फिब्रिलेशन और एट्रियल फ्लटर से पीड़ित थे। यदि इनके प्रभाव की बात करें तो वो 2019 में 83.9 लाख विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों के बराबर आंका गया था।

हालांकि वायु प्रदूषण के कारण ऐसा कैसे होता है यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है लेकिन रिसर्च के मुताबिक इस बात के प्रमाण है कि बढ़ता प्रदूषण ऑक्सीडेटिव तनाव और सूजन का कारण बनता है, जो ह्रदय की विद्युत गतिविधियों को प्रभावित कर सकता है। इनकी वजह से मौजूद कई मेम्ब्रेन चैनल्स पर असर पड़ता है साथ ही यह स्वायत्त तंत्रिका प्रणाली (एएनएस) को भी प्रभावित करता है।

हालांकि यह अध्ययन चीन में किया गया है लेकिन ध्यान रखना होगा कि बढ़ता वायु प्रदूषण केवल चीन ही नहीं बल्कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित दुनिया भर के लिए बड़ा खतरा है, जिसकी पुष्टि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी की है। वहीं रिपोर्ट के मुताबिक भारत, दुनिया का आठवां सबसे प्रदूषित देश है। जहां वायु गुणवत्ता, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों से दस गुणा ज्यादा खराब है   

इतना ही नहीं दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 39 भारत में हैं। इनमें भिवाड़ी, दिल्ली, दरभंगा, आसोपुर, नई दिल्ली, पटना, गाजियाबाद, धारूहेड़ा, छपरा, मुजफ्फरनगर, ग्रेटर नोएडा, बहादुरगढ़, फरीदाबाद, मुजफ्फरपुर, नोएडा, जींद, चरखी दादरी, रोहतक, गया, आलमपुर, कुरुक्षेत्र, भिवानी, मेरठ, हिसार, भागलपुर, युमनानगर, बुलंदशहर, हाजीपुर, गुरुग्राम, लोहार माजरा कलान, दादरी, कैथल, फरीदकोट, फतेहगढ़ साहिब, हापुड़, जयंत, अंबाला, कानपुर और फतेहाबाद शामिल हैं।

जर्नल लैंसेट प्लैनेटरी हैल्थ में प्रकाशित एक नई रिसर्च से पता चला है कि दुनिया की केवल 0.001 फीसदी आबादी ही सुरक्षित हवा में सांस ले रही है। जहां प्रदूषण का वार्षिक औसत स्तर पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से कम है। मतलब की भारत सहित दुनिया की ज्यादातर आबादी ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर है जो उसे हर दिन बीमार कर रही है।

गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पीएम 2.5 के लिए पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर का मानक तय किया है। डब्लूएचओ के अनुसार इससे ज्यादा दूषित हवा में सांस लेने से बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। ऐसे में वायु प्रदूषण के इन बढ़ते खतरों को देखते हुए यह जरूरी है कि जितना ज्यादा हो सके इसे कम किया जाए। अध्ययन में भी वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

रिसर्च के मुताबिक सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने, कारखानों और वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को कम करके और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ाने देने जैसे उपायों को अपनाकर वायु गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है जो हृदय रोगों के साथ स्वास्थ्य पर पड़ते दुष्प्रभावों को रोकने में भी मददगार होगा। 

भारत में वायु गुणवत्ता की ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।