विश्व बैंक ने "द चेंजिंग वेल्थ ऑफ नेशंस 2021" रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि वायु प्रदूषण के कारण दुनिया में सबसे अधिक नुकसान दक्षिण एशिया को हो रहा है।
इस रिपोर्ट में 146 देशों की 1995 से 2018 की अवधि के दौरान संपत्ति के सृजन और वितरण का आकलन किया गया है। संपत्ति के आकलन के लिए विश्व बैंक ने सकल घरेलू उत्पाद, मानव उत्पादित पूंजी, मानव पूंजी, और प्राकृतिक पूंजी जैसे नवीकरणीय और गैर-नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधनों को शामिल किया है।
विश्व बैंक ने मानव पूंजी को "एक व्यक्ति के जीवन भर की कमाई" के रूप में परिभाषित करता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर की संपत्ति में मानव पूंजी सबसे बड़ा स्रोत है। 2018 में कुल वैश्विक संपत्ति में मानव पूंजी की हिस्सेदारी 64 प्रतिशत रही"। रिपोर्ट में कहा गया है, "मध्यम आय वाले देशों ने मानव पूंजी में निवेश को बढ़ाया। इसकी वजह से इन देशों में मानव पूंजी संपत्ति में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।"
दक्षिण एशिया में भारत एक प्रमुख देश है। दक्षिण एशिया की कुल संपत्ति में मानव पूंजी की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत है। सर्वेक्षण अवधि - 1995-2018 - में इसमें कोई बदलाव नहीं आया। इससे पता चलता है कि इस क्षेत्र में स्वस्थ कार्यबल का काफी महत्व है।
लेकिन, ऐसा लगता है कि वायु प्रदूषण मानव पूंजी पर भारी पड़ रहा है, जिसकी वजह से धन-संपदा प्रभावित हो रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एक क्षेत्र के रूप में दक्षिण एशिया वायु प्रदूषण के कारण मानव पूंजी को होने वाले नुकसान के मामले में सबसे आगे है। जबकि रिपोर्ट में अन्य क्षेत्रों के बारे में नुकसान की मात्रा निर्धारित नहीं की गई है।
1995 के बाद से दक्षिण एशिया की संपत्ति में वृद्धि हुई है, लेकिन फिर भी, इसकी प्रति व्यक्ति संपत्ति दुनिया में सबसे कम है। जिसकी तुलना उप-सहारा अफ्रीका से की जा सकती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जनसंख्या वृद्धि के कारण दक्षिण एशिया में रह रहे लोगों की प्रति व्यक्ति संपत्ति दुनिया में सबसे कम है। इस क्षेत्र की 80 प्रतिशत से अधिक संपत्ति का श्रेय पुरुषों को जाता है, जिससे दक्षिण एशिया में लैंगिक असमानता का अंदाजा मानव पूंजी में भारी लैंगिक असमानता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन दो दशकों में विश्व स्तर पर धन-संपदा में वृद्धि हुई है। वास्तव में उच्च आय वाले देशों की तरह मध्यम आय वाले भी संपत्ति अर्जन की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। हालांकि, बढ़ती समृद्धि के बावजूद प्राकृत्तिक संपदा के प्रबंधन में कमी रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों ने 1995 से 2018 के दौरान प्रति व्यक्ति वन संपदा में 8 प्रतिशत की गिरावट आई है, जिसका मतलब है कि जंगलों के कटने की घटनाएं बढ़ी हैं।
इस रिपोर्ट के बाद यह कहा जा सकता है कि दुनिया में धन-संपत्ति तो बढ़ रही है, लेकिन इसका वितरण समान नहीं है। वैश्विक संपत्ति में कम आय वाले देशों की हिस्सेदारी 1 प्रतिशत से कम है। यह एक ऐसा स्तर है, जो कई दशकों से समान है, इसमें कोई बदलाव नहीं आया है। दिलचस्प बात यह है कि इन कम आय वाले देशों में दुनिया की 8 फीसदी आबादी रहती है।
सर्वेक्षण में पाया गया कि जो देश प्राकृतिक संसाधनों पर अधिक निर्भर हैं, वे भी संसाधनों के ह्रास के कारण संपत्ति में गिरावट की बात कर रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, कम आय वाले एक तिहाई से अधिक देशों में प्रति व्यक्ति संपत्ति में गिरावट देखी गई। इन देशों में नवीकरणीय प्राकृतिक पूंजी का उचित प्रबंधन करना बेहद जरूरी है, क्योंकि उनकी कुल संपत्ति का 23 प्रतिशत हिस्सा नवीकरणीय प्राकृतिक पूंजी का है।