दुनिया भर में इंसानों द्वारा किए जा रहे ग्रीनहाउस गैसों के करीब 3 फीसदी हिस्से के लिए शिपिंग जिम्मेवार है। जिसके बारे में अनुमान है कि 2050 तक उसमें 50 फीसदी का इजाफा हो सकता है। हालांकि इसके बावजूद अभी भी इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यही नहीं शिपिंग के कारण पैदा होने वाले अन्य प्रदूषक जैसे नाइट्रोजन और सल्फर ऑक्साइड भी स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा हैं। ये प्रदूषक हवा की गुणवत्ता को इतना कम कर देते हैं, जिससे समय से पहले ही मौत हो जाती है।
शिपिंग से होने वाले उत्सर्जन को देखें तो उसके लिए काफी हद तक बड़े डीजल इंजनों में उपयोग होने वाला भारी ईंधन है जो बड़े पैमाने पर समुद्री और तटीय क्षेत्रों को प्रदूषित कर रहा है। इन इंजनों से निकलने वाले नाइट्रोजन और सल्फर ऑक्साइड के कण पीएम 2.5 के निर्माण में योगदान देते हैं आकार में बहुत छोटे इन कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर तक का होता है।
यह कण सांस और ह्रदय सम्बन्धी रोगों को जन्म देते हैं। पिछले अध्ययनों से पता चला है कि शिपिंग से होने वाला पीएम 2.5 का उत्सर्जन हर साल हृदय तथा फेफड़ों संबंधी कैंसर से होने वाली करीब 60,000 मौतों के लिए जिम्मेवार है।
अनुमान है कि इंजन में प्रयोग किए जाने वाले सल्फर युक्त ईंधन को सीमित करने के लिए बनाई अंतरराष्ट्रीय नीति आईएमओ 2020 की मदद से पीएम 2.5 को इतना कम किया जा सकता है जिससे हर साल करीब 34 फीसदी मौतों को टाला जा सकता है। यह नीति ईंधन में सल्फर सामग्री को 0.5 फीसदी तक सीमित करती है।
देखा जाए तो शिपिंग से होने वाले उत्सर्जन के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह की शिपिंग गतिविधियां जिम्मेवार हैं। ऐसे में शिपिंग उद्योग को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों द्वारा संचालित किया जाता है। ऐसे में वैश्विक स्तर पर शिपिंग से होने वाले उत्सर्जन में कमी लाने और वायु गुणवत्ता और स्वास्थ्य में सुधार के लिए दोनों पर ही ध्यान देने की जरुरत है।
शिपिंग से होने वाले उत्सर्जन को समझने और नियंत्रित करने के लिए मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और हांगकांग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं द्वारा एक अध्ययन किया गया है जो जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुआ है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने 2015 में घरेलू और अंतराष्ट्रीय शिपिंग से होने वाले उत्सर्जन का डेटाबेस बनाया है। साथ ही उन्होंने इन जहाजों से होने वाले पीएम 2.5 की एकाग्रता का पता लगाया है। जिसे उन्होंने मॉडल का उपयोग करके प्रदूषण से होने वाली मृत्युदर का अनुमान लगाया है।
94,000 लोगों की मौत के लिए जिम्मेवार है शिपिंग से होने वाला प्रदूषण
शोध से पता चला है कि 2015 में शिपिंग से होने वाले पीएम 2.5 प्रदूषण के चलते करीब 94,000 लोगों की असमय जान गई थी, जिसके 83 फीसदी के लिए अंतरराष्ट्रीय और 17 फीसदी मौतों के लिए घरेलु शिपिंग जिम्मेवार थी। जहां अधिकतर देशों में स्वास्थ्य पर पड़ते बोझ के लिए अंतरराष्ट्रीय शिपिंग जिम्मेवार थी वहीं पूर्वी एशिया के देशों में अंतर्देशीय शिपिंग ने स्वास्थ्य को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया था। अनुमान है कि चीन में शिपिंग के कारण होने वाले प्रदूषण और उससे होने वाली कुल मौतों के करीब 43 फीसदी के लिए घरेलू शिपिंग जिम्मेवार थी।
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यदि आईएमओ 2020 को लागु कर दिया जाए तो उससे हर वर्ष करीब 30,000 लोगों की जान बचाई जा सकती है। वहीं अनुमान है कि यदि सल्फर युक्त ईंधन से जुड़े नियमों को कठोर कर भी दिया जाए तो उससे मामूली सा अंतर आएगा। यदि सल्फर सामग्री को 0.1 फीसदी तक सीमित कर भी दिया जाए तो उससे हर वर्ष पीएम 2.5 से होने वाली मौतों में 5,000 की कमी आएगी। वहीं इसके विपरीत यदि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड से जुड़े टियर III मानक को लागु करने से 33,000 से अधिक मौतों को टाला जा सकता है।
ऐसे में एमआईटी से जुड़े इस शोध की शोधकर्ता नोएल सेलिन का कहना है कि जिन देशों में घरेलु शिपिंग से ज्यादा जानें जा रही है वहां प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नीतियों और नियमों की जरुरत है, जबकि जिन क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय जहाजों से ज्यादा नुकसान हो रहा है, वहां स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों को सीमित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की जरुरत पड़ेगी।