प्रदूषण

पराली, पटाखों और बदले मौसम की वजह से छाई दिल्ली-एनसीआर पर जहरीली धुंध: सीएसई

इस वर्ष अब तक धुंध की औसत सघनता प्रति दिन 329 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज की गई है, जोकि 2020 में छाई धुंध से 7 फीसदी कम है, वहीं 2018 की तुलना में करीब 9 फीसदी ज्यादा है।

Lalit Maurya

दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) को मौसम की पहली घनी धुंध ने अपने आगोश में ले लिया है और सम्भावना जताई जा रही है कि यह स्थिति अगले दो दिनों तक बनी रह सकती है। यही नहीं सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा बुधवार को जारी नए विश्लेषण से पता चला है कि इस धुंध ने न केवल दिल्ली बल्कि गंगा के पूरे मैदानी क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लिया है। रिपोर्ट की मानें तो यह पूरा क्षेत्र एक स्वास्थ्य आपातकाल से गुजर रहा है, ऐसे में प्रदूषण को कम करने के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाने की जरुरत है। 

यदि दिल्ली में छाई धुंध की अवधि की बात करें तो यह 2018 और 2020 में मौसम की पहली धुंध की अवधि से लगभग मिलती जुलती है, गौरतलब है कि उस समय इस धुंध का असर छह दिनों तक रहा था। वहीं विश्लेषण के अनुसार यदि हालात नहीं सुधरे तो यह 2019 में आठ दिनों तक छाई रही धुंध से भी आगे निकल सकता है। इस वर्ष अब तक धुंध की औसत सघनता प्रति दिन 329 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज की गई है, जोकि 2020 में छाई धुंध से 7 फीसदी और 2019 की तुलना में 3 फीसदी कम है। वहीं 2018 की तुलना में यह करीब 9 फीसदी ज्यादा है। 

विश्लेषण के अनुसार स्थानीय तौर पर हवा के चलने के बावजूद भी इस वर्ष लम्बी अवधि तक धुंध के छाए रहने की सम्भावना है, ऐसा शहर में प्रदूषण नियंत्रण उपायों की कमी के कारण हो सकता है।

इस बारे में जानकारी देते हुए सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी ने बताया कि मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों (ठंडी और शांत हवाएं), पराली जलाने और पटाखों के संयुक्त असर से यह धुंध छा गई है। उनके अनुसार हालांकि दिल्ली पर घनी धुंध छाई है, लेकिन मध्य अक्टूबर से 8 नवंबर, 2021 के बीच पराली जलने के कारण होने वाले धुएं में कमी दर्ज की गई है। उसका दैनिक औसत पिछले चार वर्षों में सबसे कम रहा है। लेकिन 6 नवंबर के बाद से उसमें बढ़ोतरी देखी गई है, जबकि 7 नवंबर को इसकी हिस्सेदारी बढ़कर 48 फीसदी तक पहुंच गई थी। गौरतलब है कि यह अभी भी काफी ज्यादा है। 

वहीं सीएसई की अर्बन लैब विभाग के प्रोग्राम मैनेजर अविकल सोमवंशी का कहना है, "हालांकि पीएम 2.5 की बहुत अधिक मात्रा ने सबका ध्यान आकर्षित किया है  पर इस धुंध के दौरान ओजोन, कार्बन मोनोऑक्सइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर भी ऊंचा बना हुआ है। यही नहीं दिवाली की रात में सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में वृद्धि दर्ज की गई थी जो पटाखों से बढ़ते प्रदूषण को दर्शाता है। दिवाली की रात (रात 8 बजे से सुबह 8 बजे) पीएम2.5 की एकाग्रता 2017 के बाद से सबसे ज्यादा दर्ज की गई थी। 

दिवाली के अगले दिन 501 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पर पहुंच गया था पीएम 2.5 का स्तर

रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 4 नवंबर को हवा में पीएम 2.5 का स्तर 250 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया था। जो एक्यूआई की गंभीर श्रेणी से भी ज्यादा था। वहीं साथ दिन बाद भी स्थिति में कोई ज्यादा बदलाव नहीं आया है। 5 नवंबर को इसका स्तर 501 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पर पहुंच गया था जबकि फिर धीरे-धीरे 8 नवंबर को इसका स्तर घटकर 256 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर आ गया था। 

इसके बाद यह एकबार फिर से बढ़ना शुरु गया था, 9 नवंबर को इसका स्तर 264 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज किया गया था। वहीं यदि 10 नवंबर की बात करें तो यदि मौसम की स्थिति में सुधार नहीं होता है, तो इस दिन भी इसका औसत स्तर 250 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा रहने की सम्भावना है। 

यदि सिर्फ दिवाली के सन्दर्भ में देखें तो इस वर्ष दिवाली की रात (रात 8 बजे से सुबह 8 बजे) पीएम2.5 का स्तर पिछले पांच वर्षों में सबसे ज्यादा दर्ज किया गया था। 12-घंटे की रात का औसत 747 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था जोकि 2020 की तुलना में 22 फीसदी ज्यादा था। यही नहीं इस बार दिवाली की रात पीएम2.5 का स्तर पिछले सप्ताह के औसत की तुलना में 4.5 गुना ज्यादा था।  

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि सीपीसीबी पीएम2.5 डेटा को 1,000 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पर सीमित करता है। लेकिन इसका स्तर उससे भी ऊपर जा सकता है। इस बार दिल्ली के 38 में से 26 ऑपरेशनल मॉनिटरिंग स्टेशनों ने 1,000 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के आंकड़े को पार कर लिया था।  वहीं 2020 में, 38 में से 23 और 2019 में 22 स्टेशनों ने इस आंकड़ें को पार किया था। ऐसे में यदि इसे सीमित न किया जाता तो इसका स्तर प्रति घंटा 1,000 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से भी ज्यादा हो सकता था।

वहीं डीपीसीसी की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि ओखला फेज 2 में इसकी प्रति घंटा एकाग्रता 1,984 और अशोक विहार में 1,957 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर दर्ज की गई थी। वहीं डीपीसीसी के 24 स्टेशनों के लिए 12-घंटे की रात का औसत 824 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था। वहीं 2020 की तुलना में इस वर्ष दिवाली की रात नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर कम था।

पिछले चार वर्षों में पहली बार दर्ज की गई पराली से होने वाले प्रदूषण में कमी

रिपोर्ट की मानें तो इस वर्ष पराली जलने से होने वाले प्रदूषण में कमी आई है। जब मध्य अक्टूबर से 8 नवंबर के बीच दिल्ली के दैनिक पीएम 2.5 में धुंए का योगदान पिछले चार वर्षों में सबसे कम दर्ज किया गया था। अब तक यह प्रतिदिन औसतन 12 फीसदी दर्ज किया गया है।  वहीं सफर द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 2020 में इसकी हिस्सेदारी 17 फीसदी,  2019 में प्रति दिन 14 फीसदी और 2018 में प्रति दिन 16 फीसदी दर्ज की गई थी। 

गौरतलब है कि दिल्ली के पीएम स्तर में धुएं का सबसे ज्यादा योगदान 7 नवंबर को दर्ज किया गया था, जब यह बढ़कर 48 फीसदी तक पहुंच गया था। देखा जाए तो यह 2018 के बाद सबसे ज्यादा है, इससे पहले 5 नवंबर 2018 को यह 58 फीसदी दर्ज किया गया था। पर हैरानी की बात है कि उस दिन दिल्ली में पीएम2.5 में असामान्य वृद्धि नहीं हुई थी। 

सीएसई द्वारा किया यह विश्लेषण दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में वायु गुणवत्ता की निगरानी कर रहे स्टेशनों और गंगा के मैदानी इलाकों से रियल टाइम में प्राप्त आंकड़ों पर आधारित है। यही नहीं इस विश्लेषण में पंजाब, चंडीगढ़, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के 67 शहरों में फैले 156 निरंतर परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों (सीएएक्यूएमएस) को शामिल किया गया था।

वहीं मौसम सम्बन्धी आंकड़ों के लिए भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) से प्राप्त आंकड़ों, आग सम्बन्धी आंकड़ों के लिए नासा के फायर इंफॉर्मेशन फॉर रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम से प्राप्त आंकड़ों को लिया गया है जबकि दिल्ली में वायु गुणवत्ता में पराली जलने से होने वाले धुंए की हिस्सेदारी कितनी है इसका अनुमान लगाने के लिए पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान और अनुसंधान प्रणाली (सफर) से प्राप्त आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है। 

क्या है समाधान

इस प्रदूषण के बारे में रॉयचौधरी का कहना है कि यह जो धुंध छाई है वो स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है। इससे बचने के लिए सभी प्रमुख दहन स्रोतों जिनमें वाहन, उद्योग और अपशिष्ट को जलाना और धूल के स्रोतों जिनमें निर्माण और सड़कें शामिल है उन पर तत्काल कार्रवाई की जरुरत है। हमें प्रदूषण के स्रोतों और उनके हॉटस्पॉट को ध्यान में रखकर कार्रवाई करने की जरुरत है। 

यही नहीं सीएसई सार्वजनिक परिवहन प्रणाली और साइकिल के उपयोग को बढ़ावा देने की बात कही है जिससे लम्बी अवधि में इस प्रदूषण पर लगाम लगाई जा सके। यही नहीं उत्सर्जन को रोकने के लिए सख्त कदम उठाने के साथ सभी औद्योगिक इकाइयों से प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन के इस्तेमाल को बंद करने की बात कही है। इसी तरह कचरे से निपटने के लिए उनका अलग-अलग संग्रह करना और उसे रीसायकल करने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की जरुरत पर बल दिया है।