प्लास्टिक प्रदूषण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में पारिस्थितिक संतुलन के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है। प्लास्टिक के छोटे टुकड़े विभिन्न समुद्री जीवों के माध्यम से खाद्य पदार्थों में प्रवेश कर सकते हैं, जो उनके शरीर विज्ञान और स्वास्थ्य को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकते है। समुद्री जीवों पर प्लास्टिक के प्रभाव को लेकर शोधकर्ताओं ने कछुओं पर एक विश्लेषण किया है।
कछुए एड्रियाटिक सागर में फैले उच्च स्तर के प्लास्टिक प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं। यह खुलासा बोलोग्ना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के एक समूह ने इटली के रिकसिओन में फोंडाजिओन सेतासिया के अस्पताल में भर्ती 45 कछुओं के विश्लेषण के आधार पर किया। उन्हें कछुओं के मल में प्लास्टिक का कचरा मिला है।
इसके अलावा, उनके विश्लेषण के नतीजों से पता चलता हैं कि कैसे उनकी आंतों में खतरनाक रूप से प्लास्टिक का कचरा उनके माइक्रोबायोटा को बदल सकता है और यह उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर सकता है।
बोलोग्ना विश्वविद्यालय के जैवप्रौद्योगिकी में शोधकर्ता और अध्ययनकर्ता एलेना बियागी ने बताया कि इस अध्ययन के परिणाम एड्रियाटिक सागर के पारिस्थितिकी तंत्र में प्लास्टिक प्रदूषण की गंभीरता को साबित करते हैं।
प्लास्टिक का कचरा समुद्री भोजन के जाल में प्रवेश करता है और यह खाद्य श्रृंखला में अधिक मात्रा में पाया जा सकता है, जिसके शिकार समुद्री कछुए हो रहे हैं। यह उनके स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है, जिनमें से कुछ उनके आंतों के माइक्रोबायोटा में होने वाले बदलावों के लिए जिम्मेदार हैं।
प्रहरी के रूप में कछुए
एक अनुमान के मुताबिक हर साल 1 करोड़ टन से अधिक प्लास्टिक महासागरों में प्रवेश करता है, जो 80 फीसदी से अधिक समुद्री कूड़े के लिए जिम्मेदार होता है। समुद्री स्तनधारियों, पक्षियों और समुद्री कछुओं की लगभग 260 प्रजातियों को प्लास्टिक के कचरे के कारण खतरा हैं, इस कचरे को उनके द्वारा निगलने की आशंका रहती है।
इसके अलावा, समय के साथ-साथ प्लास्टिक छोटे टुकड़ों और फिलामेंट्स (माइक्रोप्लास्टिक्स) में टूट जाता है जिसे मछली और शंख प्रजाति निगल सकते हैं, जिससे माइक्रोप्लास्टिक्स मनुष्यों सहित शीर्ष शिकारियों के लिए लगातार खाद्य श्रृंखला में जमा हो सकता है।
इस संदर्भ में, समुद्री कछुए (कैरेटा कैरेटा) एक प्रमुख प्रजाति से संबंधित हैं। दरअसल, वे समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण के स्तर की निगरानी करते हैं क्योंकि उनका स्वास्थ्य उस वातावरण से जुड़ा है जिसमें वे रहते हैं। विशेष रूप से, प्लास्टिक का कचरा, उनके लिए एक बड़ा खतरा है, समुद्री कछुए अक्सर प्लास्टिक के कचरे को शिकार समझ कर खाने की गलती करते हैं। उनके घूमने के दौरान इसको निगला जा सकता है या उन छोटी मछलियों का शिकार कर सकते हैं जो पहले से ही प्लास्टिक खा चुकी हों।
शोधकर्ताओं ने उनके पर्यावरणीय संदर्भ का यथासंभव सटीक अध्ययन करने का प्रयास किया। उन्होंने इटली के रिमिनी में 'फोंडाज़िओन सेतासेआ' के सी टर्टल रेस्क्यू सेंटर (सीआरटीएम) में भर्ती किए गए 45 कछुओं के नमूनों का विश्लेषण किया। एड्रियाटिक सागर में प्रदूषण जरूरत से ज्यादा मछली पकड़ने और पर्यटन के कारण होता है और इसका उच्च स्तर बहुत चिंताजनक है। यह वास्तव में कुछओं के सभी 45 नमूनों में पाए गए प्लास्टिक कचरे के द्वारा इसकी पुष्टि की गई है।
अध्ययनकर्ता प्रो. सिल्विया फ्रेंज़ेलीटी कहते हैं कि हमारे परिणामों से पता चलता है कि, अध्ययन के तहत सभी 45 कछुओं के नमूनों में प्लास्टिक कचरा पाया गया, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कछुए कितने समय तक बचाव केंद्र (रेस्क्यू सेंटर ) में रहे। इस मामले पर मौजूदा साहित्य के साथ हमारे डेटासेट की तुलना करना मुश्किल है क्योंकि पिछले अध्ययनों में मृत जानवरों पर नेक्रोस्कोपी से प्राप्त आंकड़ों पर विचार किया गया था। इसके बावजूद, हमारे शोध से पता चलता है कि देखे गए कछुओं के मल में प्लास्टिक प्रदूषण का स्तर उन जानवरों की संख्या के संदर्भ में बहुत अधिक है, जो प्लास्टिक को निगलते हैं और उनके मल में प्लास्टिक के कचरे की सांद्रता बहुत अधिक होती है। यह शोध फ्रंटियर ऑफ मरीन मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
प्लास्टिक और आंत माइक्रोबायोटा
इस अध्ययन के आंकड़े हमें समुद्री प्रदूषण और कछुओं के स्वास्थ्य के बारे में बताते हैं। एक बार निगले जाने के बाद, प्लास्टिक का कचरा उनके आंतों के मार्ग के अंतिम भाग में जमा हो जाता है, जहां इसे बाहर निकालने से पहले हफ्तों तक रखा जा सकता है। प्लास्टिक का कचरा उपकला (एपिथेलियल) के नुकसान का कारण बन सकता है और साथ ही जहरीले रसायन भी अवशोषित हो सकते हैं। अंत में, प्लास्टिक का कचरा आंत माइक्रोबायोटा में बदलाव करने को मजबूर कर सकता है, अंततः इसकी संरचना और कार्यप्रणाली बदल सकती है।
माइक्रोबायोटा सभी कशेरुकाओं में एक केंद्रीय भूमिका निभाता है, यह पाचन में मदद करता है और पोषक तत्वों को मिलाता है, चयापचय को नियंत्रित करता है, प्रतिरक्षा प्रणाली के साथ जुड़ता है और रोगजनकों के वहां बसने से रोकने में मदद करता है। यही कारण है कि माइक्रोबायोटा में किसी भी परिवर्तन से जीव के स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
एलेना बियागी ने कहा कि हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि प्लास्टिक कचरे की उपस्थिति से कछुओं के आंत माइक्रोबायोटा के विशिष्ट रोग संबंधी परिवर्तनों और उनके स्वास्थ्य पर खतरनाक प्रभाव पड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए, परिणाम बताते हैं कि प्लास्टिक का कचरा कुछ जीवाणु समुदायों के वाहक होते है खासकर जो विषैले रसायनों या कुछ रोगजनकों के साथ पनपने हैं, जो आमतौर पर समुद्री वातावरण में पाए जाते हैं। ये बैक्टीरिया और रोगजनक तब प्लास्टिक के मलबे के माध्यम से कछुओं के आंतों तक पहुंच सकते हैं।