प्रदूषण

बाल्टिक सागर में स्क्रबर जल छोड़े जाने से 680 मिलियन यूरो का हुआ पर्यावरणीय नुकसान

स्क्रबर को पानी के जहाजों से भारी ईंधन तेल के जलने के दौरान निकलने वाली गैसों की एक सफाई प्रणाली के रूप में जाना जाता है

Dayanidhi

स्क्रबर प्रणाली युक्त जहाजों से होने वाले उत्सर्जन से बाल्टिक सागर को बहुत ज्यादा नुकसान होता है। स्वीडन के चाल्मर्स यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि उत्सर्जनों की वजह से 2014 से 2022 के बीच 680 मिलियन यूरो से अधिक की सामाजिक-आर्थिक लागत के समान प्रदूषण पैदा हुआ।

साथ ही, शोधकर्ताओं ने पाया कि बहुचर्चित तकनीक में शिपिंग कंपनियों के निवेश, जहां निकलने वाली गैसों को धोया जाता है और समुद्र में छोड़ा जाता है, अधिकांश जहाजों से यह पहले ही वसूला जा चुका है। इसका मतलब यह है कि उद्योग अब अपने जहाजों को स्वच्छ ईंधन के बजाय सस्ते भारी ईंधन पर चलाकर अरबों यूरो कमा रहे हैं।

यह अध्ययन स्क्रबर पानी के प्रतिबंध पर चल रही चर्चाओं पर आधारित है, जहां जहाजों से निकले वाली गैसों की सफाई प्रणालियों से प्रदूषित पानी का भारी मात्रा में उत्पादन होता है और उसे समुद्र में डाल दिया जाता है। यह मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) के भीतर कई स्तरों पर एजेंडे में है और इस पर ईयू स्तर के साथ-साथ स्वीडिश संसद जैसे राष्ट्रीय स्तरों पर भी चर्चा की जा रही है, हालांकि प्रतिबंध पर स्वीडिश निर्णय अभी तक नहीं लिया गया है।

शोधकर्ता ने अपने पिछले अध्ययन में बताया था कि बाल्टिक सागर में सालाना 20 करोड़ क्यूबिक मीटर से अधिक पर्यावरणीय रूप से खतरनाक स्क्रबर जल छोड़ा जाता है। बाल्टिक सागर में कुछ कैंसरकारी पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन के कुल उत्सर्जन में स्क्रबर पानी का योगदान नौ प्रतिशत तक है।

तेल रिसाव की लागत

नए अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने स्क्रबर पानी छोड़े जाने की बाहरी लागतों और स्क्रबर तकनीक में निवेश करने वाले 3,800 से अधिक जहाजों की वित्तीय बैलेंस शीट की गणना की। समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान से जुड़ी लागतों को लेकर, अध्ययन से पता चलता है कि वर्ष 2014 और 2022 के बीच, बाल्टिक सागर में स्क्रबर पानी छोड़े जाने से 680 मिलियन यूरो से अधिक कीमत का प्रदूषण फैलाया है।

नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित नए अध्ययन के मुताबिक, गणना समुद्री पर्यावरणीय नुकसान से बचने के लिए भुगतान करने की इच्छा के मॉडल पर आधारित है, लेकिन शोधकर्ताओं के अनुसार, अनुमानों को कम करके आंका गया है। उदाहरण के लिए, स्क्रबर का उपयोग करने वाले जहाजों से भारी ईंधन तेल रिसाव से जुड़ी प्रत्यक्ष लागतों को शामिल नहीं किया गया है।

अध्ययनकर्ता ने अध्ययन के हवाले से कहा, यदि स्क्रबर मौजूद नहीं होते, तो आज किसी भी जहाज को इस गंदे ईंधन पर चलने की अनुमति नहीं होती। यही कारण है कि स्क्रबर मुद्दा शिपिंग उद्योग को कम, जबकि बुरे पर्यावरणीय प्रभाव की ओर ले जा रहा है।

कई देशों में प्रतिबंध

जहाज मालिकों के नजरिए से, शोधकर्ताओं ने स्क्रबर सिस्टम को स्थापित करने और बनाए रखने की लागतों की गणना की, साथ ही स्क्रबर से सुसज्जित जहाजों को अधिक महंगे कम सल्फर ईंधन विकल्पों के बजाय सस्ते और गंदे भारी ईंधन पर चलाने से होने वाले धन लाभ का हिसाब लगाया।

इससे पता चला कि स्क्रबर में निवेश करने वाली अधिकांश शिपिंग कंपनियां पहले ही सीमा पार कर चुकी हैं और 2022 के अंत तक सभी 3,800 जहाजों के लिए कुल शेष राशि 4.7 बिलियन यूरो थी। शोधकर्ताओं ने यह भी गौर किया कि सबसे आम स्क्रबर सिस्टम का 95 प्रतिशत से अधिक पांच वर्षों के भीतर चुकाया जाता है।

अध्ययन के मुताबिक, हाल ही में, डेनमार्क ने तट से 12 समुद्री मील के भीतर स्क्रबर जल के छोड़े जाने पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया गया है। जर्मनी, फ्रांस, पुर्तगाल, तुर्की और चीन जैसे दुनिया भर के कई देशों ने भी प्रतिबंधों को अपनाया है।

स्वीडन में, वर्तमान में कोई सामान्य प्रतिबंध नहीं है, हालांकि कुछ बंदरगाहों, जैसे कि गोथेनबर्ग के बंदरगाह ने अपने क्षेत्र में स्क्रबर जल छोड़े जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है।

क्या होता है स्क्रबर?

स्क्रबर को भारी ईंधन तेल के जलने के दौरान निकलने वाली गैसों की एक सफाई प्रणाली के रूप में जाना जाता है, जो 1970 के दशक से सबसे आम समुद्री ईंधन रहा है। समुद्री जल को पंप करके जहाजों से निकलने वाली गैसों पर छिड़का जाता है, जिससे सल्फर यौगिकों का उत्सर्जन हवा तक नहीं पहुंचता है।

इस प्रकार जहाज अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) द्वारा 2020 में शुरू की गई जरूरतों का अनुपालन करते हैं। समस्या यह है कि पानी जहाज से निकलने वाली गैसों से सल्फर को अवशोषित करता है, जिससे गंभीर अम्लीकरण होता है और भारी धातुओं और विषाक्त कार्बनिक यौगिकों जैसे प्रदूषक पैदा होते हैं। प्रदूषित स्क्रबर जल को अक्सर सीधे समुद्र में बहा दिया जाता है।

2010 के दशक के मध्य से, स्क्रबर लगे जहाजों की संख्या में वृद्धि हुई है। 2018 में किए गए एक अध्ययन में, बाल्टिक सागर में स्क्रबर वाले 178 जहाज थे। वर्तमान में  शोधकर्ताओं ने इनके कम से कम चार गुना होने की आशंका जताई है।

दुनिया भर में लगभग 5,000 जहाज हैं, जो कुल वैश्विक बेड़े का लगभग पांच प्रतिशत है। क्योंकि मुख्य रूप से भारी  ईंधन खपत करने वाले जहाज ही स्क्रबर में निवेश करते हैं, इसलिए यह पांच प्रतिशत भारी ईंधन की वैश्विक मांग का 25 प्रतिशत है।