प्रदूषण

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों की मदद से शहरों को मिल सकती है प्रदूषण से निजात, जानें कैसे?

भारतीय शहरों में प्रदूषण की समस्या बेहद आम है। रिसर्च के मुताबिक भारत के करीब 60 फीसदी शहरों में हवा स्वीकार्य सीमा से भी सात गुणा ज्यादा प्रदूषित है

Lalit Maurya

भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या बेहद आम हो चुकी है। देश के करीब 60 फीसदी शहरों में तो प्रदूषण का स्तर स्वीकार्य सीमा के सात गुणा से भी ज्यादा है। इन शहरों में मौजूद भारी प्रदूषण यहां रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है, जो इन्हें हर गुजरते दिन के साथ कहीं ज्यादा बीमार बना रहा है।

यदि जीवन प्रत्याशा के लिहाज से देखें तो भारतीय शहरों में मौजूद प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है। जो हर भारतीय से उसके जीवन के औसतन 5.3 वर्ष छीन रहा है। इसका मतलब है कि यदि देश की हवा साफ हो जाए तो उससे यहां रहने वाले हर इंसान के जीवन के औसतन पांच साल बढ़ जाएंगें। इसका सबसे ज्यादा फायदा दिल्ली-एनसीआर के क्षेत्रों में रहने वालों को मिलेगा, प्रदूषण से निजात से यहां रहने वाले हर इंसान की उम्र में औसतन 11.9 वर्षों का इजाफा हो सकता है।

देखा जाए तो प्रदूषण कोई ऐसी समस्या नहीं जो सरहदों की बंदिशें मानती हो, इसका प्रभाव सीमा से परे भी पड़ता है। ऐसे में एक नए अध्य्यन के मुताबिक यदि इस समस्या से निपटना है तो उसके लिए न केवल प्रदूषित शहरों में बल्कि क्षेत्रीय स्तर पर कार्रवाई करने की जरूरत है। बता दें कि भारत की 67.4 फीसदी आबादी ऐसे क्षेत्रों में रह रही है जहां प्रदषूण का स्तर देश के अपने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक (40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) से भी ज्यादा है।

दिल्ली जो साल के ज्यादातर प्रदूषण से परेशान रहती है, उसके बारे में अध्ययन का कहना है कि राजधानी को अपनी प्रदूषण और धुंध की समस्या से निपटने के लिए अपने ग्रामीण पड़ोसियों की भी मदद की जरूरत है। बता दें कि सरकार द्वारा उठाए कदमों के बावजूद दिल्ली में साल की शुरूआत से ही प्रदूषण का स्तर लगातार जानलेवा बना हुआ है।

यह नया अध्ययन दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) और सरे विश्वविद्यालय से जुड़े डॉक्टर अनवर अली खान,  इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली, से जुड़े डॉक्टर मुकेश खरे, सरे विश्वविद्यालय से जुड़े प्रोफेसर प्रशांत कुमार और सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर सुनील गुलिया द्वारा किया गया है।

जर्नल सस्टेनेबल होराइजन्स में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक शहरों में प्रदूषण का एक हिस्सा आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से आता है, जिनमें पराली और अन्य फसल अवशेषों को जलाना, चूल्हे से निकला धुंआ और बिजली संयंत्रों से होने वाला प्रदूषण शामिल है।

हालांकि इसके बावजूद प्रदूषण और धुंध से निपटने के प्रयास अक्सर शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित होते हैं। इनकी रोकथाम के लिए सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना या उद्योगों और निर्माण स्थलों से होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करना जैसे उपायों पर ही ध्यान केंद्रित किया जाता है। वहीं आमतौर पर इन उपायों में ग्रामीण स्रोतों की अनदेखी कर दी जाती है।

यही वजह है कि अपने इस अध्ययन में प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए शोधकर्ताओं ने क्षेत्रीय स्तर पर प्रयास करने का सुझाव दिया है। इसमें उस व्यापक क्षेत्र की पहचान करना शामिल है, जहां शहरी प्रदूषण उत्पन्न होता है, जिसे "एयरशेड" के रूप में जाना जाता है।

गौरतलब है कि सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ भारत में बढ़ते प्रदूषण के खतरों को लेकर आगाह करता रहा है। हालांकि इसके बावजूद दिल्ली-फरीदाबाद ही नहीं देश के कई छोटे-बड़े अन्य शहरों में वायु गुणवत्ता जानलेवा बनी हुई है। देश में स्थिति किस कदर गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत में पीएम 2.5 हर साल दो लाख से ज्यादा अजन्मों को गर्भ में मार रहा है।

समाधान के लिए वैज्ञानिकों ने क्या कुछ सुझाए हैं उपाय

डॉक्टर मुकेश खरे का मानना है कि वायु प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा शहरों की सीमा के बाहर मौजूद स्रोतों से उत्पन्न होता है। ऐसे में इसकी रोकथाम के लिए विशिष्ट रूप से शहरों की जगह क्षेत्र को ध्यान में रखकर उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्यों की आवश्यकता है। उनके अनुसार वायु गुणवत्ता के प्रभावी प्रबंधन और योजना के लिए "एयरशेड" का निर्माण महत्वपूर्ण है।

इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ सरे के स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी से जुड़े प्रोफेसर प्रशांत कुमार का कहना है कि “वायु प्रदूषण शहरी सीमाओं को नहीं मानता। ऐसे में इसका समाधान क्षेत्रीय स्तर पर किया जाना चाहिए।“ उनके मुताबिक यदि दिल्ली जैसे शहरों को हाल के वर्षों में देखी गई घातक धुंध से बचना है तो उन्हें मदद के लिए आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के सहयोग की जरूरत होगी।

उनका आगे कहना है कि “यह दृष्टिकोण काम करता है और मेक्सिको सिटी और लॉस एंजिल्स जैसी जगहों पर कारगर साबित हुआ है। साथ मिलकर हम वायु प्रदूषण से निपट सकते हैं।“प्रोफेसर कुमार ग्लोबल सेंटर फॉर क्लीन एयर रिसर्च के फॉउन्डिंग भी हैं।

इस अध्ययन में प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए कई सुझाव दिए गए हैं। जिनके मुताबिक क्षेत्रीय स्तर पर वायु गुणवत्ता योजनाएं तैयार करने की जरूरत है।  इन योजनाओं ने मेक्सिको सिटी और लॉस एंजिल्स जैसी जगहों पर अच्छा काम किया है। इसी तरह बेहतर निगरानी के साथ "स्मॉग पूर्वानुमान" तैयार किया जा सकता है।

उपग्रह जलती आग और प्रदूषण के अन्य स्रोतों का पता लगा सकते हैं। इसकी मदद से वैज्ञानिक इस बात की भविष्यवाणी कर सकते हैं कि यह मौसमी परिस्थितियों के साथ कैसे प्रतिक्रिया करेगा। इसी तरह "एयरशेड काउंसिल" स्थानीय, क्षेत्रीय और केंद्रीय एजेंसियों को उनके प्रयासों में समन्वय स्थापित करने में मदद कर सकती है।

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के वरिष्ठ पर्यावरण अभियंता डॉक्टर अनवर अली खान के मुताबिक पडोसी राज्य दिल्ली और अपने क्षेत्रों में लोगों की जिंदगियां बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। हमें इसके लिए ठोस वैज्ञानिक आधार वाली कार्य योजना और बेहतर निगरानी की आवश्यकता है।

इसके लिए  शहरों, सरकारों और अन्य लोगों को कंधे से कन्धा मिलकर काम करने की जरूरत है। उनका कहना है कि, "केवल संयुक्त दृष्टिकोण के माध्यम से ही हम इस जीवन घातक खतरे का प्रभावी ढंग से मुकाबला कर सकते हैं।" 

देश में प्रदूषण की स्थिति पर ताजा जानकारी आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।