प्रदूषण

रोजाना मौत के चैंबर में घुसते हैं सफाई कर्मचारी

DTE Staff

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर 17 सितंबर, 2019 को मैला ढोने और बिना किसी यंत्र के सीवेज चैंबर की सफाई के मामले में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि दुनिया में ऐसा कोई दूसरा देश नहीं है जो लोगों को मरने के लिए गैस चैंबर में भेजता हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि आजादी के 70 वर्ष बाद भी जातीय शोषण व्यवस्था कायम है। आखिर सफाईकर्मियों को मास्क और आक्सीजन सिलेंडर जैसे सुरक्षा यंत्र क्यों नहीं दिया जा रहा।

देश में 6 दिसंबर, 2013 से हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम (प्रोहिबिशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट एज मैनुअल स्केवेंजर्स एंड देयर रिहेबिलिटेशन एक्ट, 2013) लागू होने के बाद हाथ से सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई प्रतिबंधित है। कानून कहता है कि सभी स्थानीय प्राधिकरणों को हाथ से मैला उठाने की व्यवस्था खत्म करने के लिए सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई हेतु आधुनिक तकनीकों को अपनाना होगा। लेकिन विडंबना यह है कि कानून बनने के बाद कई राज्यों में मैनुअल स्केवेंजर्स की संख्या बढ़ गई है।

वहीं, 1993 में भी सफाई कर्मचारी नियोजन और शुष्क शौचालय सन्निर्माण (प्रतिषेध) अधिनियम के तहत शुष्क शौचालयों की सफाई हाथों से करने पर पाबंदी लगाई गई थी। देश में करीब 26 लाख शुष्क शौचालय हैं जिनकी सफाई हाथों के जरिए ही करनी पड़ती है।

नीति आयोग के एक राष्ट्रीय सर्वे के अनुसार, 18 राज्यों के 170 जिलों में 54,130 मैनुअल स्केवेंजर्स हैं। उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 30,375 मैनुअल स्केवेंजर्स हैं, जबकि महाराष्ट्र में 7,378, आंध्र प्रदेश में 2,060, कर्नाटक में 2,486 सफाई कर्मचारी हाथ से सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करते हैं। राहत की बात यह रही कि ओडिशा, छत्तीसगढ़ और बिहार ऐसे राज्य हैं, जहां 2018 में हुए सर्वे में कोई मैनुअल स्केवेंजर नहीं मिला।

एक ब्योरे के अनुसार, 30 जून 2019 तक 15 राज्यों में 620 सफाई कर्मचारियों की काम के दौरान मौत हुई है। यह सिलसिला लगातार जारी है।