प्रदूषण

भारत में हर साल दो लाख से ज्यादा अजन्मों को गर्भ में मार रहा है बढ़ता वायु प्रदूषण

रिसर्च से पता चला है कि वातावरण में पीएम 2.5 की प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से स्टिलबर्थ का जोखिम 11 फीसदी तक बढ़ सकता है

Lalit Maurya

इस साल करीब 13.4 करोड़ बच्चे जन्म लेंगें, लेकिन हर कोई इन दुधमुहों जितना भाग्यशाली नहीं होता। यूनाइटेड नेशंस इंटरएजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मॉर्टेलिटी एस्टिमेशन के अनुसार दुनिया भर में करीब 20 लाख अजन्में ऐसे भी होते हैं जो इस दुनिया को नहीं देख पाते। मतलब की हर दो सेकंड में एक बच्चा मृत पैदा होता है।

देखा जाए तो प्रसवकाल में होने वाली मौतों के कई कारण हैं जिनमें प्रसव संबंधी जटिलताओं से लेकर संक्रमण तक कई कारक जिम्मेवार हैं। लेकिन जर्नल नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित एक नए अध्ययन से पता चला है कि इसके लिए बढ़ता वायु प्रदूषण भी जिम्मेवार है।

137 देशों में स्टिलबर्थ से जुड़े आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि 8.3 लाख अजन्मों की मौत के लिए बढ़ता प्रदूषण विशेषरूप से पीएम 2.5 जिम्मेवार है। इतना ही नहीं रिसर्च में यह भी सामने आया है कि इसका सबसे ज्यादा बोझ कमजोर और विकासशील देशों पर पड़ रहा है। अनुमान है कि इन देशों में स्टिलबर्थ के 39.7 फीसद मामलों के पीछे की वजह यह बढ़ता प्रदूषण ही है।

गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार जब गर्भावस्‍था के 28 हफ्तों या उसके बाद बच्चे का जन्म होता है जिसमें जीवन के कोई निशान नहीं होते हैं तो उसे स्टिलबर्थ कहते हैं। वहीं यदि पीएम 2.5 की बात करें तो, वायु में मौजूद प्रदूषण के कणों के 2.5 माइक्रोन यानी की एक मीटर के दस लाखवें हिस्से या उससे छोटे महीन कणों को कहते हैं।

बीजिंग की पेकिंग यूनिवर्सिटी के हेल्थ साइंस सेंटर से जुड़े पर्यावरण वैज्ञानिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ताओ ज्यू के नेतृत्व में किए इस नए शोध से पता चला है कि वातावरण में पीएम 2.5 के प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से स्टिलबर्थ का जोखिम 11 फीसदी तक बढ़ सकता है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जनसंख्या और स्वास्थ्य से जुड़े 113 सर्वेक्षणों से लिए 32,449 जीवित जन्में और 13,870 मृत जन्में दुधमुहों से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है।

भारत में भी गंभीर है समस्या

रिसर्च से पता चला है कि पीएम 2.5 से जुड़े स्टिलबर्थ के मामलों में भारत अव्वल है। जहां हर साल यह प्रदूषण गर्भ में ही जीवन खोने वाले 217,000 अजन्मों की मौत की वजह है। इसके बाद पाकिस्तान में स्टिलबर्थ यह आंकड़ा 110,000, नाइजीरिया में 93,000, चीन में 64,000 और बांग्लादेश में 49,000 दर्ज किया गया है।

वहीं यदी पीएम 2.5 के कारण मृत जन्म लेने वाले बच्चों के अंश की बात करें तो इस मामले में कतर सबसे ऊपर है। जहां स्टिलबर्थ के 71.2 फीसदी मामलों के लिए यह प्रदूषण जिम्मेवार है।

इसके बाद सऊदी अरब में 68.4, कुवैत में 66 फीसदी, नाइजर में 65.7 फीसदी और संयुक्त अरब अमीरात में 64.6 फीसदी स्टिलबर्थ के लिए पीएम 2.5 जिम्मेवार है। वहीं उच्च जोखिम और बड़ी मात्रा में सामने आने वाले स्टिलबर्थ के मामलों के चलते दक्षिण एशिया, उप सहारा अफ्रीका इसके हॉटस्पॉट बने हुए  हैं।

गौरतलब है कि इससे पहले जर्नल लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन के हवाले से पता चला है कि वायु प्रदूषण के चलते दक्षिण एशिया में हर साल साल करीब 3.5 लाख महिलाएं मातृत्व के सुख से वंचित रह जाती हैं, जोकि इस क्षेत्र में गर्भावस्था को होने वाले नुकसान का करीब 7.1 फीसदी है।

गौरतलब है कि दक्षिण एशिया में भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान पहले ही अपनी खराब वायु गुणवत्ता के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं। ऐसे में इन देशों में बढ़ता वायु प्रदूषण गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल रहा है। पता चला है कि खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में आने से उनमे स्टिलबर्थ और गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है।

ऐसे में वायु गुणवत्ता में आया सुधार ने केवल मातृ स्वास्थ्य बल्कि साथ ही स्टिलबर्थ के मामलों में भी कमी ला सकता है। देखा जाए तो मातृत्व को होने वाले नुकसान का यह दर्द  न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी महिलाओं को तोड़ देता है। इससे महिलाओं पर मानसिक, शारीरिक और आर्थिक प्रभाव पड़ता है। साथ ही इससे प्रसव के बाद अवसाद और अगली गर्भावस्था के दौरान शिशु मृत्यु दर के बढ़ने का खतरा काफी बढ़ जाता है।

वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण की समस्या कितनी गंभीर हो चली है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया की सारी आबादी ऐसी हवा में सांस ले रही है जोकि उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। भारत में तो इसका खतरा कई गुना ज्यादा है। अनुमान है कि बढ़ते प्रदूषण के चलते दुनिया भर में करीब दुनिया 90 लाख लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं।

वहीं हाल ही में जारी स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 से पता चला है कि वायु प्रदूषण के चलते भारत में 2019 के दौरान 1.16 लाख से भी ज्यादा नवजातों की मौत हुई थी, जबकि इसके चलते देश में करीब 16.7 लाख लोगों को असमय अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।

ऐसे में हवा की गुणवत्ता में किया सुधार दुनिया भर में लाखों बच्चों के अमूल्य जीवन को बचा सकता है।