प्रदूषण

बिहार में पांच गुना बढ़ गए सांस के मरीज, छोटे जिलों में ज्यादा असर

बिहार में 2009 में सांस रोगियों की संख्या लगभग 2 लाख थी, जो 2018 में 11 लाख से ऊपर पहुंच गई है, जिसका कारण बढ़ता प्रदूषण बताया जा रहा है और इसे कम करने के लिए कोई ठोस प्रयास भी नहीं हो रहे

Pushya Mitra

बिहार राज्य में पिछ्ले दस सालों में सांस से सम्बधित रोगियों की संख्या पांच गुणी हो गयी है। राज्य स्वास्थ्य समिति के आंकड़ों के मुताबिक 2009 में जहां राज्य में सांस रोगियों की संख्या 2 लाख से थोड़ी अधिक थी, वहीं 2018 में यह आंकड़ों 11 लाख के करीब पहुंच गया। जानकर इसके लिए राज्य में बढ़ते वायु प्रदूषण को मुख्य वजह मानते हैं। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि ऐसे रोगियों की संख्या बेगूसराय, वैशाली और जमुई जैसे छोटे जिलों में बढ़ रही है, जहां वायु प्रदूषण को मांपने के लिए आवश्यक यन्त्र तक नहीं लगे हैं। ठंड के दिनों में प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए राज्य स्वास्थ्य समिति ने नागरिकों के लिए सुझाव (एडवाइजरी) भी जारी की है।

इन आंकड़ों की जानकारी देते हुए राज्य स्वास्थ्य समिति की स्टेट इपीडमिक विशेषज्ञ डॉ. रागिनी मिश्रा कहती हैं कि ये आंकड़े हमने राज्य के सरकारी और निजी दोनों अस्पतालों से लेकर इकट्ठा किये हैं। हालांकि ज्यादातर आंकड़े सरकारी अस्पतालों के ही हैं। 2009 से 2018 तक के ये आंकड़े जिलावार उपलब्ध हैं। 

इन आंकड़ों के मुताबिक राजधानी पटना में सांस सम्बंधी रोगियों की संख्या में तो बहुत अन्तर नहीं आया है, मगर जमुई और वैशाली जैसे छोटे जिलों में सांस के रोगियों की संख्या में बीस से 25 गुना तक की बढ़ोतरी देखी जा रही है। 2009 में वैशाली जिले में चार हजार मरीजों ने ही सांस रोग का उपचार कराया था, 2018 में यह संख्या एक लाख के करीब पहुंच गयी। जमुई जिले में भी मरीजों की संख्या 6 हजार से बढ़ कर एक लाख के पार चली गयी।

ऐसे ही कई और छोटे जिले जैसे बेगुसराय, अररिया, भोजपुर आदि में भी मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। दुखद तथ्य यह है कि इन जिलों के प्रदूषण का स्तर मापने के लिए कोई यन्त्र नहीं लगा है। राज्य में सिर्फ तीन प्रदूषण मापक यन्त्र वायु प्रदूषण के स्तर की नियमित रीडिंग लेते हैं। ये पटना, गया और मुजफ्फरपुर में लगे हैं। शेष 35 जिलों के प्रदूषण को जांचने का कोई उपाय राज्य सरकार के पास नहीं है।

6 नवंबर को राज्य स्वास्थ्य समिति में राज्य में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए हेल्थ एडवाइजरी जारी की थी, उस पत्र में राज्य के तीन शहरों में लगे प्रदूषण मापक यन्त्र के आंकड़ों का हवाला दिया गया था। इसके तहत कहा गया था कि जब तक राज्य में प्रदूषण का स्तर बेहतर न हो ज्यादा वक़्त घर में रहें। उन्होने ट्रैफिक पुलिस, ओटो एवं रिक्शा चालकों के लिए अलग से दिशा निर्देश जारी किये थे। क्योंकि उन्हें लगातार बाहर रहना पड़ता है। मगर समुचित प्रचार प्रसार के अभाव में ये दिशा निर्देश कागजी ही बन कर रह गये। 

दिलचस्प है कि 21 नवंबर को राज्य के आपदा प्रबन्धन विभाग ने भी हेल्थ एडवाइजरी जारी की, मगर उसके बारे में भी लोगों को ठीक से बताया नहीं गया। 23 नवंबर को एक बार फिर पटना का एक्यूआई इंडेक्स 401 पहुंच गया।

इस बारे में बात करने पर राज्य में प्रदूषण की स्थिति का अध्ययन कर रही विशेषज्ञ अन्किता ज्योति कहती हैं कि बिहार के छोटे शहरों में प्रदूषण की स्थिति गम्भीर है और इसकी निगरानी करने के साधन भी हमारे पास नहीं हैं। राज्य सरकार को केन्द्र से अनुरोध करना चाहिये कि वह उन्हें बिहार के सभी छोटे-बड़े जिलों में प्रदूषण मापक यन्त्र लगाने में मदद करे। प्रदूषण को लेकर राज्य सरकार का एक ही विभाग एडवाइजरी जारी करे और उसका व्यापक प्रचार प्रसार हो।