प्रदूषण

शोधकर्ताओं ने बनाया ऐसा सेंसर, जो पानी के प्रदूषित होते ही देगा चेतावनी

Dayanidhi

दुनिया भर में लाखों लोग प्रदूषित पानी पीने के कारण होने वाली बीमारियों की वजह से काल के गाल में समा जाते हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार 2022 में, विश्व स्तर पर, कम से कम 1.7 अरब लोग दूषित पानी पीने को मजबूर थे। इस तरह के पानी में माइक्रोबियल संदूषण, पीने के पानी की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा करते हैं।

पानी से संबंधित इस तरह के खतरों से निपटने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) ने एक रीयल-टाइम बायो-इलेक्ट्रोकेमिकल सेंसर विकसित किया है। यह सेंसर पानी के प्रदूषित होने की तुरंत जानकारी देगा, जिससे दूषित पानी से होने वाली बीमारियों पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी।

दिल्ली के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) में बायोकेमिकल इंजीनियरिंग और बायोटेक्नोलॉजी विभाग के इलेक्ट्रो-माइक्रोबायोलॉजी टीम ने बिजली पैदा करने वाले सूक्ष्मजीवों का उपयोग करके वास्तविक समय में पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए एक सेंसर विकसित किया है।

इलेक्ट्रोएक्टिव सूक्ष्मजीव के रूप में जाने जाने वाले, ये सूक्ष्मजीव विद्युत प्रवाह उत्पन्न करते हैं। दुनिया भर में बिजली उत्पादन के लिए इन पर शोध किया जाता है, साथ ही इनका उपयोग बायोसेंसिंग के लिए भी किया जा सकता है।

प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, विशेष रूप से, विकसित किया गया बायो-इलेक्ट्रोकेमिकल सेंसर एक कमजोर इलेक्ट्रीजेंस का उपयोग करता है, जो इलेक्ट्रोएक्टिव सूक्ष्मजीवों की एक श्रेणी है जो बहुत कम बिजली पैदा करने के लिए जाने जाते हैं। जब ये किसी प्रदूषक का सामना करते हैं, तो उनके उत्पादन की क्षमता और भी कम हो जाती है। उनके बाह्य कोशिकीय प्रवाह को लगातार मापकर, यह पानी की गुणवत्ता की वास्तविक समय में निगरानी की सुविधा प्रदान करते हैं।

ऐसी तकनीक पारंपरिक निगरानी विधियों के साथ मिलकर एक शुरुआती चेतावनी प्रणाली के रूप में कार्य कर सकती है जो महंगी हो सकती है या चौबीसों घण्टे और सातों दिन काम नहीं कर सकती हैं। सेंसर ने कई कीटनाशकों पर प्रतिक्रिया की और इसे लंबे समय तक निगरानी के लिए बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है, जो अक्सर जल प्रदूषण वाले इलाकों के लिए महत्वपूर्ण है।

प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि भविष्य में, ऐसी तकनीक उभरते प्रदूषकों का पता लगाने के लिए भी उपयोगी हो सकती है जो आमतौर पर नियमित परीक्षणों में शामिल नहीं होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि कई प्राकृतिक वातावरण कमजोर इलेक्ट्रीजन की मेजबानी करते हैं, जिससे भविष्य में प्रदूषण वाली जगहों पर सेंसर के साथ-साथ मौजूदा निगरानी स्टेशनों में आसानी से इन्हें शामिल किया जा सकता है।

सेंसर पानी की गुणवत्ता की निगरानी को व्यापक रूप से अपनाने के लिए उपयुक्त हैं जो 2030 तक पर्याप्त पानी और स्वच्छता के संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य को पूरा करने में अहम भूमिका निभा सकती है।

प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, इस शोध के शोधकर्ता डॉ. कार्तिक अय्यर, सुश्री देबासा मुखर्जी और आईआईटी दिल्ली के बायोकेमिकल इंजीनियरिंग और जैव प्रौद्योगिकी विभाग से प्रोफेसर लुसिंडा एलिजाबेथ डॉयल हैं। यह शोध पत्र एसीएस एप्लाइड बायो मैटेरियल्स में प्रकाशित हुआ है।