प्रदूषण

क्या वायु प्रदूषण के खिलाफ चीन जैसी नीति बना सकते हैं हम?

Chandra Bhushan

इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस का थीम है वायु प्रदूषण। इस संबंध में वैश्विक आयोजन चीन के हांगझू में हुआ जो वहां के उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग का केंद्र है। पिछले कुछ वर्षों में चीन ने दिखा दिया है कि सख्त नीतियों और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों का एक साथ इस्तेमाल करके किस प्रकार वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। इससे सवाल उठता है कि क्या हम भारत में ऐसा कर सकते हैं?

वायु प्रदूषण के स्रोत: ऊर्जा के लिए जीवाश्म और जैव ईंधन को जलाना, कृषि अवशेष और कचरे को जलाना एवं प्राकृतिक तथा मानव निर्मित स्रोतों से उड़ने वाली धूल वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं।

ऊर्जा के लिए ईंधन जलाना: हम अपनी ऊर्जा आवश्कताओं को पूरा करने के लिए प्रति वर्ष 1.6 से 1.7 बिलियन टन जीवाश्म ईंधन जलाते हैं। इसमें से 55 प्रतिशत कोयला और लिग्नाइट है, 30 प्रतिशत जैव ईंधन तथा 15 प्रतिशत तेल और गैस जलाया जाता है। जैव ईंधन और कोयला पूरी तरह नहीं जलता इसलिए यह सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाता है और इस प्रकार बिना जले कार्बन और अन्य प्रदूषकों का बड़ी मात्रा में उत्सर्जन करता है। जैव ईंधन की एक और समस्या यह भी है कि चूल्हों पर प्रदूषण नियंत्रक उपकरण नहीं लगाए जा सकते और इस प्रकार सारा प्रदूषण वायुमंडल में घुल जाता है। दूसरी ओर, प्राकृतिक गैस सबसे साफ ईंधन है जबकि तेल के उत्पाद मध्यम श्रेणी में गिने जाते हैं।

जहां कोयले का इस्तेमाल अधिकांशत: बिजली बनाने के लिए और उद्योगों में किया जाता है, वहीं जैव ईंधन, जिसमें लकड़ी जलाना, कृषि अवशेष और पशु अपशिष्ट शामिल हैं, का इस्तेमाल मुख्यत: खाना बनाने के लिए ईंधन के रूप में होता है। लगभग 50 फीसदी तेल का इस्तेमाल परिवहन में, 40 प्रतिशत का इस्तेमाल उद्योगों में और 10 प्रतिशत का इस्तेमाल घरों में मिट्टी के तेल के रूप में किया जाता है। गैस का उपयोग बिजली बनाने, परिवहन और खाना बनाने में होता है।

कृषि अवशेष और कचरा जलाना: खेतों में हर वर्ष 10 से 15 करोड़ टन कृषि अवशेष जलाया जाता है। यह मौसमी गतिविधि है और इस प्रकार जिस अवधि में यह जलाया जाता है, उस दौरान यह वायु प्रदूषण का बड़ा कारण बन जाता है। कचरा जलाना शहरों में भी प्रदूषण का प्रमुख स्रोत है, लेकिन हम कितना कचरा जलाते हैं, इस बारे में कोई सही अनुमान उपलब्ध नहीं हैं। भारत में प्रति वर्ष 6 करोड़ टन कचरा उत्पन्न होता है जिसमें से केवल 25 प्रतिशत को ही प्रसंस्कृत किया जाता है और बाकी को खुले में फेंक दिया जाता है अथवा जला दिया जाता है। यदि यह मान लिया जाए कि एक-तिहाई से एक-चौथाई कचरा खुले में जला दिया जाता है (मेरे विचार से यह मात्रा इससे काफी ज्यादा है), तो इसका अर्थ है कि हम प्रति वर्ष 1.5 से 2 करोड़ टन कचरा जलाते हैं। कुल मिलाकर, हम प्रतिवर्ष 1.8 से 1.9 अरब टन जीवाश्म ईंधन, जैव ईंधन और कचरा जलाते हैं। इसमें से 1.5 से 1.55 अरब टन या 85 प्रतिशत हिस्सा कोयले, लिग्नाइट और जैव ईंधन का है। ये भी सबसे ज्यादा प्रदूषक ईंधन हैं।

यदि हम केवल जलाए जाने वाले सामान की मात्रा को देखें, जिसकी अच्छी खासी मात्रा है, तो पूरे भारत में 85 प्रतिशत वायु प्रदूषण कोयला और जैव ईंधन जलाने से होता है। वहीं तेल और गैस से होने वाला प्रदूषण 15 प्रतिशत से भी कम है। इसलिए जब तक हम विद्युत संयंत्रों, उद्योगों, घरों और खेतों में कोयले और जैव ईंधन के जलने से होने वाले उत्सर्जन में पर्याप्त कमी नहीं लाते, तब तक प्रदूषण को कम नहीं किया जा सकता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि परिवहन क्षेत्र या कचरा जलाना कोई समस्या नहीं है। शहरों में ये प्रदूषण का प्रमुख स्रोत है। लेकिन वायु प्रदूषण पूरे भारत की समस्या है। लगभग हर भारतीय ऐसी हवा में सांस ले रहा है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के वायु गुणवत्ता मानदंडों के अनुसार, असुरक्षित माना गया है। इसलिए पूरे भारत का आदर्श स्पष्ट है कि जो ज्यादा जलाया जाता है, उस पर तत्काल कार्रवाई करो।