प्रदूषण

भोपाल त्रासदी के 35 साल: बिना पूरी सफाई किए मेमोरियल बनाने की तैयारी

सरकार यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री परिसर में मेमोरियल बनाने की तैयारी में है, लेकिन कचरे के उचित निपटारे के बिना मेमोरियल बनाना लोगों के लिए खतरनाक हो सकता है

Manish Chandra Mishra

दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना में एक मध्य प्रदेश में भोपाल गैस त्रासदी को देखते-देखते 35 बरस बीत गए। 2-3 दिसंबर, 1984 को बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन की  जानलेवा गैस लीक ने कई जिंदगियां समाप्त कर दी और पीढियों के लिए यह धीमा जहर बन गया। इस त्रासदी के भूत और वर्तमान पर डाउन टू अर्थ नेे विशेष श्रृखंला शुरू की है। पहली किस्त में आपने पढ़ा, आज भी मां जन्म रही बीमार बच्चा, सरकार ने दबाई रिपोर्ट । दूसरी किस्त में आपना पढ़ा, नई पीढ़ी आकलन से बाहर, पुराना मुआवजा ही पूरा नहीं मिला । तीसरी किस्त में पढ़ें - जहरीला कचरा साफ किए क्यों बनाया जा रहा मेमोरियल 

भोपाल गैस त्रासदी के 35 साल बीतने के बाद भी गैस पीड़ितों का दर्द शहर को साल रहा है। फैक्ट्री परिसर में इस हादसे के वर्षों बाद भी लगभग 21 गड्ढों और कारखाने के 400 मीटर उत्तर में 32 एकड़ पर बने तलाब में 10,000 टन से ज्यादा कचरा दबा हुआ है जिसकी वजह से प्रदूषण साल दर साल बढ़ रहा है और नए लोगो को जहर की गिरफ्त में ले रहा है सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान और भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान के द्वारा किए गए एक शोध में वर्ष 2012 में सामने आया था कि फैक्ट्री में दबाया गया कचरा आसपास के 22 बस्तियों और 4.5 किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। 

वर्ष 2005 में दिल्ली की एक कंपनी को फैक्ट्री के स्थान पर मेमोरियल बनाने के लिए चुना गया थाजिनसे बीते वर्षों में मेमोरियल तैयार करने की योजना ही सरकार को सौंपी है। दस्तावेजों से पता चलता है कि बिना कचरे की उचित सफाई किए यहां मेमोरियल की इमारत खड़ी करने की योजना बन रही है। पूरे परिसर और आसपास फैले विषाक्त रासायनों को न साफ कर सिर्फ कारखाने के ढ़ांचे की सफाई कर मेमोरिल बनाने की योजना का गैस पीड़ितों के प्रतिनिधि संगठन विरोध कर रहे हैं।

सूचना के अधिकार से पता चला जल्दबाजी में है सरकार
सूचना के अधिकार के तहत हासिल दस्तावेजों के मुताबिक, दिल्ली की एक निजी आर्किटेक्चर कंपनी ने फैक्ट्री में मौजूद कचरे को खुद ही निपटान कर वहां निर्माण करने की योजना बनाई है, लेकिन इस पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने कहा कि इस प्रोजेक्ट को दो भागों में बांटकर सबसे पहले कचरा साफ करने का काम होना चाहिए। इसके लिए किसी ऐसी एजेंसी का चुनाव किया जाना चाहिए, जिन्हें इस तरह के कचरे से निपटने का पुराना अनुभव भी हो। अभी जिस एजेंसी के पास मेमोरियल बनाने का काम है, उनका वास्तुविद में तो अनुभव है, लेकिन इस तरह के खतरनाक रसायन के निपटारे में उनका कोई अनुभव नहीं है। 

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का यह भी कहना है कि पूर्व में जहरीले कचरे के खतरों पर कोई शोध मानव स्वास्थ्य और होने वाले प्रभावों को ठीक से रेखांकित नहीं करते, इसलिए नए सिरे से इस तरह का एक शोध होना भी आवश्यक है। इस काम को आगे बढ़ाने के लिए सबसे पहला कदम यह है कि एक राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनुभवी संस्था को यह काम सौंपना पड़ेगा, जो इस बात का आकलन कर सके कि कितनी दूरी व कितनी गहराई पर कौन से रसायन मौजूद हैं। जब तक यह आकलन नहीं होगा, तब तक कोई सफाई नहीं हो सकती, क्योंकि इस तरह का आकलन ही तय करेगा कि कौन सी तकनीक से पानी में मिट्टी में बसे रसायनों को कैसे निकाला जा सकता है

खारिज हो चुके शोध के आधार पर सफाई की योजना

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दस्तावेज में यह साफ किया गया है कि कचरे की सफाई के लिए जो उपाय निजी कंपनी ने सुझाए हैं, उनके असर को परखना भी जरूरी है। गौरतलब है कि कंपनी ने विशेष तरह के पौधे लगाकर और जमीन के भीतर कचरे को गाड़कर फैक्ट्री के सफाई की योजना भी बनाई है। हालांकि अब तक जहरीले कचरे का मानव और होने वाले दुष्परिणामों पर कोई शोध नहीं शुरू किया गया है। 

मध्य प्रदेश सरकार ने जहरीले कचरे की निष्पादन की  डीपीआर बनाने  की जिम्मेदारी स्पेस मैटर्स को दी है और स्पेस मैटर्स उन्ही संस्थाओं से सफाई कराने की बात कर रही है, जिनकी रिपोर्ट को 2011 में भारत सरकार खारिज कर चुकी है। तीन संस्थाओं (सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय भूभौतकीय अनुसंधान संस्थान और भारतीय रासायनिक प्रौद्योगिकी संस्थान) ने वर्ष 2010 में कचरे के निपटारे के लिए एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसे भारत सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों से मूल्यांकन कराकर और शोध की आवश्यकता बताई थी। उसके बाद फैक्ट्री में कोई शोध नहीं हुआ, लेकिन इसकी सफाई पुराने शोध में सुझाए तरीकों से किए जाने की योजना है।  

भारत को इतना खतरनाक कचरा के निपटारे का कोई अनुभव नहीं
मेमोरियल बनाने के काम में लगी निजी कंपनी ने स्वीडिश एनवायरनमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी के साथ मिलकर इस काम को करने के लिए जरूरी योग्यता और अनुभव को हासिल करने के लिए वर्ष 2019 में एक साझा कार्यशाला में शामिल हुए। कार्यशाला के बाद स्वीडन की एजेंसी ने अपने निष्कर्ष में कहा कि यूनियन कार्बाइड में पड़े कचरे की विषाक्तता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इस काम को कोई एक एजेंसी अकेले नहीं संभाल सकती और इस कचरे को निपटाने को लेकर जो जानकारी भारत के पास है वह अभी शुरुआती चरण की है।

कई शोध इस बात की तस्दीक करते हैं कि यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री परिसर में अनवरत जैविक प्रदूषक (Persistent Organic Pollutants) के प्रकार के रसायन पाए गए हैं, जिसे खत्म करना काफी मुश्किल है। ये रसायन पानीमिट्टी और हवा के संपर्क में आकर उसमें रच बस जाते हैं। ये रासायण इतने खतरनाक हैं कि 35 साल बाद मिट्टी और पानी जहरीले रसायन के रूप में मौजूद हैं। अगर इस कचरे की सफाई नहीं हुई तो मेमोरियल बनने के बाद लोगों की सेहत को खतरा उत्पन्न होगा।

गैस पीड़ित चाह रहे हैं पूरे भोपाल की सफाई
भोपाल के गैस पीड़ित फैक्ट्री पर मेमोरियल बनाने से ज्यादा महत्वपूर्ण काम वहां 4.5 किलोमीटर में फैले कचरे को सफाई को मानते हैं। गैस पीड़ितों की प्रतिनिधि रचना ढींगरा बताती हैं कि मेमोरियल बनाने के लिए सिर्फ फैक्टरी के कुछ हिस्सों की सफाई होगी। चूंकि मेमोरियल बनाने वाली कंपनी के पास पूर्व में ऐसे खतरनाक रसायन के सफाई का कोई अनुभव नहीं सफाई की गुणवत्ता पर कुछ कहा नहीं जा सकता। गैस पीड़ित संगठन चाहते हैं कि पूरे परिसर की सफाई किसी क्षमतावान एजेंसी से हो जो इन काम का अनुभव रखते हैं। इसके बाद ही मेमोरियल की नींव पड़े। 

रचना ने बताया कि जमीन में कचरा दबा होने की वजह से भोपाल के 42 रहवासी इलाकों का भूजल प्रदूषित और विषाक्त हो गया है। वे कहती हैं कि अगर भोपाल गैस लीक नहीं भी हुआ होता तो भूजल प्रदूषण होती है और यह एक दूसरे त्रासदी के रूप में भोपाल शहर के लिए है। वर्ष 1977-1984 तक यूनियन कार्बाइड ने अपना सारा कचरा कारखाने के अंदर 21 जगह और बाहर 32 एकड़ पर बने तालाब पर डाला। 1982 में इस तालाब में लगी मोटी पॉलीथिन (हाई डेंसिटी पॉलीथिन) की प्लास्टिक लाइन फट गई थी और तभी से यह जहर वहां के भूजल में मिल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में कारखाने के आस पास की 14 बस्तियों को चिन्हित किया था जहां का भूजल प्रदूषित हुआ है और 2019 में यह संख्या 42 हो गई है और लगातार बढ़ती जा रही है। इस साल तक और कॉलोनी में भूजल प्रदूषण के प्रमाण मिले। 

इस मामले पर डाउन टू अर्थ ने गैस राहत विभाग के अवर सचिव केके दुबे से बात की। उन्होंने मामले पर कोई भी टिपण्णी करने से इनकार कर दिया। गैस राहत विभाग के मंत्री आरिफ अकील भी इस मामले पर बोलने के लिए उपलब्ध नहीं थे। 

जारी ..