प्रदूषण

वायु प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभाव झेलते हैं गरीब: डब्ल्यूएचओ

Dayanidhi

वायु प्रदूषण दुनिया भर में मौत के प्रमुख कारणों में से एक है, विशेष रूप से इसका सबसे अधिक असर गरीब लोगों पर पड़ता है जो इसके सम्पर्क में अधिक आते हैं और कमजोर होते हैं।

यह अध्ययन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 2021 के संशोधित फाइन पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5) के दुनिया भर में होने वाले खतरों के अनुमान पर आधारित है। जो खतरनाक पीएम 2.5 के संपर्क में आने वाले गरीब लोगों की संख्या का खुलासा करता है।

अध्ययन में कहा गया है कि 728 करोड़ लोग या विश्व की जनसंख्या का 94 फीसदी लोग असुरक्षित पीएम 2.5 के स्तर के सीधे संपर्क में आते हैं।

निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 80 प्रतिशत लोग खतरनाक पीएम 2.5 स्तर के संपर्क में आते हैं। इसके अलावा, 71.6 करोड़ गरीब लोग असुरक्षित वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहते हैं। गरीब लोग जो प्रति दिन 1.90 डॉलर से कम में अपना जीवन यापन करते हैं। उनमें से लगभग आधे सिर्फ तीन देशों में रहते हैं जिसमें भारत, नाइजीरिया और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य शामिल है।

निम्न-मध्यम-आय वाले देशों में वायु प्रदूषण का स्तर विशेष रूप से अधिक है, जहां अर्थव्यवस्थाएं प्रदूषणकारी उद्योगों और प्रौद्योगिकियों पर अधिक निर्भर करती हैं। अध्ययन के निष्कर्ष अधिक वायु प्रदूषण और वैश्विक कवरेज के साथ जनसंख्या मानचित्रों के साथ-साथ सामंजस्यपूर्ण घरेलू सर्वेक्षणों के आधार पर राष्ट्रीय गरीबी अनुमानों पर आधारित हैं।

अध्ययन में इस बात की तस्दीक की गई है कि वायु प्रदूषण आर्थिक गतिविधियों की वजह से होता है। वायु प्रदूषण विभिन्न प्रदूषकों, विशेष रूप से कण पदार्थ (पीएम), ओजोन (ओ 3), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ 2), कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ), और सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ 2) की बढ़ी हुई मात्रा पर निर्भर करता है। प्राकृतिक रूप से होते हुए भी, इन प्रदूषकों के खतरनाक स्तर मुख्य रूप से यातायात, जीवाश्म ईंधन के जलने और कृषि सहित मानवीय गतिविधियों के कारण होता है।

इसका मतलब यह है कि वायु प्रदूषण का अधिकतर संबंध स्थानीय आधार पर होता है। उदाहरण के लिए, प्रमुख शहरों में आमतौर पर उपर्युक्त सभी प्रदूषकों की मात्रा में वृद्धि हुई है। दासगुप्ता और उनके सहयोगियों द्वारा 2021 में किए गए अध्ययन से पता चलता है कि 138 देशों में 1,200 से अधिक शहरों के कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) के उत्सर्जन का स्तर जनसंख्या के आकार और आर्थिक विकास के स्तर के साथ बेहद करीब से जुड़ा हुआ है। अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों की उपलब्धता स्थानीय उत्सर्जन को कम कर सकती है।

गरीबों पर वायु प्रदूषण का बढ़ता असर

वायु प्रदूषण के बोझ को निम्न और मध्यम आय वाले देशों द्वारा असमान रूप से वहन किया जा रहा है। विशेष रूप से दक्षिण और पूर्वी एशिया के विकासशील देशों में, जहां बड़ी घनी आबादी वाले शहर है। कम कड़े वायु गुणवत्ता नियम, भारी प्रदूषण की व्यापकता वाली मशीनरी और वाहन, जीवाश्म ईंधन पर मिलने वाली सब्सिडी इसमें प्रमुख है। भीड़भाड़ वाली शहरी यातायत प्रणाली, तेजी से विकसित हो रहे औद्योगिक क्षेत्र और कृषि में फसलों के अवशेषों को जलाने प्रथाएं सभी वायु प्रदूषण के स्तर को बढ़ा रहे हैं।

इसके अलावा शारीरिक और बाहर श्रम करने वाले लोगों की बहुत अधिक संख्या का मतलब है कि अधिक लोगों को बढ़े हुए खतरों का सामना करना पड़ रहा है। स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच, की उपलब्धता और गुणवत्ता के मामले में आने वाली रुकावटें विकासशील देशों में वायु प्रदूषण से संबंधित मृत्यु दर को और बढ़ा रही हैं।

भारत में वायु प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने के मामले में कोयले से चलने वाले संयंत्र काफी हद तक जिम्मेवार हैं। अध्ययन में कहा गया है कि संयंत्र के दूर के जिलों में भी शिशु मृत्यु दर में 14 फीसदी की वृद्धि हुई है। वायु प्रदूषण से पड़ने वाला यह प्रभाव विकसित दुनिया की तुलना में 2 से 3 गुना बड़ा है।

अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण का बोझ न केवल गरीब देशों पर असमान रूप से पड़ता है, बल्कि देशों में रहने वाले गरीब और अधिक हाशिए पर रहने वाले समुदायों को भी प्रदूषण के उच्च स्तर का सामना करना पड़ता है। 

आय और वायु प्रदूषण स्तर के बीच संबंध

पीएम2.5 के खतरों से पता चलता है कि प्रदूषण का स्तर देशों के आर्थिक विकास और औद्योगीकरण के अलग-अलग चरणों के मुताबिक भिन्न होता है। वायु प्रदूषण का स्तर मध्यम आय वाले देशों में सबसे अधिक होगा, जहां प्रदूषणकारी गतिविधियां जैसे निर्माण अर्थव्यवस्था पर हावी हैं, जबकि उत्पादक पूंजी (जैसे प्रौद्योगिकी) और नियमों में पर्यावरण की गुणवत्ता को प्राथमिकता नहीं दी जाती है।

कम आय वाले देशों में वायु प्रदूषण का स्तर अपेक्षाकृत कम होगा, क्योंकि आर्थिक गतिविधियां जैसे कृषि में जीवाश्म ईंधन पर यहां निर्भरता कम रहती है। प्रदूषणकारी वस्तुओं की खपत जैसे अधिक बिजली का उपयोग या निजी कार आदि जनसंख्या के एक छोटे से हिस्से तक सीमित है।

वहीं उच्च आय वाले देशों में प्रदूषण कम होगा, क्योंकि आर्थिक गतिविधि कम प्रदूषण वाले क्षेत्रों पर केंद्रित होती है। प्रदूषणकारी गतिविधियां भीड़-भाड़ वाले इलाको से दूर होती हैं, जबकि स्वच्छ तकनीकें व्यापक रूप से उपलब्ध होती हैं और इनके लिए कड़े नियम बने हुए हैं।

इसका मतलब यह भी है कि आर्थिक विकास के रास्ते पर प्रदूषण की तीव्रता पत्थर की लकीर नहीं है। क्या आज के निम्न-आय वाले देश वास्तव में पर्यावरणीय तरीकों से चल रहे हैं? नहीं, उदाहरण के लिए, यहां जीवाश्म ईंधन की खपत के लिए सब्सिडी का प्रावधान स्वच्छ तकनीकों के उपयोग को कमजोर करता है। यह निम्न और मध्यम आय वाले देशों में प्रदूषण के स्तर को बढ़ाता है, जहां इस तरह की सब्सिडी विशेष रूप से आम है।