प्रदूषण

दिल्ली-एनसीआर में एक ही दिन में प्रदूषण पीएम 2.5 का स्तर 68 फीसदी बढ़ा

Anil Ashwani Sharma

नवंबर की शुरुआत में एक ही दिन के भीतर दिल्ली-एनसीआर में पीएम 2.5 का स्तर आश्चर्यजनक तरीके से 68 प्रतिशत तक बढ़ गया। यह बात सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने अपने एक नए विश्लेषण में कही है। विश्लेषण में कहा गया है कि यह प्रदूषण अति गंभीर स्थिति को दर्शाता है।

सीएसई का कहना है कि इस गंभीर स्थिति के बाद दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण के सभी प्रमुख स्रोतों जैसे वाहन, उद्योग, बिजली संयंत्र, अपशिष्ट जलाने और ठोस ईंधन आदि पर गंभीर कार्रवाई की जरूरत है। यही नहीं पिछले साल के मुकाबले इस साल अक्टूबर के पहले हफ्ते में ही दिल्ली में एनओटू भी औसतन 60 फीसदी बढ़ गया।

सीएसई के मुताबिक इन तमाम प्रदूषणों से निपटने के लिए सरकार की ओर से केवल आपातकालीन कार्रवाई ही पर्याप्त नहीं होगी बल्कि इसे खत्म करने के लिए एक नियोजित कार्यक्रम और इसके बुनियादी ढांचे पर कार्रवाई की जरूरत है।

ध्यान रहे कि गत 2 नवंबर को इस सर्दियों के मौसम में पहली बार दिल्ली का प्रदूषण स्तर पीएम 2.5 में अब तक सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई। यह वृद्धि 24 घंटों के भीतर ही देखी गई। इसे यदि प्रतिशत में देखें तो यह चौंका देने वाला आंकड़ा 68 प्रतिशत था।

सीएसई द्वारा दिल्ली-एनसीआर को जकड़ने वाले घातक शीतकालीन प्रदूषण के संबंध में एक विस्तृत विश्लेषण किया गया है। इस विश्लेषण को जारी करते हुए सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी ने कहा, “इस सर्दियों के मौसम की शुरुआत में ही पिछले साल नवंबर की तुलना में प्रदूषण का स्तर अधिक देखा गया।

प्रतिकूल मौसम संबंधी परिस्थितियों, फसलों के अवशेष जलाने आदि ने इस प्रदूषण को और खतरनाक बना दिया। इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य का खतरा और बढ़ गया है। यह प्रदूषण राजधानी और एनसीआर क्षेत्र में वाहनों, उद्योग, ऊर्जा प्रणालियों और अपशिष्ट प्रबंधन पर अब तक की सबसे कठोर कार्रवाई की जरूरत है।

यह विश्लेषण सीएसई की लैब द्वारा किया गया है। इसके प्रमुख अविकल सोमवंशी ने कहा, “मौसम के इस हिस्से के दौरान इस तरह का तेजी से बढ़ते प्रदूषण को असामान्य नहीं कहा जा सकता लेकिन यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कम समय में प्रदूषण में तीव्र वृद्धि हवा की गुणवत्ता को और गंभीर श्रेणी में ले जाने में सक्षम होता है। और यह स्थिति गंभीर श्रेणी में जाती है।

पिछले पांच वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि अक्टूबर की शुरुआत से ही पीएम 2.5 का स्तर लगातार बढ़ना शुरू हो जाता है। लेकिन इस साल स्थिति में कुछ परिवर्तन देखने में आया। इस वर्ष सितंबर के मध्य से ही पीएम 2.5 के स्तर में वृद्धि शुरू हो गई थी। ध्यान रहे कि इस वर्ष सितंबर और अक्टूबर के दौरान कम वर्षा के कारण खराब वायु गुणवत्ता वाले दिनों की शुरुआत जल्दी हो गई और इसमें सबसे खतरनाक बात जो सामने आई है, वह है कम समय के भीतर प्रदूषण में भारी वृद्धि का होना।

तमाम उपायों के बाद भी खेतों में पराली की आग लगाने की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है लेकिन यह अभी भी पिछले वर्ष की मौसमी चरम सीमा से काफी कम है। दिल्ली में पराली की आग का प्रतिशत 2 नवंबर को 25 प्रतिशत को पार कर गया था। 2 नवंबर से पहले वाले सप्ताह में यह 10-20 प्रतिशत के दायरे में था। आने वाले दिनों में इसके और बढ़ने की उम्मीद है। ध्यान रहे कि पंजाब और हरियाणा में आग की घटनाएं अभी चरम पर नहीं पहुंची हैं।

तमाम कार्य योजनाओं के कार्यान्वयन के बावजूद प्रदूषण हॉटस्पॉट अभी भी सबसे अधिक प्रदूषित बने हुए हैं। 2018 में पहचाने गए लगभग 13 प्रदूषण हॉटस्पॉट में से 10 अभी भी एक चुनौती बने हुए हैं, जबकि नए हॉटस्पॉट भी उभर रहे हैं और तेजी से बढ़ रहे हैं। मुंडका और न्यू मोती बाग दिल्ली के सबसे प्रदूषित स्थान हैं। दिल्ली के अधिकांश आधिकारिक हॉटस्पॉट प्रदूषण के गंभीर स्तर को पार कर रहे हैं।

वहीं, कई गैर-हॉटस्पॉट में प्रदूषण का स्तर अधिक दिख रहा है। दिल्ली में सबसे प्रदूषित नए हॉटस्पॉट हैं, न्यू मोती बाग, नेहरू नगर, सोनिया विहार और डीयू नॉर्थ कैंपस, वहीं एनसीआर में ग्रेटर नोएडा, नोएडा सेक्टर 62, लोनी और फरीदाबाद एनसीआर में सबसे प्रदूषित स्थान हैं। दिल्ली में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर भी बढ़ रहा है। यह बड़े पैमाने पर वाहनों से आता है।

नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का प्रदूषण दिल्ली के नेहरू नगर और सिरी फोर्ट सबसे अधिक रिकॉर्ड किया गया है। वहीं यह प्रदूषण नोएडा सेक्टर 125 और सेक्टर 1 और गाजियाबाद के संजय नगर और इंदिरापुरम में सबसे अधिक दर्ज किया गया है।

रॉयचौधरी कहती हैं कि हालांकि पिछले कुछ वर्षों में परिवहन और उद्योग क्षेत्रों में ईंधन और प्रौद्योगिकी को साफ करने और धूल स्रोतों को नियंत्रित करने के लिए कई उपाय किए गए हैं, लेकिन अभी भी बड़े पैमाने पर कार्रवाई की आवश्यकता है। वह कहती हैं कि वाहनों, उद्योग, बिजली संयंत्रों, अपशिष्ट जलाने, निर्माण और धूल स्रोतों से उत्सर्जन में कटौती के लिए स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर एक बड़ी कार्रवाई की आवश्यकता है।