प्रदूषण

स्लम बस्तियों के प्रदूषण से बदल रहा है मौसम का पैटर्न, भारत पर भी असर

Lalit Maurya

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायरनमेंट एंड पॉल्यूशन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, स्लम बस्तियों से होने वाले प्रदूषण के कारण एशिया में मौसम के पैटर्न में बदलाव आ रहा है। इनके चलते एक ओर जहां हवा की रफ्तार में वृद्धि हो रही है, वहीं दूसरी ओर बारिश में कमी आ रही है। यह अध्ययन वीआईटी यूनिवर्सिटी, भारत के सत घोष और अदिति पालसपुरे ने यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स, यूके, अमेरिका में पेन स्टेट कॉलेज ऑफ अर्थ एंड मिनरल साइंसेज, क्रैनफ़ील्ड यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ ब्यूलियू, फ्रांस के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर सम्मिलित रूप से किया है।

शोधकर्ताओं के अनुसार क्लाइमेट मॉडल्स पहले ही इस बात के संकेत दे चुके हैं कि स्थानीय स्तर पर हो रहा प्रदूषण, चक्रवाती तूफानों के गठन और उनके विकास को प्रभावित कर सकता है। शोधकर्ताओं के अनुसार क्लाइमेट मॉडल्स पहले ही इस बात के संकेत दे चुके हैं कि स्थानीय स्तर पर हो रहा प्रदूषण, चक्रवाती तूफानों के गठन और प्रगति को प्रभावित कर सकता है।

भारत के पूर्वी तट पर कई बड़े शहर बसे हैं। जोकि नियमित रूप से हर वर्ष अक्टूबर से दिसंबर के बीच इन तूफानों से प्रभावित होते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इन शहरों की झुग्गी-बस्तियों में रहने वाले लाखों लोग आज भी खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में लकड़ी का उपयोग करते हैं। जिससे बड़ी मात्रा में बायोमास कण उत्पन्न होते हैं, जोकि हवा में मिल जाते हैं। यह प्रदूषित कण जो काफी समय तक रासायनिक रूप से शहरों में वायु के भीतर रहते हैं, बादलों में क्लाउड कंडेंसशन न्यूक्लीय की प्रक्रिया को प्रभावित कर रहे हैं।

गौरतलब है कि वातावरण में माजूद एरोसोल के वह कण जो जलवाष्प के संघनन में मदद करते हैं और एक निश्चित स्तर पर जलवाष्प के संतृप्त होने से बादलों में बूंदों के बनने में सहायक होते हैं, उन्हें बादल संघनन नाभिक (या क्लाउड कंडेंसशन न्यूक्लीय) कहते हैं। इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने ठाणे चक्रवात का उदहारण लिया है। इस चक्रवाती तूफान के चलते 30 दिसंबर 2011 को तमिलनाडु के तटवर्ती इलाकों में भारी तबाही हुई थी। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि प्रदूषण ने इस तूफान को प्रभावित किया था, जिसके चलते तमिलनाडु में तबाही हुई थी । टीम द्वारा की गई गणना के अनुसार प्रदूषण के कारण बादलों में मौजूद जल से बूंदों में बदलने की प्रक्रिया में 12 फीसदी तक का बदलाव आ गया था । अध्ययन के अनुसार प्रदूषकों की मौजूदगी ने पानी को बूंदों के रूप में गिरने की जगह बादलों में ही रोक दिया था। जिससे वहां मौजूद जल की मात्रा में 20.5 फीसदी की वृद्धि हो गयी थी। इससे पहले से ही जल संकट का सामना कर रहे दक्षिण भारत की समस्याएं और बढ़ सकती हैं।