नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने तालचेर कोलफील्ड के कारण होने वाले प्रदूषण के आरोपों की जांच के लिए चार सदस्यीय समिति को निर्देश दिया है। बता दें कि तालचेर कोलफील्ड महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड का ही एक हिस्सा है। यह पूरा मामला ओडिशा के अंगुल जिले का है।
कोर्ट के निर्देशानुसार यह समिति इस क्षेत्र का दौरा करेगी और श्रीधर सामल द्वारा लगाए आरोपों की जांच करेगी। कोर्ट ने इस समिति को चार सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट हलफनामे पर एनजीटी की पूर्वी पीठ को सौपने के लिए कहा है। बता दें कि यह मामला तालचेर कोलफील्ड के संचालन के दौरान होने वाले प्रदूषण से जुड़ा है।
दावा है कि हर दिन कोयले से लदे पांच से दस हजार ट्रक खदानों से भारत के विभिन्न क्षेत्रों को जाते हैं। ये ट्रक मुख्य रूप से तालचेर शहर से होकर गुजरते हैं और फिर नेशनल हाईवे 149 पर जाते हैं, जो शहर से होकर गुजरता है। यह भी आरोप है कि ये ट्रक कोयले की धूल को रोकने और शहर को प्रदूषित होने से रोकने के लिए एहतियाती उपाय करने में विफल रहे हैं।
इसके साथ ही क्षेत्र में धूल प्रदूषण इतना अधिक होता है कि अधिकांश समय देखने में भी कठिनाई होती है और दृश्यता काफी घट जाती है। इस क्षेत्र में अधिकांश घरों और अन्य संरचनाओं पर हर जगह कोयले की धूल की एक काली परत दिखाई देती है। बल्हार, लिंगराज, नंदिरा, बड़ा डांडा साही, बाघमारा और दियाझरन जैसे गांव इस वायु प्रदूषण से विशेष रूप से प्रभावित हैं।
यह आरोप लगाया गया है कि कोयले की धूल के अलावा, फ्लाई ऐश ने भी तालचेर और टेंटुलेई जैसे क्षेत्रों में अधिकांश कृषि भूमि और जल निकायों को नुकसान पहुंचाया है। महानदी कोलफील्ड्स की निकटवर्ती कोयला खनन गतिविधियों से फ्लाई ऐश और कोयले की धूल के रिसाव के कारण बड़ा डंडा साही, बाघमारा और दियाझरन जैसे गांव गंभीर रूप से प्रभावित हैं।
इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत जुलाई 2021 में तालचेर नगर पालिका में वायु गुणवत्ता प्रबंधन सेल का गठन किया गया था, इसका उद्देश्य शहर में प्रदूषण को कम करना है। हालांकि, हकीकत में यह टीम प्रभावी ढंग से काम नहीं कर रही है।
बरसाती नाले में सीवेज के निपटान की जांच के लिए समिति गठित, पश्चिम मध्य रेलवे पर है आरोप
पश्चिम मध्य रेलवे द्वारा बरसाती नाले में सीवेज के निपटान को लेकर एक शिकायत एनजीटी में दायर की गई थी। कोर्ट ने मामले की गंभीरता को समझते हुए जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति के गठन का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि मामला मध्य प्रदेश के दमोह का है। कोर्ट ने समिति से छह सप्ताह के भीतर तथ्यों की जांच कर की गई कार्रवाई पर रिपोर्ट सौंपने को कहा है।
बता दें कि पूरा मामला दमोह के मांगज के वार्ड नंबर 3 में स्थित बरसाती नाले से जुड़ा है। जो वार्ड 1, 2, और 3 से जल निकासी में मदद करता है। इसके बाद यह आगे जाकर कोपरा नदी में मिल जाता है।
आरोप है पश्चिम मध्य रेलवे सीवेज का निपटान करके इस नाले को दूषित कर रहा है। इसकी वजह से जल प्रवाह भी बाधित होता है और स्टेशन क्षेत्र में बाढ़ आ जाती है। इसके अतिरिक्त, वार्ड नंबर तीन में स्टेशन के पास नाले के एक हिस्से को कंक्रीट से ढंका जा रहा है, और पश्चिम मध्य रेलवे द्वारा अमृत भारत स्टेशन योजना के तहत एक सीमा दीवार का निर्माण भी किया जा रहा है।
आरोप है कि जिस क्षेत्र में यह कार्य किया जा रहा है, वह निचला इलाका है जहां बारिश के दिनों में जल भराव हो जाता है। ऐसे में इस क्षेत्र में बाढ़ से बचने के लिए बारिश के अतिरिक्त पानी को निकालने के लिए तूफानी जल निकासी बेहद महत्वपूर्ण है।
तर्क दिया गया है कि यदि दीवार खड़ी की गई तो इससे पानी के प्रवाह में बाधा पैदा हो जाएगी और नाले से होकर गुजरने वाला पानी उस क्षेत्र में जमा हो जाएगा, जिसके बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होगा। नतीजन बारिश के दौरान पूरा क्षेत्र जलमग्न हो जाएगा। इसकी वजह मच्छर और अन्य तरह के कीड़े पैदा हो जाएंगें, जिनसे कई तरह की बीमारियां फैल सकती हैं।
राजगढ़ में काली सिंध नदी में नहीं होना चाहिए कोई अवैध खनन, एनजीटी ने सुनिश्चित करने का दिया निर्देश
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को काली सिंध नदी में अवैध खनन के संबंध में यशवंत पोलखेड़ा द्वारा दायर शिकायत के रूप में एक पत्र याचिका प्राप्त हुई थी। बता दें कि अवैध खनन का यह मामला मध्य प्रदेश में राजगढ़ की जीरापुर तहसील से जुड़ा है।
इस मामले में एनजीटी ने छह मार्च 2024 को निर्देश दिया है कि इस आवेदन की एक प्रति राजगढ़ के जिला मजिस्ट्रेट को भेजी जाए, साथ ही कोर्ट ने उन्हें पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करने वाले किसी भी अवैध खनन को रोकने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश देने को कहा है।