प्रदूषण

वैज्ञानिकों ने बनाया ऐसा एंजाइम वेरिएंट, जो प्लास्टिक को कर देगा नष्ट

Dayanidhi

वैज्ञानिकों ने एक ऐसा एंजाइम वेरिएंट बनाया है जो प्लास्टिक को तोड़ सकता है। आमतौर पर प्लास्टिक को नष्ट होने में सदियां लग जाती हैं। यह कारनामा टेक्सास विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने मिलकर कर दिखाया है।

यह खोज दुनिया की सबसे अधिक दबाव वाली पर्यावरणीय समस्याओं में से एक को हल करने में मदद कर सकती है। लैंडफिल में जमा होने वाले अरबों टन प्लास्टिक का कचरा जो हमारी भूमि और पानी को प्रदूषित करता है, इससे निजात पाई जा सकती है।

एंजाइम में बड़े पैमाने पर रीसाइक्लिंग करने की क्षमता है जो प्रमुख उद्योगों के प्लास्टिक को पुन: उपयोग करके तथा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है।

टेक्सास विश्वविद्यालय में मैककेटा डिपार्टमेंट ऑफ केमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर हैल एल्पर ने कहा कि इस एंजाइम की मदद से रीसाइक्लिंग प्रक्रिया का लाभ उठाने के लिए उद्योगों में अनंत संभावनाएं हैं। कचरे का प्रबंधन उद्योगों के लिए बहुत दूर की कौड़ी है, हालांकि उद्योग हर क्षेत्र के निगमों को अपने उत्पादों के रीसाइक्लिंग में भूमिका निभाने का अवसर प्रदान करते हैं।

अधिक टिकाऊ एंजाइम वाले तरीकों के माध्यम से, हम एक वास्तविक सर्कुलर प्लास्टिक अर्थव्यवस्था की कल्पना कर सकते हैं।

यह परियोजना पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी) पर केंद्रित है, जो अधिकांश उपभोक्ता पैकेजिंग में पाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पॉलिमर है, जिसमें बिस्कुट कंटेनर, सोडा की बोतलें, फल और सलाद पैकेजिंग और कुछ फाइबर और वस्त्र शामिल हैं। इन सभी का वैश्विक कचरे में 12 फीसदी हिस्सा है।

एंजाइम प्लास्टिक को छोटे भागों (डीपोलीमराइज़ेशन) में तोड़ने और फिर रासायनिक रूप से इसे वापस एक साथ रखने (रिपोलीमराइज़ेशन) की एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया को पूरा करने में सक्षम पाया गया। कुछ मामलों में प्लास्टिक को 24 घंटों में पूरी तरह से छोटे टुकड़ों में तोड़ा जा सकता है।

कॉकरेल स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग और कॉलेज ऑफ नेचुरल साइंसेज के शोधकर्ताओं ने पेटेज नामक एक प्राकृतिक एंजाइम में नया म्युटेशन या उत्परिवर्तन करने के लिए एक मशीन लर्निंग मॉडल का उपयोग किया। जो बैक्टीरिया को पीईटी प्लास्टिक को तोड़ने में मदद करता है।

मॉडल द्वारा इस तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं कि एंजाइमों में कौन से म्युटेशन किए जाए जो कम तापमान में प्लास्टिक के कचरे को जल्दी से छोटे भागों में तोड़ने या डीपोलीमराइज़ेशन के लक्ष्य को पूरा करें।

इस प्रक्रिया के माध्यम से, जिसमें 51 अलग-अलग प्लास्टिक कंटेनर, पांच अलग-अलग पॉलिएस्टर फाइबर और पीईटी से बने कपड़े और पानी की बोतलें शामिल थीं, शोधकर्ताओं ने एंजाइम की प्रभावशीलता को साबित किया, जिसे वे उपयोग में लाने वाला, सक्रिय, स्थिर और सहनशील पेटेज बना सकते हैं।

सेंटर फॉर सिस्टम्स एंड सिंथेटिक बायोलॉजी के प्रोफेसर एंड्रयू एलिंगटन ने कहा यह काम वास्तव में सिंथेटिक बायोलॉजी से लेकर केमिकल इंजीनियरिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक विभिन्न विषयों को एक साथ लाने की शक्ति को प्रदर्शित करता है।

प्लास्टिक के कचरे को कम करने के लिए रीसाइक्लिंग सबसे प्रमुख तरीका है। लेकिन दुनिया भर में सभी प्लास्टिक के 10 फीसदी से भी कम को रीसायकल किया जाता है। प्लास्टिक को लैंडफिल में फेंकने के अलावा उसके निपटान का सबसे आम तरीका इसे जलाना है, जो महंगा है, ऊर्जा की खपत करता है और हवा में हानिकारक गैसों को उगलता है। अन्य वैकल्पिक औद्योगिक प्रक्रियाओं में ग्लाइकोलाइसिस, पायरोलिसिस या मेथनोलिसिस की अत्यधिक ऊर्जा लेने वाली प्रक्रियाएं शामिल हैं।

जैविक समाधानों में ऊर्जा का बहुत कम उपयोग होता है। प्लास्टिक रीसाइक्लिंग के लिए एंजाइमों पर शोध पिछले 15 वर्षों के दौरान काफी आगे बढ़ा है। हालांकि अब तक, कोई भी यह पता लगाने में सक्षम नहीं था कि ऐसे एंजाइम कैसे बनाए जाते हैं जो बड़े औद्योगिक और आम स्तर पर किफायती हों। साथ ही यह कम तापमान पर कुशलता से काम कर सकें। फास्ट-पेटेज 50 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर प्रक्रिया को अंजाम दे सकता है।

शोधकर्ता ने कहा कि टीम की योजना औद्योगिक और पर्यावरणीय प्रयोगों की तैयारी के लिए एंजाइम उत्पादन को बढ़ाने पर काम करने की है। लैंडफिल की सफाई और अधिक कचरा उत्पन्न करने वाले उद्योगों को हरा-भरा करना सबसे प्रमुख है। लेकिन एक अन्य प्रमुख संभावित उपयोग पर्यावरणीय उपचार है। टीम प्रदूषित स्थलों को साफ करने के लिए एंजाइमों को बाहर निकालने के कई तरीकों पर विचार कर रही है।

अल्पर ने कहा वातावरण की सफाई के प्रयोगों पर विचार करते समय, आपको एक एंजाइम की आवश्यकता होती है जो परिवेश के तापमान पर वातावरण में काम कर सके। उन्होंने कहा पर्यावरण संरक्षण में हमारी तकनीक से बड़ा फायदा होने वाला है। यह शोध नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।