प्रदूषण

लाहौर, दिल्ली और ढाका के लोग ले रहे हैं दुनिया की सबसे ज्यादा दूषित हवा में सांस

लाहौर में पीएम 2.5 का वार्षिक औसत 123.9 था, जबकि दिल्ली में 102 और ढाका में 86.5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रिकॉर्ड किया गया था

Lalit Maurya

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन ओपन एक्यू  द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि लाहौर, दिल्ली और ढाका में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण है। उनके द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार  लाहौर में पीएम 2.5 का वार्षिक औसत 123.9 था, जबकि दिल्ली में 102 और ढाका में 86.5 रिकॉर्ड किया गया था।

रिपोर्ट से पता चला है कि दुनिया के 33 बड़े शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी मानकों से कहीं ज्यादा है, जो वहां रहने वालों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है।

यदि अध्ययन किए गए सभी 50 शहरों को देखें तो उनमें पीएम 2.5 का औसत स्तर 39 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था, जोकि डब्लूएचओ द्वारा जारी मानक 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से करीब 4 गुना ज्यादा है। इन 50 शहरों की लिस्ट में 7 शहर भारत के भी हैं। इनमें दिल्ली (102),  मुंबई (43.4), कोलकाता (52.1), बैंगलोर (27.1), चेन्नई (34.3), हैदराबाद (38.2) और अहमदाबाद (56.7) शामिल हैं।

दुनिया की 90 फीसदी आबादी पहले ही जहरीली हवा में सांस ले रही है, जबकि उनमें से केवल आधे यह जानते है कि जिस हवा में वो सांस ले रहे हैं वो कितनी जहरीली है। वायु प्रदूषण की यह समस्या दक्षिणी के शहरों में कहीं ज्यादा विकट है जोकि वहां रहने वाले सबसे कमजोर तबके पर सबसे ज्यादा असर डाल रही है।

उदाहरण के लिए दिल्ली को ले लीजिए जहां वायु में पीएम 2.5 का स्तर 102 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था जबकि इसके विपरीत न्यूयोर्क शहर में केवल 7.7 रिकॉर्ड किया गया था।

ऐसे में प्रदूषण को मॉनिटरिंग करने वाले सस्ते सेंसर्स काफी फायदा पहुंचा सकते हैं, जिनकी मदद से रियल टाइम में वायु गुणवत्ता के स्तर पर निगरानी रखी जा सकती है। कम लागत वाले यह सेंसर वायु गुणवत्ता सम्बन्धी आंकड़ों की जो कमी है उसे पूरा कर सकते हैं। इसकी मदद से ने केवल सरकार बल्कि आम नागरिक और शोधकर्ता भी वायु गुणवत्ता की निगरानी कर सकते हैं। जिसकी मदद से वायु गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है।

भारत में हर साल 1.16 लाख नवजातों की जान ले रहा है वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण का खतरा कितना बड़ा है इस बात का अंदाजा आप इसी तथ्य से लगा सकते हैं कि दुनिया भर में हर साल तकरीबन 90 लाख लोग वायु प्रदूषण के चलते असमय मारे जाते हैं। जबकि जो बचे हैं उनके जीवन के भी यह औसतन प्रति व्यक्ति तीन साल छीन रहा है। शोध के अनुसार वायु प्रदूषण सबसे ज्यादा बच्चों और बुजुर्ग व्यक्तियों पर असर डाल रहा है।

स्वास्थ्य सुविधाओं के आभाव में इसके सबसे ज्यादा शिकार गरीब देशों के लोग बन रहे हैं। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 के अनुसार वायु प्रदूषण के चलते 2019 में भारत के 116,000 से भी ज्यादा नवजातों की मौत हुई थी, जबकि इसके कारण 16.7 लाख लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। वैसे भी देश में शायद ही ऐसा कोई शहर है जो इस प्रदूषण के असर से बचा है।

साक्ष्य मौजूद हैं वायु प्रदूषण न केवल दुनिया भर में होने वाली अनेकों मौतों के लिए जिम्मेवार है बल्कि इसके चलते लोगों के स्वास्थ्य का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। आज इसके कारण दुनिया भर में कैंसर, अस्थमा जैसी बीमारियां बढ़ती ही जा रही हैं। इसके चलते शारीरिक के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा है, परिणामस्वरूप हिंसा, अवसाद और आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। दुनिया भर में वायु प्रदूषण एक ऐसा खतरा है जिससे कोई नहीं बच सकता और न ही इससे भाग सकता है। ऐसे में बचने का सिर्फ एक तरीका है, जितना हो सके इसे कम किया जाए।