एक नए अध्ययन में पाया गया है कि लोग हर साल हजारों एयरबोर्न माइक्रोप्लास्टिक्स के संपर्क में आते हैं। अध्ययन में श्रीलंका में इनडोर और आउटडोर की जगहों में एयरबोर्न माइक्रोप्लास्टिक (एएमपी) के बहुत अधिक मात्रा और इसे संभावित स्रोतों के बारे में पता लगाया गया। जहां घरों के अंदर माइक्रोप्लास्टिक की 28 गुना अधिक मात्रा पाई गई।
यहां बताते चलें कि, एयरबोर्न माइक्रोप्लास्टिक बहुत सूक्ष्म और हल्के कण होते हैं, जो हवा के द्वारा घर के अंदर या वातावरण में आसानी से फैल जाते हैं। अधिकांश एयरबोर्न माइक्रोप्लास्टिक की लंबाई एक मिमी से कम होती हैं और उन्हें रेशा या फाइबर जो कि लंबे और पतले, तथा बिना फाइबर के रूप में आकार के आधार पर बांटा जाता है।
लोग अपना लगभग 90 फीसदी वक्त घर के अंदर बिताते हैं और इस अध्ययन में पहचाने गए इनडोर और आउटडोर माइक्रोप्लास्टिक के स्तरों के आधार पर, शोधकर्ताओं ने प्रति वर्ष, प्रति व्यक्ति औसत 2,675 एयरबोर्न माइक्रोप्लास्टिक कणों के सम्पर्क में आने के खतरों की गणना की।
ऑस्ट्रेलियन रिवर्स इंस्टिट्यूट की शोधकर्ता कुशनी परेरा ने कहा जबकि माइक्रोप्लास्टिक वाले वातावरण में सांस लेना प्लास्टिक से लोगों को होने वाले खतरे का एक अहम मार्ग है, हवा में उनकी मात्रा को लेकर बहुत कम आंकड़े हैं।
एयरबोर्न माइक्रोप्लास्टिक्स (एएमपी) पर अधिकांश शोध उच्च आय वाले देशों तक सीमित हैं, जहां कचरे का प्रबंधन अच्छी तरह से किया जाता है, निम्न और मध्यम आय वाले देशों में इस तरह के केवल मुट्ठी भर अध्ययन होते हैं।
माइक्रोप्लास्टिक पर उपलब्ध कुछ अध्ययनों ने आम तौर पर एक निष्क्रिय नमूनाकरण तकनीक का उपयोग करके एयरबोर्न प्लास्टिक एकत्र किया है, जहां वे गीली या सूखी स्थितियों में वातावरण से बाहर जमा होते हैं। इस विधि में यह तर्क दिया जा सकता है कि, सांस लेने के माध्यम से माइक्रोप्लास्टिक के खतरों का मूल्यांकन करना सही नहीं है।
इस कारण से, शोधकर्ताओं ने एक सक्रिय नमूनाकरण तकनीक का उपयोग किया जिसने एक फिल्टर के माध्यम से हवा की ज्ञात मात्रा को पंप किया और संचित एमपी का मूल्यांकन किया। परिवेशी वायु-जनित माइक्रोप्लास्टिक स्तरों के लिए लोगों को होने वाले खतरों की पहचान करने के लिए सक्रिय नमूनाकरण एक अच्छा तरीका है।
ऑस्ट्रेलियन रिवर इंस्टीट्यूट में एआरआई टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च प्रोग्राम (एआरआईटीओएक्स) का नेतृत्व करने वाले सह-अध्ययनकर्ता प्रोफेसर फ्रेडरिक लेउश ने कहा कि जहां तक हमारी जानकारी है, सक्रिय सैंपलिंग या नमूनाकरण पद्धति का उपयोग करके माइक्रोप्लास्टिक (एएमपी) की पहचान करने और इसकी मात्रा निर्धारित करने के लिए दक्षिण एशिया में कोई पिछला अध्ययन नहीं किया गया है।
शोधकर्ताओं ने अलग-अलग जनसंख्या घनत्व वाले विभिन्न शहरी, ग्रामीण, तटीय, आंतरिक, औद्योगिक और प्राकृतिक आवासों से हवा के नमूने एकत्र किए।
बाहरी वातावरण के प्रकार की परवाह किए बिना, इनडोर एमपी स्तर, ज्यादातर वस्त्रों और कपड़ों से बने फाइबर और सामयिक टुकड़ों से बने होते हैं, जो बाहरी स्तरों की तुलना में एक से 28 गुना अधिक होते हैं। 0.10 से 0.50 मिलीमीटर के आकार की सीमा में पारदर्शी, नीले और काले रंग के रेशे सभी जगहों पर पाए गए थे।
प्रोफेसर ल्यूश ने कहा श्रीलंका के इन शुरुआती परिणामों से पता चलता है कि इनडोर एयरबोर्न माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा बाहरी वातावरण की तुलना में इनडोर स्रोतों और रहने वालों की जीवन शैली से अधिक संबंधित है।
बाहरी नमूनों में, कम घनत्व वाले क्षेत्रों की तुलना में उच्च घनत्व वाले स्थलों में एएमपी की मात्रा हमेशा अधिक पाई गई, यह सुझाव देते हुए कि एएमपी की बहुतायत और वितरण जनसंख्या घनत्व, औद्योगीकरण के स्तर और मानव गतिविधि से संबंधित था।
इनडोर और आउटडोर दोनों जगहों में प्रमुख प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक पीईटी फाइबर (पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट) थे, जो मुख्य रूप से कपड़ों से उत्पन्न होते हैं।
परेरा ने कहा, यह अध्ययन पहला एक महत्वपूर्ण कदम है, जो दक्षिण एशिया के एक निम्न-मध्यम आय वाले देश में एएमपी की प्रचुरता को दर्शाता है।
उन्होंने कहा इस क्षेत्र में और अधिक शोध किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि यह दुनिया की आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा है और वैश्विक प्लास्टिक कचरे के लिए दूसरा सबसे बड़ा जिम्मेवार है।
आज तक, न केवल दक्षिण एशिया में बल्कि दुनिया भर में एयरबोर्न माइक्रोप्लास्टिक (एएमपी) के लिए बहुत सीमित निगरानी और शमन उपायों को लागू किया गया है। एएमपी की बहुतायत और वितरण पर एक डेटाबेस बनाने के लिए और सांस लेने और संभावित स्वास्थ्य को होने वाले खतरों के माध्यम से लोगों को होने वाले खतरों का सटीक आकलन करने के लिए दुनिया भर में लंबे समय तक निगरानी की आवश्यकता है। यह अध्ययन एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।