प्रदूषण

वायु प्रदूषण की रोकथाम में मददगार हो सकते हैं पीपल, नीम, आम, लेकिन सड़कों से हो रहे गायब

पेड़-पौधे प्रदूषकों से होने वाले दुष्प्रभावों के प्रति कितने सहनशील होते हैं यह उनमें मौजूद एस्कॉर्बिक एसिड के स्तर पर निर्भर करता है, जो पीपल में सबसे ज्यादा पाया गया है

Susan Chacko, Lalit Maurya

एक समय था जब हर कोई अपने घर के आंगन में नीम, आम जैसे पेड़ लगाता था। गांव और शहरों में आज भी पीपल और बरगद की पूजा होती है। लेकिन समय बदला तो घर-आंगन में इन पेड़ों की जगह पाम जैसे सजावटी पेड़ों ने ले ली। समय के साथ धीरे-धीरे यह पेड़ अब सड़को से भी गायब होते जा रहे हैं।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि आम, नीम, पीपल जैसे यह स्थानीय पेड़ वायु प्रदूषण को रोकने में मदद कर सकते हैं। इस बारे में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारत में पाए जाने वाले कुछ स्थानीय पेड़ और फसलें प्रदूषकों को सोख और फिल्टर करके बढ़ते वायु प्रदूषण के असर को कम करने में मददगार हो सकते हैं।

जर्नल करंट साइंस में 25 अप्रैल, 2023 को प्रकाशित इस अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि पीपल, नीम, आम जैसे पेड़ों के साथ मक्का, अरहर और कुसुम जैसी फसलें उन क्षेत्रों के लिए सबसे उपयुक्त हैं जहां वायु प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा रहता है।

पटना, बिहार में किए गए इस अध्ययन के दौरान पेड़ों ने एयर पॉल्यूशन टॉलरेंस इंडेक्स (एपीटीआई) में बेहतर प्रदर्शन किया था। गौरतलब है कि एपीटीआई और  प्रत्याशित प्रदर्शन सूचकांक वायु प्रदूषण के खिलाफ पेड़ों और फसलों की प्रजातियों की सहन क्षमता का आंकलन करने के लिए उपयोग किए जाने वाला टूल है।

अपने इस अध्ययन में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के शोधकर्ताओं ने उन फसलों और पेड़ों का विश्लेषण किया है जो भारत के पूर्वी क्षेत्र में सबसे आम हैं। उन्होंने पटना के पांच अलग-अलग इलाकों में पेड़ों और फसलों की 19 प्रजातियों का अध्ययन किया। रिसर्च के दौरान पेड़ों और फसलों की प्रजातियों ने वायु प्रदूषण के खिलाफ अलग-अलग प्रतिक्रिया दी थी।

क्या है जो इन पेड़ों को बनता है वायु प्रदूषण का सामना करने के काबिल

गौरतलब है कि पेड़-पौधे प्रदूषकों के दुष्प्रभावों के प्रति कितने सहनशील होते हैं यह उनमें मौजूद एस्कॉर्बिक एसिड के स्तर पर निर्भर करता है। पता चला है कि पीपल में एस्कॉर्बिक एसिड का  स्तर सबसे ज्यादा था, इसके बाद आम के पेड़ प्रदूषण को कम करने में सबसे ज्यादा काबिल थे।

वहीं यदि अनाज की बात करें तो मक्के में एस्कॉर्बिक एसिड का स्तर सबसे ज्यादा था। वहीं  तिलहन, कुसुम और अलसी के बीजों में एस्कॉर्बिक एसिड का स्तर करीब-करीब बराबर था। इसी तरह यदि दालों को देखें तो उनमें अरहर में एस्कॉर्बिक एसिड की मात्रा सबसे ज्यादा थी, इसके बाद मटर का नंबर था।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सिंधु-गंगा के मैदानी क्षेत्र में स्थित पटना, भारत के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है। ऐसे में वहां वायु प्रदूषण को कम करने के साथ इसपर कहीं ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। शोधकर्ताओं के मुताबिक शहरी वानिकी और कृषि, इसके सबसे बेहतर उपायों में से एक है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत में जहां बढ़ता वायु प्रदूषण एक गंभीर चिंता का विषय है, वहां ऐसे पेड़ों और फसलों का चयन जो वायु प्रदूषण के प्रति कम संवेदनशील और उनका बेहतर सामना कर सकती हैं। वो वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की एक बेहतर पर्यावरण अनुकूल रणनीति हैं, क्योंकि ऐसी प्रजातियां वातावरण से प्रदूषकों को कम करने के साथ-साथ हटाने का काम भी करती हैं।

आंकड़े दर्शाते हैं कि 2021 में इस क्षेत्र के अधिकांश शहरों ने  पीएम 2.5 के वार्षिक स्तर में वृद्धि दर्ज की थी। यही वजह है कि बढ़ते वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी एक कार्य योजना में पटना और उसके आसपास हरित पट्टी बनाने और नीम, शीशम, पीपल, कीकर और गुलमोहर जैसे पेड़ लगाने की सिफारिश की है।

दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने भी अपने एक विश्लेषण में पाया है कि कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के चलते वायु प्रदूषण में आई थोड़ी गिरावट के बाद पश्चिम बंगाल, बिहार और ओडिशा में एक बार फिर से वायु प्रदूषण में उछाल दर्ज किया गया है।

अपने शहर में वायु गुणवत्ता की ताजा स्थिति के बारे में अपडेट आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।