प्रदूषण

चार हजार शहरों में से केवल 12 फीसदी में ही है वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली, सीएसई रिपोर्ट

पर्यावरण पर काम कर रही संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने देश में एयर मॉनीटरिंग स्टेशन का विश्लेषण किया है

Anil Ashwani Sharma

भारत के 4,041 जनगणना शहर और कस्बों (सेंसस सिटी और टाउन) में से केवल 12 प्रतिशत में ही वायु गुणवत्ता निगरानी प्रणाली मौजूद है। और तो और इनमें से केवल 200 शहर ही सभी छह प्रमुख मानदंडों वाले प्रदूषकों की निगरानी करते हैं। यह तब है जब राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (एनएएक्यूएस) और राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एसीएपी) के तहत स्वच्छ वायु लक्ष्यों के अनुपालन के लिए मजबूत वायु गुणवत्ता निगरानी की आवश्यकता होती है। यह बात सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा जारी एक नए विश्लेषण कही गई है। सीएसई ने अपने विश्लेषण में यह भी कहा है कि देश के वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क की स्थिति बहुत ही भयावह स्थिति में है।

सीएसई के विश्लेषण में बताया गया है कि देश की लगभग 47 प्रतिशत आबादी वायु गुणवत्ता निगरानी ग्रिड के अधिकतम दायरे से बाहर है, जबकि 62 प्रतिशत वास्तविक निगरानी नेटवर्क से बाहर हैं। इस संबंध में सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी कहती हैं कि सीमित वायु गुणवत्ता निगरानी से बड़ी संख्या में कस्बों/शहरों व क्षेत्रों की पहचान करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है और विशेष रूप से स्वच्छ वायु कार्रवाई के मूल्यांकन के लिए आवश्यक स्वच्छ वायु कार्रवाई और वायु गुणवत्ता में सुधार के प्रभावी मूल्यांकन में बाधा आती है।

सीएसई के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक अविकल सोमवंशी कहते हैं कि वर्तमान निगरानी नेटवर्क को अपर्याप्त डेटा और निगरानी की खराब गुणवत्ता नियंत्रण की चुनौती का भी सामना करना पड़ता है। इससे स्वच्छ वायु लक्ष्यों के मानदंडों को स्थापित करने में वायु गुणवत्ता प्रवृत्ति मूल्यांकन कठिन बना देता है। वर्तमान शहरी निगरानी ग्रिड कुछ बड़े शहरों में बड़ी संख्या में स्थित हैं और ये ऐसे विशाल क्षेत्र हैं, जहां कोई निगरानी नहीं है। स्वच्छ वायु कार्य योजनाओं के कार्यान्वयन का समर्थन करने, दैनिक जोखिमों के बारे में जनता को जानकारी प्रदान करने, आपातकालीन प्रतिक्रिया और दीर्घकालिक कार्रवाई को डिजाइन करने के लिए व्यापक आबादी व आवासों को कवर करने के लिए इसे पूरी तरह से तर्कसंगत बनाने की आवश्यकता है।  

अध्ययन में 883 मैनुअल स्टेशन और 409 वास्तविक समय स्टेशन शामिल हैं। अध्ययन से कई बातें निकल कर आई हैं, जैसे 2010 के बाद से मैनुअल मॉनिटरिंग स्टेशनों की संख्या दोगुनी हो गई है। ध्यान रहे कि 2010 में 411 मैनुअल स्टेशन संचालित हो रहे थे। सीपीसीबी वेबसाइट के अनुसार वर्तमान में 28 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों  के 379 शहरों/ 883 कस्बों में ऑपरेटिंग मैनुअल स्टेशन हैं। सीपीसीबी ने एनएएमपी 2020 रिपोर्ट के बाद स्टेशन-वार निगरानी डेटा प्रकाशित करना बंद कर दिया है।

वहीं दूसरी ओर 2010 के बाद से वास्तविक समय निगरानी स्टेशनों की संख्या 20 गुना बढ़ गई है। 27 राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों के 209 शहरों/409 कस्बों में वास्तविक समय सीएएक्यूएमएस स्टेशन हैं। इनमें से 77 स्टेशन 2022 में जोड़े गए। 22 फरवरी, 2023 तक, 23 नए स्टेशन और 18 नए शहर नेटवर्क में जोड़े गए, जिससे 221 शहरों में 423 स्टेशन बन गए। वास्तविक परिचालन स्टेशनों का आकलन करना हमेशा संभव नहीं होता है। उदाहरण के लिए कम से कम चार स्टेशनों ने पिछले कुछ वर्षों में कोई निगरानी डेटा रिपोर्ट नहीं किया है। इनमें नवी मुंबई में ऐरोली, मुंबई में बांद्रा, विजयवाड़ा में पीडब्ल्यूडी ग्राउंड और लखनऊ में निशांत गंज शामिल हैं।

ध्यान रहे कि 4,041 सेंसस शहरों/कस्बों में से केवल 476 में वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन (मैनुअल या वास्तविक समय) हैं। इनमें से अधिकांश (267 शहरों) में मैनुअल स्टेशन हैं। 98 शहरों में केवल वास्तविक समय स्टेशन हैं और 111 शहरों में मैनुअल और रियल टाइम स्टेशन दोनों हैं।