मानव जनित शोर जीवों के जरूरी संचार संकेतों में बाधा पैदा कर रहा है। वे एक दूसरे से बेहतर तरीके से बातचीत नहीं कर पा रहे हैं। यह ताजा अध्ययन क्वींस यूनिवर्सिटी बेलफास्ट ने किया है जो कि ध्वनि प्रदूषण के कारण वन्यजीवों पर पड़ने वाली चिंता को बयान करता है। दअरसल यदि जीव एक दूसरे को बेहतर तरीके से सुन और समझ नहीं पाएंगे, जो कि कई मौकों पर उनके जीने-मरने का सवाल बन जाता है तो फिर ध्वनि प्रदूषण के कारण उनका अस्तित्व दांव पर ही लगा है।
मेटा-विश्लेषण अध्ययन में पाया गया कि जब जानवर अपने साथी को आकर्षित कर रहे होते हैं उसी वक्त प्रतिद्वंदियों को पीछे हटाने और संतान जनक संचार भी करते हैं, यह सभी असतित्तव के लिए बेहद जरूरी भूमिकाएं अदा करते हैं। और इस अहम प्रक्रिया को मानव जनित शोर बाधित कर रहा है।
यह अध्ययन दो दिसंबर, 2020 को ग्लोबल चेंज बॉयोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किया गया है। यह पहला अध्ययन है जो कि विभिन्न किस्मों की प्रजातियों में शोर के कारण होने वाले प्रभाव का आकलन करता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि मानव जनित शोर एक बेहद ही खतरनाक तरीके का प्रदूषण है। बहुत से पर्यावास में पशु या जीव प्राकृतिक स्रोतों से पैदा होने वाले शोर के आदी होते हैं और यह उनके लिए एक महत्वपूर्ण विकासवादी चयनात्मक बल है।
इसके विपरीत, मानव निर्मित शोर स्वाभाविक रूप से होने वाले शोर से भिन्न होता है क्योंकि यह आमतौर पर पिच में कम और ज्यादा तेज आवाज वाला होता है।
शोधार्थियों ने 23 प्रयोगवादी अध्ययनों को एकत्र कर पाया कि 31 विविध जीवों की प्रजातियां, इनमें खासतौर से मेढ़क और पक्षी शामिल हैं, कि जीव मानव जनित शोर के कारण परेशान होते हैं। शोधार्थियों ने प्रत्येक जानवर की प्रतिक्रिया की तुलना बेसलाइन स्तर से की, अक्सर पर्यावास में प्राकृतिक पृष्ठभूमि का शोर स्तर होता है।
शोधार्थियों ने प्रत्येक जीवों में लाउडनेस, पिच, दर जैसे कई विविध ध्वनि संकेत मानकों का अध्ययन किया। इसमें पाया गया कि मानव जनित शोर ने पशुओं के ध्वनि संकेतो को बदलकर उनके सबसे अहम संचार में बाधा पैदा किया है।
प्रमुख शोधकर्ता डॉ हैनंसजोर्ग कुंक ने कहा कि मानव जनित शोर यानी ध्वनि प्रदूषण और वन्यजीव संरक्षण के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी जुड़ी है। यह शोध साबित करता है कि मानव जनित शोर स्पष्ट तौर पर जीवों के संचार में बाधा पहुंचाता है और वे एक-दूसरे को अच्छे से सुन-समझ नहीं सकते और भविष्य में इस कारण से उनका सर्वाइव करना मुश्किल हो जाएगा।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि हर एक प्रजाति शोर को लेकर अलग-अलग तरह से संवेदी होती है। ऐसे में कोई एक उपाय सभी प्रजातियों पर लागू भी नहीं हो सकेगा। यह एक बड़ी चुनौती है।
डॉक्टर कुंक ने कहा कि प्राकृतिक ध्वनियां जीवों के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं। साथ ही इस शोध से पता चलता है कि मानव-प्रेरित पर्यावरणीय परिवर्तनों से निपटने में कोई संदेह नहीं है, जैसे कि ध्वनि प्रदूषण, एक महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक चुनौती है जो अंततः मनुष्यों सहित पारिस्थितिक तंत्र और जीवों दोनों के स्वास्थ्य का निर्धारण करेगा।