प्रदूषण

संरक्षित वन क्षेत्र के एक किलोमीटर के दायरे में नहीं होना चाहिए खनन: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट का यह भी कहना है कि जहां पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र का दायरा एक किलोमीटर से अधिक है, वहां भी यह प्रतिबन्ध लागू होगा

Susan Chacko, Lalit Maurya

सुप्रीम कोर्ट (एससी) ने 27 फरवरी, 2024 को दिए अपने आदेश में स्पष्ट कर दिया है कि पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ईएसजेड) और संरक्षित वन क्षेत्र के एक किलोमीटर के दायरे में खनन सम्बन्धी गतिविधियां को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।

इसी तरह जहां भी पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र एक किलोमीटर से अधिक है वहां भी यह प्रतिबन्ध लागू होगा। गौरतलब है कि यह मामला उत्तराखंड में नंधौर वन्यजीव अभयारण्य के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र के भीतर चल रही खनन गतिविधियों और स्टोन क्रशर से संबंधित है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 26 अप्रैल, 2023 को दिए अपने एक आदेश में माना था कि पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों (ईएसजेड) सभी संरक्षित वन क्षेत्रों के लिए समान नहीं हो सकता और यह विशिष्ट संरक्षित वनों की सीमाओं के आधार पर अलग-अलग होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों (ईएसजेड) के रूप में अधिसूचित क्षेत्र के बावजूद संरक्षित वन क्षेत्र की सीमाओं से एक किलोमीटर के दायरे में खनन गतिविधियों पर प्रतिबन्ध होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने एन बी मिनरल्स कॉर्पोरेशन को दिया पिथौरागढ में डोलोमाइट खनन न करने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने 27 फरवरी 2024 को एन बी मिनरल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड को निर्देश दिया है कि वो डीडीहाट में मैग्नेसाइट या डोलोमाइट का खनन न करे, मामला उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का है।

हालांकि कंपनी को डीडीहाट के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट की देखरेख में अर्थमूविंग और निर्माण उपकरण का उपयोग करके एक रिटेनिंग अथवा सुरक्षा दीवार बनाने की अनुमति दी गई है। अदालत ने यह भी कहा है कि निर्माण से पहले और बाद की तस्वीरें रिकॉर्ड में रखी जानी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि सुरक्षा दीवार के निर्माण के अलावा एन बी मिनरल्स कॉर्पोरेशन द्वारा कोई अन्य निर्माण नहीं किया जाना चाहिए।

2010-2011 से बंद होने के आदेश तक खनन गतिविधियों की वास्तविक स्थिति और प्रभाव को समझने के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय समिति गठित की है। समिति वहां किए जा रहे मरम्मत कार्य की भी समीक्षा करेगी और इस पर अपनी राय देगी कि क्या खनन फिर से शुरू किया जाना चाहिए और उसके लिए क्या शर्तें लागू की जानी चाहिए। कोर्ट ने समिति को छह सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है।

हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं के लिए जिम्मेवार अवैध खनन और वन विनाश जैसे मुद्दों पर एनजीटी में हुई सुनवाई

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 29 फरवरी 2024 को हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं में योगदान देने वाले वन विनाश, गलत तरीके से किए जा रहे योजनाबद्ध निर्माण और अवैध खनन के मुद्दे पर सुनवाई की है। गौरतलब है कि आवेदन 25 नवंबर, 2023 को द हिंदू अखबार में छपी एक खबर के आधार पर दायर किया गया था।

बता दें कि 20 दिसंबर, 2023 को अपने पिछले आदेश में, ट्रिब्यूनल ने महाधिवक्ता की उस दलील पर ध्यान दिया था जिसमें कहा गया था कि अवैध खनन में शामिल इकाइयों की पहचान की गई है और उनका संचालन बंद कर दिया गया है।

ट्रिब्यूनल ने प्रदूषक भुगतान सिद्धांत के आधार पर नियमों को तोड़ने वाली इन इकाइयों पर पर्यावरणीय मुआवजे की वसूली की भी बात कही थी। साथ ही, ट्रिब्यूनल ने वनों के अवैध विनाश और खनन को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता पर जोर भी दिया था।

हिमाचल प्रदेश के टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचपीपीसीबी) ने इस मामले में अपने जवाब दाखिल किए हैं। ऐसे में राज्य की ओर से पेश वकील ने सभी प्रतिक्रियाओं की समीक्षा करने और अदालत के लिए एक व्यापक रिपोर्ट तैयार करने के लिए दो सप्ताह का समय देने का कोर्ट से अनुरोध किया है। एचपीपीसीबी ने उन उल्लंघनकर्ताओं के बारे में जानकारी का खुलासा करने के लिए भी समय मांगा है, जिन पर पर्यावरणीय मुआवजा लगाया गया था।

इन सभी मुद्दों पर विचार करते हुए एनजीटी ने मामले को नौ मई, 2024 तक के लिए स्थगित कर दिया है।