प्रदूषण

एनजीटी ने करणपुरा सुपर थर्मल पावर प्लांट में आग लगने की घटना को बताया गंभीर

मामला झारखंड के चतरा में एनटीपीसी के उत्तरी करणपुरा सुपरथर्मल पावर प्लांट से जुड़ा है

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) का कहना है कि एनटीपीसी के उत्तरी करणपुरा सुपर थर्मल पावर प्लांट में आग लगना एक गंभीर मामला है। इसकी वजह से पर्यावरण सम्बन्धी नियमों के पालन और कानूनों के कार्यान्वयन को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा हो गई हैं। ऐसे में ट्रिब्यूनल ने संबंधित अधिकारियों को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है।

गौरतलब है कि यह मामला ट्रिब्यूनल ने 19 अप्रैल, 2024 को 'बिजनेस स्टैंडर्ड' में प्रकाशित एक खबर पर स्वतः संज्ञान लेते हुए पंजीकृत किया गया है।

यह खबर झारखंड के चतरा में मौजूद एनटीपीसी के उत्तरी करणपुरा सुपरथर्मल पावर प्लांट से जुड़ी है, जिसमें भीषण आग लग गई थी। यह प्लांट 660X3 मेगावाट क्षमता का एक कोयला आधारित बिजली संयंत्र है। खबर के मुताबिक यह आग पावर प्लांट की यूनिट तीन के बीएचईएल मटेरियल यार्ड में लग गई थी। इस घटना में खबर लिखे जाने तक कोई हताहत नहीं हुआ है।

दूसरी तरफ केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जेएसपीसीबी) का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील अदालत को घटना में हताहतों की संख्या के बारे में जानकारी नहीं दे सके। जेएसपीसीबी के वकील भी इस बात की पुष्टि नहीं कर सके कि प्लांट ने पर्यावरण नियमों का पालन किया है या नहीं।

बकिंघम नहर प्रदूषण मामले में एनजीटी ने अधिकारियों से छह सप्ताह में मांगा जवाब

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने बकिंघम नहर प्रदूषण मामले में अधिकारियों से छह सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है। गौरतलब है कि ट्रिब्यूनल ने यह कार्रवाई 19 फरवरी, 2024 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक खबर पर स्वतः संज्ञान लेते हुए की है।

यह खबर प्लास्टिक कचरे और बरसाती नालों में बहने वाले सीवेज के कारण नहर के प्रवाह में आती बाधा से सम्बंधित है। खबर में खुलासा किया है कि नहर की गहराई, जो कभी समुद्र तल से छह फीट नीचे थी, वो गाद और सीवेज के जमाव के कारण अब केवल तीन फीट रह गई है।

खबर के मुताबिक, चेपॉक एमआरटीएस स्टेशन के पास प्लास्टिक, थर्माकोल, रबर और रैपर सहित कचरे के ढेर ने 100 मीटर की दूरी तक नहर को अवरुद्ध कर दिया है। इस कचरे की वजह से बारिश के बाद नहर में उफान आ जाता है। खबर में जनवरी 2024 में जर्नल एक्वा में प्रकाशित एक अध्ययन का भी उल्लेख किया है।

अध्ययन में बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर 1.2 से 2.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तक पाया गया। जो ऑक्सीजन की खपत करने वाले कार्बनिक पदार्थों की उपस्थिति का संकेत देता है।

अदालत ने कहा है कि इस खबर में पर्यावरण नियमों के पालन से संबंधित कई महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं। तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएनपीसीबी) ने अदालत को सूचित किया है कि इस नहर की सफाई 26 अप्रैल, 2024 को की गई थी, इसके बाद 27 अप्रैल, 2024 को निरीक्षण हुआ था। इस दौरान नमूने भी एकत्र किए गए थे, लेकिन विश्लेषण रिपोर्ट अभी लंबित है। ऐसे में तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नहर की वर्तमान स्थिति पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कोर्ट से और समय देने का अनुरोध किया है।

झांसी के लक्ष्मी ताल पर हुए अतिक्रमण और प्रदूषण के मामले में एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 30 अप्रैल 2024 को नगर निगम आयुक्त से एक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। इस रिपोर्ट में उनसे झांसी के लक्ष्मी ताल में किए गए निर्माण की प्रकृति और उसमें छोड़े गए दूषित और साफ सीवेज के सम्बन्ध में जानकारी मांगी थी।

रिपोर्ट में तालाब के मूल एवं वर्तमान क्षेत्रफल की भी जानकारी मांगी है। ट्रिब्यूनल ने यह भी निर्देश दिया है कि तीन जनवरी, 2024 के आदेश में दिए गए दिशानिर्देशों के अनुसार, रिपोर्ट छह सप्ताह के भीतर प्रस्तुत की जानी चाहिए। मामला झांसी में लक्ष्मी ताल को प्रदूषण, अनधिकृत निर्माण और छोड़े जा रहे दूषित सीवेज और गंदे पाने से बचाने से संबंधित है।

गौरतलब है कि अपने पिछले आदेश में एनजीटी ने झांसी नगर निगम आयुक्त को लक्ष्मी ताल और 26 एमएलडी क्षमता वाले एसटीपी से उपचारित अपशिष्ट दोनों के लिए जल गुणवत्ता विश्लेषण रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। हालांकि झांसी नगर निगम ने अब तक यह रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की है। इसके अतिरिक्त, झांसी के जिला मजिस्ट्रेट ने एक समिति का गठन किया था, भले ही उन्हें रिपोर्ट प्रस्तुत करने का कोई निर्देश नहीं था।

अदालत ने तथाकथित समिति की संरचना पर भी सवाल उठाया है। इस समिति में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कोई सदस्य नहीं था। इसके बजाय, समिति में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय से "जल विशेषज्ञ" बताए गए दो सदस्यों को शामिल किया गया था।

उत्तर प्रदेश की ओर से पेश वकील उन समिति सदस्यों की पृष्ठभूमि का खुलासा नहीं कर सके। न ही उन्हें जल विशेषज्ञ कैसे माना गया, इसके बारे में जानकारी नहीं दे सके। अदालत का कहना है कि उन्होंने जिस रिपोर्ट का हवाला दिया है, उस पर तब तक भरोसा नहीं किया जा सकता, जब तक उसकी प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं हो जाती।