नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को आदेश दिया है कि वह जल्द से जल्द अधिसूचना जारी कर उन क्षेत्रों में आरओ पर रोक लगवाए जहां पानी खारा नहीं है। एनजीटी की ओर से यह आदेश 20 मई को दिया गया था हालांकि इसे सार्वजनिक 28 मई को किया गया। एनजीटी ने मंत्रालय को यह भी कहा है कि वे आरओ निर्माता कंपिनयों को यह आदेश जारी करें कि उनकी मशीनें पानी की सफाई के दौरान कम से कम 60 फीसदी पानी का शोधन करें। इसके बाद इन मशीनों को और असरदार बनाकर इनकी क्षमता 75 फीसदी शुद्ध पानी देने के लायक बनाई जानी चाहिए। पीठ ने यह स्पष्ट किया है कि आरओ के जरिए बर्बाद होने वाले पानी का इस्तेमाल बागबानी और गाड़ी या फर्श धुलाई में किया जाना चाहिए। इसके अलावा लोगों को आरओ से साफ किए गए पानी में खनिज की मात्रा कम होेने या समाप्त होने पर पैदा होेने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति भी जागरुक किया जाना चाहिए।
एनजीटी का यह आदेश गैर सरकारी संस्था फ्रैंड्स की ओर से दाखिल याचिका के बाद आया है। संस्था के महासचिव शरद तिवारी ने आरओ की कार्यप्रणाली और पानी की बर्बादी को लेकर आपत्ति वाली याचिका एनजीटी में दाखिल की थी। याचिका में आरओ निर्माण करने वाली कंपनियों पर यह भी आरोप लगाया गया था कि एक भी आरओ भारतीय मानक ब्यूरो से प्रमाणित नहीं है। एनजीटी ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि जारी होने वाली गाइडलाइन में यह प्रावधान किया जाए कि आरओ निर्माता कंपनी मशीनों में कम से कम 150 मिलीग्राम प्रति लीटर टीडीएस की मात्रा को सेट करें साथ ही कैल्सियम और मैग्नीशियम की न्यूनतम मात्रा भी पानी में सुनिश्चित हो। इसके अलावा आरओ निर्माताओं को खनिज और टीडीएस की मात्रा के बारे में मशीनों पर स्पष्ट लेबलिंग भी करनी चाहिए।
शरद तिवारी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि आरओ हमें साफ पानी देने के नाम पर जलसंकट पैदा कर रहे हैं। ऐसे इलाके जहां पहले से ही ही सूखे की स्थिति है और पानी की उपलब्धता बेहद कम है वहां आरओ पानी के बहुत छोटे से हिस्से को साफ कर ज्यादातर पानी वेस्ट के तौर पर बाहर निकाल देता है। इसलिए आरओ के डिजाईन में बदलाव किया जाना चाहिए। एनजीटी ने डाउन टू अर्थ की ही रिपोर्ट के आधार पर अपने आदेश में कहा है कि 16.3 करोड़ लोग भारत में ऐसे हैं जिन्हें साफ पानी नसीब नहीं होता है।
एनजीटी के आदेश का आधार याचिका के अलावा हाल ही में नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी शोध संस्थान (एनईईआरआई), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), आईआईटी दिल्ली की ओर से दाखिल की गई रिपोर्ट है। यह रिपोर्ट एनजीटी के आदेश के बाद तैयार की गई थी। इसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि बीआएस मानकों के मुताबिक ऐसा पानी जिसमें 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक टीडीएस की मात्रा है वहीं आरओ से पानी के शुद्धिकरण की जरूरत होती है। संयुक्त रिपोर्ट में बेहद कड़े शब्दों में इस बात की मलानत है कि आरओ निर्माता गलत सूचना फैलाकर लोगों को आरओ मशीन बेच रहे हैं।
जहां पानी पहले से ही कम खारा है उस पानी को भी साफ करने की रवायत भारत में बहुत ज्यादा बढ़ गई है। यह यहां के लिए बेहद समान्य बात हो चुकी है जबकि विकसित देशों में इसका बेहद कम इस्तेमाल किया जाता है। भारत में आरओ पहले सिर्फ खारेपन को मिटाने के लिए बनाए गए बाद में इन्हें अन्य प्रदूषक तत्वों को खत्म करने वाला बताया जाने लगा। एनजीटी में याचिका दाखिल करने वाले शरद तिवारी कहते हैं कि आरओ प्रणाली तैयार करने वाली कंपनियां लोगों के बीच एक भय का माहौल बनाती हैं और फिर अपनी मशीनें लोगों के बीच बेच देती हैं। सरकार को जल्द से जल्द इस दिशा में अधिसूचना जारी करनी चाहिए। एनजीटी में दाखिल की गई रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लोगों को पानी का बिल देते समय यह बताया जाना चाहिए कि उनके घर पहुंचने वाला पानी साफ और इस्तेमाल लायक है। बिल में टीडीएस के साथ अन्य मात्राएं भी स्पष्ट तौर पर बताई जानी चाहिए।