प्रदूषण

एनजीटी का आदेश : छह महीनों के भीतर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड रिक्त पदों में योग्य लोगों की भर्ती का बनाएं रोडमैप

एनजीटी ने कहा है कि पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन ठीक उसी गंभीरता से लिया जाना चाहिए जिस तरह से आपराधिक मामलों से बचाव के दौरान लिया जाता है।

Vivek Mishra

देशभर के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या समितियों में राजनीतिक और अयोग्य लोगों की नियुक्तियों का मामला सामने आता रहता है लेकिन प्रदूषण से बचाव करने और नियमों को लागू कराने वाले इन बोर्ड में बड़े श्रमबल, फंड व उपकरणों की भी कमी बनी हुई है। 

"यह देखा गया है कि कई राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास पर्याप्त फंड नहीं है, न ही श्रमबल है और न ही उपकरण हैं...दुखद यह है कि जल कानून के 47 वर्षों और वायु प्रदूषण के बावजूद अंधाधुंध तरीके से जारी प्रदूषण जारी है। यहां तक कि इन आपराधिक मामलों के खिलाफ बहुत ही कम सजा के प्रावधान हैं, फिर भी कोई ठोस और गंभीर कदम प्रदूषण के विरुद्ध नहीं उठाया जा सका है।" 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने आर्यावर्त फाउंडेशन बनाम मैसर्स वापी ग्रीन एनवॉयरो लिमिटेड एंड अदर्स मामले में  जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने 5 फरवरी, 2021 को यह टिप्पणी की है। 

पीठ ने टिप्पणी में कहा कि  "पर्यावरण की क्षति सीधे-सीधे लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ी है। पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी के चलते लोगों की मौतें होती हैं और उन्हें चोटें पहुंचती हैं। पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन ठीक उसी गंभीरता से लिया जाना चाहिए जिस तरह से आपराधिक मामलों से बचाव के दौरान लिया जाता है।" 

एनजीटी की प्रधान पीठ ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और समितियों के प्रदर्शन की स्थिति रिपोर्ट में दी गई सिफारिशों पर गौर करने के बाद जारी आदेश में देशभर के राज्यों को कहा है कि वह छह महीनों के भीतर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) को मजबूत बनाने का खाका तैयार करें।  

आदेश में कहा गया है "सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के मुख्य सचिव और पर्यावरण सचिव व पीसीबी के चेयरमैन सीपीसीबी की रिपोर्ट में उठाए गए मुद्दों का अध्ययन करने के साथ ही समाधान करें। पर्यावरण संरक्षण, 1986 कानून के तहत इनमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के खाली स्थानों को दक्ष लोगों के जरिए भरने के साथ ही जरूरी उपकरणों को खरीदने व प्रयोगशालाओं को स्थापित करने व उन्नत बनाने का रोडमैप छह महीने के भीतर तैयार करें।"

सीपीसीबी ने अपनी स्थिति रिपोर्ट में बताया था कि देश के सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में ग्रुप ए (साइंटिफिक, टेक्निक्ल, एडमिन स्टॉफ ) में कुल 1749 सैंक्शन पदों में 1,092 कर्मचारी कार्यरत हैं और 657 पद रिक्त हैं। जबकि ग्रुप बी (साइंटिफिक, टेक्निक्ल, एडमिन स्टॉफ) 2,629 सैंक्शन पदों में 1,591 पद पर कार्यरत हैं और 1,038 पद खाली हैं। वहीं, ग्रुप सी में 5,060 पदों में 2,413 पदों पर कर्मचारी हैं जबकि 2,647 पद खाली हैं। सीपीसीबी की रिपोर्ट के मुताबिक राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या समितियों में 50 फीसदी से ज्यादा कार्यबल की कमी है। 

एनजीटी ने 5 फरवरी, 2021 के आदेश में कहा है कि सीपीसीबी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों को सिफारिशों पर अमल के लिए सहायता भी दे सकती है। खासतौर से यदि कोई राज्य या संघ किसी उचित प्रतिभागी को चयनित नहीं कर पा रही है तो पर्यावरण मंत्रालय और सीपीसीबी की एक समिति जो इसी काम के लिए होगी वह मदद करे। 

आदेश के एक बिंदु में कहा गया है " सीपीसीबी और राज्यों के पीसीबी या समितियां प्रयोगशालाओं की स्थापना या उन्हें उन्नत बनाने के लिए पर्यावरण जुर्माने का इस्तेमाल करें। इसके लिए एनजीटी एक्ट की धारा 33 के तहत किसी भी अन्य मंजूरी की जरूरत नहीं होगी।"