प्रदूषण

प्रिंटिंग प्रेस मशीनों से जुडी इकाई को 25 फीसदी जुर्माने के भुगतान का आदेश

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने प्रिंटिंग प्रेस मशीनों और इसके स्पेयर पार्ट्स से जुडी इकाई को पर्यावरण सम्बन्धी मुआवजे के 25 फीसदी का भुगतान करने का निर्देश दिया है। जोकि मुआवजे की पहली किश्त है। गौरतलब है कि इस पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए इस इकाई पर दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने 20 लाख का जुर्माना लगाया था।

इसके साथ ही इस यूनिट को एक अंडरटेकिंग देने के लिए भी कहा है जिसमें फिर से प्रदूषण न फैलाने और गैर-अनुरूप क्षेत्रों में निषिद्ध गतिविधि फिर से शुरू न करना का वचन देने के लिए कहा है। इस मुआवजे को तीन महीने के भीतर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और डीपीसीसी की एक संयुक्त जांच समिति द्वारा फिर से जांचा जाएगा।

साथ ही यह भी कहा है कि यदि एक महीने के भीतर जुर्माने की राशि और अंडरटेकिंग दाखिल नहीं कराई जाती, तो अगले किसी आदेश की जरुरत नहीं होगी। जबकि यदि मुआवजे के पैमाने को संशोधित किया गया तो पहले का मुआवजा उसी के अनुसार संशोधित किया जाएगा। 

डीपीसीसी ने इस यूनिट पर लगाया था 20 लाख रुपए का जुर्माना

गौरतलब है कि 25 अगस्त, 2020 को एनजीटी द्वारा जारी यह आदेश इस यूनिट द्वारा दायर अपील के सन्दर्भ में था। यूनिट ने यह आवेदन डीपीसीसी द्वारा 17 जुलाई को लगाए 20 लाख रूपए के जुर्माने के मामले में लगाया था। जिसे पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए "पॉल्यूटर पे सिद्धांत" के आधार पर लगाया था।

यह यूनिट प्रिंटिंग प्रेस मशीनों और इसके स्पेयर पार्ट्स से जुडी गतिविधि में लगी हुई थी, जो कि 'ऑरेंज' श्रेणी में आती है। यदि इस तरह की यूनिट औद्योगिक क्षेत्र से बाहर गैर-अनुरूप क्षेत्र में लगाई जाती है तो उस पर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के रूप में 20 लाख रुपए का जुर्माना लगाया जाता है।

इस यूनिट ने आरोप लगाया था कि गैर-अनुरूप क्षेत्र में लगी 'ऑरेंज' श्रेणी की हर इकाई पर एक जैसा जुर्माना सही नहीं है। यह छोटी यूनिट्स के लिए भेदभाव होगा। क्योंकि उनके द्वारा किये जा रहे प्रदूषण को मापे बगैर जुर्माना लगाना सही नहीं है। यूनिट के अनुसार इकाई के आकार, वित्तीय लाभ और प्रदूषण की सीमा के आधार पर मुआवजे के स्लैब होने चाहिए।