प्रदूषण

नया कंप्यूटर महीनों पहले कर देगा वायु प्रदूषण स्तर की भविष्यवाणी

Dayanidhi

अमेरिका और चीनी वैज्ञानिकों ने एक कंप्यूटर मॉडल विकसित किया है, जो उत्तर भारतीय राज्यों में 'स्मॉग के मौसम'  में वायु प्रदूषण के स्तर का सटीक अनुमान लगाने में मदद कर सकता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि यह मॉडल सर्दियों में एयरोसोल प्रदूषण की स्थिति का अनुमान लगा सकता है और इसके अनुसार प्रदूषण नियंत्रण की योजनाओं को लागू करने में सुधार किया जा सकता है।

जर्नल साइंस एडवांसेज के अनुसार इस सांख्यिकीय मॉडल, महासागर से संबंधित कुछ जलवायु पैटर्न का इस्तेमाल किया गया है, जो उत्तर भारत में सर्दियों के वायु प्रदूषण पर विशेष प्रभाव डालते हैं।  भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में से एक है, पिछले साल दिल्ली ही नहीं, बल्कि उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 लेवल 500 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक रहा।

इस साल की शुरुआत में प्रकाशित स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 2017 में वायु प्रदूषण के कारण भारत में 1.2 मिलियन से अधिक लोग मारे गए थे। अमेरिका में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड एप्लाइड साइंसेज के मेंग गाओ ने कहा, हमने एक सांख्यिकीय भविष्यवाणी मॉडल का निर्माण किया है, जो भविष्यवाणी के लिए दो शरद ऋतुओं के तापमान भिन्नता पैटर्न का उपयोग करता है।

उन्होंने आगे बताया कि शरद ऋतु में, हमारे पास समुद्र की सतह के तापमान और भू-ऊंचाई वाले क्षेत्रों के आधार पर इन सूचकांकों की गणना की जाती है, फिर निर्मित मॉडल आपको बताता है कि सर्दियों का वायु प्रदूषण खतरनाक है या नहीं। चीन में हांगकांग बैपटिस्ट विश्वविद्यालय से जुड़े गाओ ने कहा, आज तक भारत के लिए ऐसा कोई अध्ययन नहीं हुआ है जो आपको पहले ही यह बताता हो कि भारत का मौसम किस प्रकार का होगा। यह अध्ययन आपको भारतीय वायु प्रदूषण के लिए प्रमुख जलवायु कारकों को बताता है।

पिछले अध्ययन में गाओ ने इस बात पर जोर दिया था कि आवासीय उत्सर्जन और बिजली संयंत्र भारत की वायु प्रदूषण समस्या को कैसे बढ़ा रहे हैं। इसलिए, इस मुद्दे से निपटने के लिए, भारत को पहले इन दो क्षेत्रों ध्यान देना चाहिए। गाओ ने सुझाव दिया कि देश में सौर और पवन जैसी अक्षय ऊर्जा कोयले के उपयोग से बनने वाली बिजली की जगह ले सकते है।

गाओ ने  भारत सरकार को सलाह दी है कि वह चीनी सरकार से नीति कार्यान्वयन के तरीके सीख सकती है। हालांकि दोनों देशों की स्थितियाँ समान नहीं हैं, इसलिए भारत को एक विशिष्ट नीति के साथ, उच्च-गुणवत्ता वाले शोध की आवश्यकता है।