प्रदूषण

औद्योगिक इस्तेमाल के लिए सस्ता हो नैचुरल गैस तो संभव है दूसरी स्वच्छ ईंधन क्रांति : सीएसई

पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लिखे पत्र में कहा है कि बजट 2021 में स्वच्छ ईंधन को प्रोत्साहित करके वायु प्रदूषण की लड़ाई को प्रभावी बनाया जा सकता है।

Vivek Mishra

वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए उद्योगों के जरिए स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल बेहद कारगर रणनीति साबित हो सकती है। हालांकि, दिल्ली-एनसीआर में औद्योगिक ईकाइयों के जरिए बड़े पैमाने पर प्रदूषण के लिए प्रबल तरीके से जिम्मेदार कोयला ईंधन का इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसे में बजट-2021 में स्वच्छ ईंधन को यदि बढ़ावा दिया जाता है तो वायु प्रदूषण की लड़ाई न सिर्फ दिल्ली-एनसीआर के लिए बल्कि समूचे देश के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। 

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट (सीएसई) ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से बजट 2021 में स्वच्छ ईंधन को औद्योगिक इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहन देने के प्रावधान की अपील की है। सीएसई ने अपनी अपील में कहा है कि कोयला के मुकाबले उद्योगों को बिजली और प्राकृतिक गैस को इंसेटिव देकर प्रतिस्पर्धी बनाया जाना चाहिए। इस कदम से न सिर्फ दिल्ली और एनसीआर में बल्कि देशभर में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।

सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने पत्र में कहा है कि प्राकृतिक गैस पर अभी कर का बोझ काफी अधिक है। मसलन राज्यों में प्राकृतिक गैस की बिक्री और खरीद दोनों बिंदु पर टैक्स लगाया जा रहा है। इसके चलते अंतिम कीमत में 18 फीसदी या उससे अधिक की बढोत्तरी हो रही है। जैसे कोयला (पांच फीसदी) जीएसटी में शामिल है वैसे नैचुरल गैस जीएसटी में शामिल नहीं है। बीते वर्ष कुल पेट्रोलियम उत्पादों में नैचुरल गैस के जरिए टैक्स की हिस्सेदारी का राजस्व गुजरात में करीब-करीब 20 फीसदी और महाराष्ट्र में 7 फीसदी रहा है। ऐसे में प्रमुख औद्योगिक राज्यों में इसे बदलने में कोई  बाधा नहीं होना चाहिए, हमारी समझ है कि पांच फीसदी के जीएसटी ( बजाए कि 18 फीसदी के राज्य वैट और अन्य टैक्स) से उद्योगों को नैचुरल गैस 17 फीसदी कम दाम में मिलेगी। उन्होंने कहा कि गैस में उच्च कैलोरी मान होती है और उसकी प्रबंधन लागत कम होती है। कर के बोझ रहित सस्ती प्राकृतिक गैस यह उद्योगों को आकर्षित करेगा और उन्हें ईंधन में कोयले के बजाए नैचुरल गैस के अधिक प्रयोग को प्रोत्साहित करेगा।  

सुनीता नारायाण ने कहा कि दूसरी स्वच्छ ईंधन क्रांति संभव है यदि स्वच्छ ईंधनों के कर और कीमतों में सुधार किया जाए। इससे पहले परिवहन क्षेत्र के लिए डीजल को छोड़ा गया था इस बार कोयले को छोड़ने की बारी है। कोयले की कीमत नैचुरल गैस से काफी कम है। नैचुरल गैस पर हाई टैक्स का बोझ है ऐसे में वह कोयले को रिप्लेस नहीं कर सकता।

वहीं, सीएसई के शोधार्थियों ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों के जरिए दिल्ली-एनसीआर में पूर्व के वर्षों में बेहद सक्रिय तरीके से कदम उठाए गए हैं लेकिन स्वच्छ हवा के लिए बेंचमार्क तक पहुंचने के लिए अभी बहुत से कदम उठाए जाने बाकी हैं।

22 जनवरी, 2020 को सीएसई की ओर से वेबिनार का आयोजन किया गया था। वेबिनार में सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रायचौधरी ने कहा कि यदि समूचे क्षेत्रों में स्वच्छ ईंधन को सस्ती दरों पर उपलब्ध नहीं कराय जाएगा तो स्वच्छ हवा के मानकों तक पहुंचना आसान नहीं होगा। उन्होंने कहा कि वर्ष 2000 के शुरुआती समय दिल्ली की वायु प्रदूषण पर केंद्रित उपायों के चलते डीजल से कंप्रेस्ड नैचुरल गैस (सीएनजी) को परिवहन क्षेत्र में लाया गया था। वहीं, औद्योगिक क्षेत्र और पावर प्लांट में फर्नेस ऑयल और पेटकोक को नैचुरल गैस में बदला गया। दिल्ली के प्रदूषण को कम करने के लिए यह सारे कदम प्राथमिक जिम्मेदार थे।

यह एक अहम सीख के तौर पर है क्योंकि राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम के तहत देश के 122 वायु प्रदूषित शहर स्वच्छ हवा कार्य योजना के जरिए 2024 तक 20 से 30 फीसदी तक पार्टिकुलेट प्रदूषण कम करने का प्रयास हो रहा है। ऐसे में ईंधन की रणनीति एक वैश्विक प्रवृत्ति है। दुनिया के कुछ बहुत ही प्रदूषित हिस्सों में जैसे बीजिंग आदि में कोयला को हटाकर स्वच्छ ईंधन को तरजीह दी गई है ताकि स्वच्छ हवा के मानकों को हासिल किया जा सके।

सीएसई के वेबिनार में ताजा अध्ययन एनालाइजिंग इंडस्ट्रियल फ्यूल पॉलिसी इन दिल्ली एंड एनसीआर स्टेट्स जारी कर कहा गया कि भारत में भी सस्ते दर वाले कोयला के बदले नैचुरल गैस यानी स्वच्छ ईंधन को बढावा देने के लिए प्रयास  किए जाने की जररूत है। यह ताजा अध्ययन दिल्ली-एनसीआर के इंडस्ट्री क्लस्टर के ग्राउंड सर्वे पर आधारित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इंडस्ट्री में बड़े पैमाने पर कोयले का इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां तक कि दिल्ली में यह अधिसूचित किया जा चुका है कि प्रदूषण फैलाने वाले ईंधनों का इस्तेमाल सभी क्षेत्रों के लिए प्रतिबंधित है। ग्राउंड पर पाया गया कि बमुश्किल ही छोटे और मध्यम स्तरीय यूनिटों में इस अधिसूचना का पालन किया जा रहा है।

 अध्ययन के प्रमुख बिंदु

  • स्वच्छ ईंधन ही छोटे और मध्यम औद्योगिक ईकाइयों के लिए समाधान हैं। दिल्ली-एनसीआर में बड़े भू-भाग पर इनका प्रभुत्व है और इनकी निगरानी काफी कठिन है। यह वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए मानकों का पालन करने में भी सक्षम नहीं है औऱ बड़े स्तर पर कोयले के ईंधन पर आधारित हैं। सस्ता स्वच्छ ईंधन इनके लिए और स्वच्छ हवा के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है।
  • अत्यधिक कीमत के कारण बहुत ही धीमी गति से नैचुरल गैस और बिजली को अपनाया जा रहा है। ऐसे में गैस पहुंचाने के लिए बिछाई गई पाइपलाइन जैसी संरचना के निवेश भी अनुपयोगी साबित हो रही है।
  • अलवर, भिवाड़ी, सोनीपत, फरीदाबाद, पानीपत, गुरुग्राम और गाजियाबाद के औद्योगिक क्लस्टर में कोयले का बड़े स्तर पर इस्तेमाल हो रहा है। कोयले का 14.1 लाख टन सालाना खपत है जबकि नैचुरल गैस महज 0.22 फीसदी। इस स्थिति को पलटना होगा।
  • दिल्ली में विस्तृत स्वच्छ ईंधन योजना मौजूद है लेकिन इसे लागू करना एक बड़ी चुनौती है। बड़े पैमाने पर अवैध औद्योगिक ईकाइयां प्रदिषत ईंधनों का इस्तेमाल कर रही हैं।
  • इलेक्ट्रिसिटी का इस्तेमाल भी बेहद खराब स्थिति में है। क्योंकि योजनाबद्ध तरीके से क्लस्टर में पर्याप्त सप्लाई नहीं है। महंगी भी है।

नीले आसमान और साफ फेफड़ो के लिए कोयले को जलाए जाने से रोकना चाहिए। कोयला जलाए जाने के कारण खतरनाक पार्टिकुलेट मैटर, सल्फर डाई ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे खतरनाक प्रदूषित कण निकलते हैं। स्वच्छ कंबस्टन को इंसेटिव दिए जाने की जररूत है। साथ ही स्वच्छ तरीके से ऊर्जा पैदा किए जाने को भी प्राथमिकता में रखना होगा। बजट 2021 में इन चुनौतियों को शामिल किए जाने की आवश्यकता है।

सीएसई के इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन यूनिट के कार्यकम निदेशक निवित कुमार यादव ने कहा कि इंडस्ट्री यह मानती है कि नैचुरल गैस कंबस्टन के लिए ज्यादा प्रभावी, स्वच्छ, कम प्रबंधन लागत वाला और अन्य लागतों जैसे प्रदूषण नियंत्रण आदि के लिए ज्यादा बेहतर और आसान है। हालांकि मौजूदा ईंधन कीमतों के हिसाब से इसे अपनाना बेहद कठिन है। हमने दिल्ली में औद्योगिक क्षेत्रों में कोयले और गैस के इस्तेमाल की तुलना की है। मौजूदा समय में गैस ईंधन का इस्तेमाल उद्योगों को कोयला के मुकाबले एक से तीन गुना ज्यादा लागत में डालता है। ज्यादा कीमत वाले ईंधन की वजह से उद्योग राज्यों और देश में प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाते हैं।

वहीं, सुनीता नारायण ने कहा कि नैचुरल गैस को जीएसटी के पांच फीसदी वाले स्लैब में लाने की जरूरत है। साथ ही उद्योगों को बिजली आपूर्ति की लागत कम करने की जरूरत है।