प्रदूषण

प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए एकजुट हुए 180 देश, भारत के प्रयासों की सराहना

Dayanidhi

हाल ही में 180 से अधिक देश इस बात पर चर्चा करने के लिए जिनेवा में एकत्रित हुए कि प्लास्टिक कचरे पर कैसे नियंत्रिण किया जाए और इसका बेहतर प्रबंधन कैसे हो। साथ ही, इलेक्ट्रॉनिक कचरे और खतरनाक रसायनों पर भी इस सम्मेलन में विचार किया गया।

सम्मेलन में सर्वसम्मति से फास्ट-फूड रैपर, कालीनों और अन्य औद्योगिक उत्पादों में नॉनस्टिक कोटिंग्स और कपड़ों में दाग से बचाने वाले रसायन बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एक जहरीले रसायन पेरफ्लुओरोक्टानोइक एसिड (पीएफओए) के उपयोग पर वैश्विक प्रतिबंध को मंजूरी दी गई। साथ ही, सरकारों को पीएफओए के "उत्पादन और उपयोग को समाप्त करने" उपाय करने के लिए भी कहा गया। पीएफओए रसायन से गुर्दे के कैंसर, वृषण कैंसर, थायरॉयड रोग, अल्सरेटिव कोलाइटिस और उच्च रक्तचाप सहित कई बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। 

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्व में प्लास्टिक उत्पादन में प्रति वर्ष 320 मिलियन टन की वृद्धि हुई है जिसमें से केवल 9 प्रतिशत रिसाइक्लिंग और 12 प्रतिशत जला या फेंक दिया जाता है। अनुमानित 100 मिलियन टन प्लास्टिक समुद्र और महासागरों में चला जाता है और 80-90 प्रतिशत प्लास्टिक भूमि आधारित स्रोतों से आता है।

2018 की शुरुआत में आयात पर प्रतिबंध लगाने से पहले चीन प्लास्टिक कचरे का दुनिया का सबसे बड़ा आयातक था। इसने एक साल में सात मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक के व्यापार को बंद कर दिया, जिसकी कीमत लगभग 3.7 बिलियन डॉलर थी।

सम्मेलन में कहा गया कि समुद्र में 90 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा, सिर्फ नदियों के माध्यम से आता है, नदियों में प्लास्टिक न फेंका जाए, इसको सुनिश्चित करना होगा। प्लास्टिक पर प्रतिबंध को लेकर सभी को साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है, चाहे वह नगर निगम हो अथवा जिला प्रशासन हो, इसमें पुलिस को भी मिलकर काम करने की जरूरत है। इसे किसी एक के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लाख नियम बना लें, जब तक इन्हें सही ढ़ंग से लागू नहीं करेंगे, स्वयं जागरूक  होने के साथ-साथ लोगों  को जागरूक नहीं करेंगे, प्लास्टिक एकत्रित करने और इसकी रिसाइक्लिंग का उचित प्रबंध नहीं करेंगे, तब तक प्लास्टिक से निजात पाना कठिन होगा।

भारत के प्रयासों की प्रशंसा

संयुक्त राष्ट्र के अध्यक्ष मारिया फर्नांडा एस्पिनोसा गार्स ने प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए भारत के प्रयासों की प्रशंसा की और बताया कि 2022 तक भारत में सभी एकल-उपयोग प्लास्टिक को समाप्त करने के संकल्प के लिए हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी को संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च पर्यावरण संबंधी पुरस्कार यूएनईपी चैम्पियंस ऑफ द अर्थ से सम्मानित किया गया। 

हालांकि सवाल यह है कि क्या वास्तव में भारत 2022 तक इस लक्ष्य को प्राप्त कर पाएगा..? जबकि विश्व आर्थिक मंच के अनुसार हमारे महासागरों को प्रदूषित करने वाले 90 प्रतिशत प्लास्टिक कचरा सिर्फ 10 नदियों के माध्यम से समुद्र में जाकर मिलता है, जिनमें गंगा नदी प्रमुख है। इसके अलावा भारत में प्लास्टिक एकत्रित करने और इसकी रिसाइक्लिंग का भी उचित प्रबंध नहीं है। यह सही है कि भारत में कचरा बीनने वालों का काफी बड़ा असंगठित नेटवर्क है जो रिसाइक्लिंग में प्रभावी भूमिका निभाते हैं। इसके परिणामस्वरूप देश में बेचा जाने वाला 40 प्रतिशत से अधिक प्लास्टिक न तो रिसाइकिल होता है और न ही एकत्रित होता है।