भगवान दास हरिजन भोपाल के 40 पिपलानी क्वार्टर बस्ती में रहते हैं। वह राजमिस्त्री हैं। सुबह दस किलोमीटर साइकिल चलाकर मनीषा मार्केट स्थित आफिस पर जाना होता है। वहां से ऑफिस के बताए अनुसार अन्य मजदूरों के साथ साईट पर जाते हैं। आने-जाने में दो घंटे लग जाते हैं, कभी अन्धेरा भी हो जाता है। पर दस हजार की तन्ख्वाह में इतनी गुंजाइश नहीं कि मोटरसायकिल खरीदें, पेट्रोल का खर्च उठा पाएं। सरकारी राशन भी नहीं मिलता है। वह कहते हैं ‘दूसरे साधन से जाना मुश्किल है, तीन बसें या मैजिक बदलने होंगे, इतने समय में तो सायकिल से ही पहुँच जायेंगे।‘ भगवान दास दिल्ली, लखनउ, जम्मू, चंडीगढ़ जैसे कई शहरों में काम करने के बाद 2016 से भोपाल में आ बसे। भोपाल की खुली हवा और कम ट्रैफिक उन्हें और शहरों से अच्छा लगता है, पर वह कहते हैं ‘पिछले कुछ सालों से इस शहर में भी दूसरे शहरों जैसा हाल होता जा रहा है।‘
महेन्द्र यादव मैकेनिक हैं। वह आनंद नगर में रहते हैं। आठ किलोमीटर दूर साकेत नगर में गैराज पर काम करने के लिए बाइक से आते—जाते हैं। हालांकि उन्हें आने जाने में कुल 45 से 50 मिनट का समय रोज लगता है, पर दो हजार रुपए का पेट्रोल जल जाता है। यह उनका बड़ा खर्चा है। वह कहते हैं ‘बाइक से समय बच जाता है, यदि वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करेंगे तो उसकी कोई सीधे पहुंच नहीं है, वह चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकते हैं।‘
भोपाल, इंदौर के बाद मप्र का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। 1951 में महज एक लाख आबादी थी, जो 2011 जनगणना में बढ़कर 18,86,100 हो गयी। मास्टर प्लान 2031 (ड्राफ्ट) के मुताबिक इसकी आबादी 2.56 वार्षिक की दर से बढ़ते हुए अब 23 लाख तक जा पहुंची है। भोपाल में जनसंख्या का घनत्व 62 पीपीएच है।
अनियोजित परिवहन
बीस साल पहले भोपाल में आवाजाही का सबसे बड़ा साधन ‘भट’ और ‘मिनी बसेस’ थी। भट एक बड़ा आटो था, जिसके दोनों ओर पटियों पर लोग बैठते थे। (इस भट को आपने पीपली लाइव फिल्म में भी देखा है।) दूसरा बड़ा जरिया मिनी बसें हुआ करती थीं। यह नंबरों से चला करती थीं, मसलन एक नंबर दो नंबर से लेकर 19 नंबर तक की बसें हुआ करती थीं। इनकी झूमाझटकी, सवारियों के लिए मारामारी, भोपाली कल्चर के मुताबिक गालियों की भरमार और जेबकतरी के लिए यह प्रसिद्ध हुआ करती थीं।
बीस साल पहले केन्द्र सरकार की जेएनएनयूआरएम योजना के अंतर्गत नयी बसों का संचालन शुरू हुआ। संचालन किसी सरकारी एजेंसी के मार्फत होना था। योजना में भोपाल के 15 रूट्स पर 287 बसों का संचालन किया गया। कुछ समय यह व्यवस्था चली, लेकिन इन बसों में कई तरह की दिक्कतें सामने आईं। बड़ी बसें भोपाल की संकरी सड़कों के मुताबिक नहीं थीं। बसों का संचालन तो होता रहा, पर मेंटेनेंस पर ध्यान नहीं दिया गया। धीरे—धीरे यह बसें रोड से उतरती गयीं। अमृत योजना (2020) में 300 और बसें खरीदी गयीं, और रूट भी 22 कर दिए गए, यह बसें आकार में छोटी थीं ।
दोपहिया पर सवार भोपाल
भोपाल एक बढ़ता हुआ शहर है। यह पहले पुराने और नए शहरों में बंटा हुआ था। पिछले दो दशकों में इसका विस्तार, कोलार, होशंगाबाद रोड, बैरागढ़, अवधपुरी जैसे उपनगरों में हुआ है। यहां जनसंख्या का घनत्व कम है, शहर भौगोलिक रूप से ज्यादा फैला है। यही वजह है कि पिछले दस सालों में भोपाल में वाहनों की संख्या में जबर्दस्त् बढ़ोत्तरी हुई है। आंकड़ों के मुताबिक यहां 2002 से हर साल औसतन दस प्रतिशत वाहनों की संख्या बढ़ रही है। 2002 में यहां तकरीबन 3 लाख वाहन थे, जो 2011 में 7.9 लाख हो गए। मप्र विधानसभा में फरवरी 25 को परिवहन विभाग की ओर से दिए गए आंकड़े के मुताबिक भोपाल में कुल 1507613 वाहन हैं, इनमें से 1080556 लाख दोपहिया वाहन, और 290272 चार पहिया वाहन हो चुके हैं।
भोपाल और इंदौर में वाहनों की संख्या
भोपाल और इंदौर में कुल वाहनों की संख्या क्रमशः 15,07,613 और 21,61,300 है। इनमें सबसे ज्यादा संख्या दोपहिया वाहनों की है। भोपाल में दोपहिया वाहन 10,80,556 हैं, जबकि इंदौर में इनकी संख्या 16,33,031 तक पहुंच गई है। चारपहिया वाहनों की बात करें तो भोपाल में 2,90,272 और इंदौर में 3,38,353 वाहन पंजीकृत हैं। ये आंकड़े इन दोनों प्रमुख शहरों में लगातार बढ़ते निजी वाहनों के बोझ और ट्रैफिक दबाव की ओर इशारा करते हैं।
सस्टेनेबल अनबन ट्रांसपोर्ट इंडेक्स के मुताबिक भोपाल में सबसे अधिक (25 प्रतिशत) आवाजाही दो पहिया वाहनों से होती है, पैदल चलने वालों और साइकिल से चलने वाले 43 प्रतिशत लोग हैं, 4 प्रतिशत लोग सायकिल का उपयोग करते हैं. दो प्रतिशत लोग ऑटो और 3 प्रतिशत लोग कार का इस्तेमाल करते हैं।
मोबिलिटी एक्सपर्ट प्रोफेसर राहुल तिवारी कहते हैं ‘भोपाल का मौजूदा विकास खासकर परिवहन के नजरिए से बिलकुल भी नियोजित दिखाई नहीं देता है। इसमें समग्रता की बहुत कमी है। पिछले पांच—दस सालों में यह और बेहाल हुआ है, उसकी सबसे बड़ी वजह, सार्वजनिक यातायात की जगह सबकुछ प्राइवेट व्हीकल को ध्यान में रखकर किया जा रहा है, जो किसी भी शहर की फिजा के लिए एक अच्छा मॉडल नहीं है। किसी भी शहर के विकास और पर्यावरण के लिए यह मॉडल अच्छा नहीं होता कि वह शहर फैलता जाए, फैलते शहर में तमाम व्यवस्थाएं करने में बहुत सारे संसाधन खर्च करने पड़ते हैं।‘
कोरिडोर तोड़ने वाला देश का पहला शहर:
भोपाल में 2013 में 24 किलोमीटर लंबा बीआरटीएस कोरिडोर बनाया गया था। 2025 में भोपाल देश का पहला ऐसा शहर बन गया जहां बीआरटीएस तोड़ दिया गया। डॉ राहुल तिवारी के मुताबिक बीआरटीएस का सही मॉडल होता है उसका बीस प्रतिशत हिस्सा भी नहीं हो पाया। सड़क को डिवाइड करके केवल रैलिंग लगा देने से बीआरटीएस नहीं हो जाता। इसमें बस स्टॉप बनाने से लेकर कई तरह की खामियां थीं, इसलिए लोग इसका ठीक तरह से उपयोग भी नहीं कर पाए। बीआरटीएस की जगह अब कोई नया परिवहन मॉडल न लाकर फ्लाई ओवर बन रहे हैं जो भविष्य के भोपाल के लिए बेहतर नहीं है।
प्रोफेसर तिवारी कहते हैं ‘भोपाल में पिछले कुछ सालों में शहर के अंदर बहुत सारी चौड़ी सड़कें बनाना है। यह दुनिया के किसी भी देश में नहीं होता। चौड़ी सड़कों के साथ उसके आसपास की आबादी के लिए भी व्यवस्थाएं देखी जाती हैं। इसमें पेडेस्ट्रयिन और साइकिलिस्ट के लिए स्पेस नहीं है। पेड़—पौधे नहीं हैं, बच्चों के लिए ओर आम जनजीवन के लिए जगह नहीं होती। शहर की स्पीड बढ़ जाती है, कल्चर खो जाता है।‘
सड़क दुर्घटनाएं थमी नहीं
केवल कल्चर ही नहीं इससे सड़क दुर्घटनाएं भी बड़ी हैं। आंकड़े बताते हैं कि भारी भरकम निवेश के बाद भी दुर्घटनाओं में कोई ख़ास कमी नहीं आई है। 2024 में शहर में हर रोज औसतन 8 सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं, हर दूसरी दुर्घटना में एक मौत हुई है।
भोपाल शहर में सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े पिछले कुछ वर्षों में लगातार उतार-चढ़ाव के साथ सामने आए हैं। वर्ष 2018 में कुल 3,508 दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 327 लोगों की मौत हुई और 3,001 लोग घायल हुए। 2019 में दुर्घटनाओं की संख्या घटकर 3,287 रह गई, लेकिन फिर भी 259 लोगों की जान गई और 2,630 लोग घायल हुए। 2020 में कोविड महामारी के चलते आवागमन कम हुआ, जिससे दुर्घटनाएं घटकर 2,295 हो गईं, जिनमें 237 मौतें और 1,807 घायल शामिल थे। 2021 में यह आंकड़ा फिर बढ़ा और 2,616 दुर्घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 253 लोगों की मौत हुई और 2,190 घायल हुए। 2022 में दुर्घटनाओं की संख्या बढ़कर 3,313 हो गई, जिसमें 348 लोगों की जान गई और 2,645 घायल हुए। 2023 में दुर्घटनाओं की संख्या कुछ घटी और 2,906 मामले सामने आए, जिसमें 198 लोगों की मौत और 2,196 लोग घायल हुए। 2024 में अब तक 2,900 दुर्घटनाएं दर्ज हुई हैं, जिनमें 235 लोगों की मौत हुई और 2,223 लोग घायल हुए हैं। ये आंकड़े शहर में सड़क सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताओं को उजागर करते हैं।
क्या सफल हो पायेगी मेट्रो ?
भोपाल का ट्रैफिक स्मूथ करने के लिए भोपाल की जनता मेट्रो की ओर देख रही है। इस मेट्रो की रफ्तार कछुआ गति से चल रही है। प्रोफेसर राहुल तिवारी कहते हैं ‘मेट्रो शहर के एक छोटे से हिस्से को ही कवर कर रही है, दूसरा मेट्रो को सड़क यातायात का एक विकल्प देखा जा रहा है, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। बिना बसों, या छोटे वाहनों के यह पूरा नहीं होता है, इसलिए मेट्रो और उसकी मोबिलिटी पर भी समग्रता से काम करना होगा।‘
पर्यावरण पर असर
भोपाल में 2018 से वायु गुणवत्ता की आनलाइन मॉनीटरिंग की जा रही है। एन्वायमेंट सर्विलांस सेंटर की वेबसाइट के मुताबिक पिछले पांच सालों में भोपाल शहर के तीनों सेंटर के आंकड़े एक्यूआई बेहतर होने का दावा करते हैं। टीटी नगर केन्द्र का वार्षिक एक्यूआई ट्रेंड आंकड़ा 2019 में 187.69 था जो 2023 में 117 पर आ गया, भोपाल पर्यावरण परिसर 2019 में 195 पर था जो घटकर 121 पर आ गया, वहीं भोपाल कलेक्ट्रेट का डेटा 113 पर है। फिर भी यह एनुअल स्टैंडर्ड से दोगुने से भी ज्यादा है। तीन दिशाओं के संकेतक पर्यावरण बेहतर होने का ट्रेंड बताते हैं, पर घटती हुई हरियाली और बढ़ते हुए वाहनों के बीच यह आंकड़ा पर्यावरणविदों को चौंकाता भी है।
गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल में रेसिपिरेटरी मेडिसिन के प्रोफेसर लोकेन्द्र कहते हैं कि ‘भोपाल में दो-पहिया, चार पहिया वाहनों के बढ़ने का असर साफ दिख रहा है, विभाग के आंकड़े बताते हैं कि पिछले दस सालों में हर साल औसतन 5 प्रतिशत की दर से पेशेंट बढ़ रहे हैं। भोपाल के पर्यावरण में पीएम 10 और पीएम 2.5 लगातार तय मानक से ज्यादा है, इससे लंग्स, आंखों और नाक-कान पर तो असर हो ही रहा है, नर्वस सिस्टम पर भी इसका बुरा असर हो रहा हैं।‘