प्रदूषण

दुनिया भर में खेती और खाद्य उत्पादन के लिए खतरा बन रहा है माइक्रोप्लास्टिक: शोध

माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति मिट्टी की विशेषताओं जैसे कि इसकी संरचना, जल धारण क्षमता और माइक्रोबियल समुदायों को बदल देती है और यह फसल को कम करने वाले प्रभावों के लिए जिम्मेदार हैं।

Dayanidhi

स्टैफोर्डशायर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने खेती की जाने वाली मिट्टी में प्लास्टिक प्रदूषण की मात्रा और दुनिया भर में इसके प्रभाव को समझने के लिए शोध किया है।

फोरेंसिक और पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर क्लेयर ग्विनेट ने बताया कि हम महासागरों और ताजे या मीठे पानी में माइक्रोप्लास्टिक के बारे में बहुत कुछ जानते हैं। हम हवा में माइक्रोप्लास्टिक के बारे में और जानना शुरू कर रहे हैं, लेकिन हम अभी भी स्थलीय वातावरण में माइक्रोप्लास्टिक के बारे में बहुत कम जानते हैं।

जलवायु परिवर्तन के साथ, खाद्य उत्पादन पर बढ़ती आबादी का दबाव और खाद्य सुरक्षा के लिए खतरे से स्पष्ट हो गया है कि यह अविश्वसनीय रूप से महत्वपूर्ण है कि हम इस पर ध्यान दें।

हाल के वर्षों में, कृषि में प्लास्टिक का उपयोग काफी बढ़ गया है। हालांकि, मिट्टी में माइक्रोप्लास्टिक को पूरी तरह से खराब होने में 300 साल तक का समय लगने का अनुमान है। यह माना जाता है कि उनकी उपस्थिति मिट्टी की विशेषताओं जैसे कि इसकी संरचना, जल धारण क्षमता और माइक्रोबियल समुदायों को बदल देती है और यह कि माइक्रोप्लास्टिक, फसल को कम करने वाले प्रभावों के लिए जिम्मेदार हैं।

स्टैफोर्डशायर फोरेंसिक फाइबर्स और माइक्रोप्लास्टिक रिसर्च ग्रुप ग्रामीण क्षेत्रों में प्लास्टिक प्रदूषण के दबावों की एक अंतरराष्ट्रीय समीक्षा सहित विभिन्न अध्ययन कर रहा है, जो पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरों को कम करने में मदद करने के लिए स्थलीय माइक्रोप्लास्टिक के व्यापक विश्लेषण की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

प्रोफेसर ग्विनेट ने कहा कि हम जानते हैं कि खेती की मिट्टी में माइक्रोप्लास्टिक प्रचुर मात्रा में, विविध और भूमि उपयोग और कृषि गतिविधियों से प्रभावित होते हैं। इस तरह के बहुत कम अध्ययन हैं जो बताते हैं कि यह मिट्टी में रहने वाले जीवों जैसे कीड़े और स्प्रिंगटेल्स को प्रभावित कर सकता है।

उन्होंने कहा पौधों पर माइक्रोप्लास्टिक के प्रभाव पर अध्ययन और भी दुर्लभ हैं लेकिन हम यह भी जानते हैं कि यह इन वातावरणों में उगाई जाने वाली फसलों के साथ-साथ वहां रहने वाले पशुओं को भी प्रभावित करता है। अब हमें यह जानने की जरूरत है कि वहां कितना प्लास्टिक है और यह बेहतर ढंग से समझने के लिए कि इसका क्या प्रभाव हो रहा है।

स्टैफोर्डशायर फोरेंसिक फाइबर और माइक्रोप्लास्टिक रिसर्च ग्रुप के शोधकर्ता एली हैरिसन ने कहा कि स्टैफोर्डशायर विश्वविद्यालय में मिट्टी में माइक्रोप्लास्टिक के प्रभावों पर शोध किया गया। शोध से पता चला है कि यह प्रदूषक अंकुरण दर में कमी और बीज उत्पादन में बदलाव के लिए जिम्मेवार हैं, जिससे फसल की उपज पर बुरा असर पड़ सकता है।

प्रोफेसर ग्विनेट ने कहा "ग्रीनहाउस फिल्में और सिंचाई पाइपिंग आमतौर पर खेती में उपयोग किए जाने वाले उत्पाद हैं और यूके और पूरे यूरोप में हमारे पास समान प्लास्टिक का उपयोग होता है। खेतों से हटाए जाने के बजाय, इन प्लास्टिक उत्पादों को अक्सर उन क्षेत्रों में छोड़ दिया जाता है जहां वे टूट कर तथा सूर्य से क्षरण जो इन प्लास्टिकों को माइक्रोप्लास्टिक में तोड़ देता है।

प्रोफेसर ग्विनेट ने बताया हमारे नतीजे बताते हैं कि वर्षों से उपयोग हो रहे इन प्लास्टिक से, माइक्रोप्लास्टिक्स मिट्टी में जमा हो रहे हैं और इन्हें हटाया नहीं जा सकता है।

तुर्की के अदाना और कराता इलाकों के 10 अलग-अलग हिस्सों से मिट्टी के नमूने लिए गए। मिट्टी में पहचाने गए सूक्ष्म, मेसो, मैक्रो और मेगाप्लास्टिक की संख्या, जहां ग्रीनहाउस फिल्म और सिंचाई पाइपिंग का उपयोग किया गया था, क्रमशः लगभग 47, 78, 17 और 1.2 गुना अधिक था, जो कि प्लास्टिक का उपयोग नहीं करने वाले खेत की तुलना में था।

प्रोफेसर ग्विनेट ने कहा कृषि क्षेत्र में प्लास्टिक के उपयोग से कुछ समय के लिए फायदा हो सकता है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। हम आशा करते हैं कि निर्णयकर्ता प्लास्टिक के उपयोग में वास्तविक बदलाव करेंगे जिससे मिट्टी के स्वास्थ्य और खेती के भविष्य की रक्षा हो सके।

प्रोफेसर ग्विनेट ने कहा कि निष्कर्षों से पता चला कि उस मिट्टी में अवशिष्ट प्लास्टिक कम हो गया जहां उपयोग के बाद प्लास्टिक को हटा दिया गया था। परिणामों का उद्देश्य प्लास्टिक के बेहतर प्रबंधन में किसानों का मार्गदर्शन करना है।