हाल ही में फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी द्वारा किए एक शोध से पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक शरीर की कोशिकीय कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकती है शोधकर्ताओं के अनुसार एक बार जब माइक्रोप्लास्टिक सांस या किसी अन्य तरीके से शरीर में पहुंच जाती है, तो वो कुछ दिनों में ही फेफड़ों की कोशिकाओं के मेटाबॉलिज्म और विकास पर असर डाल सकती हैं और उसे धीमा कर सकती हैं। साथ ही उसके आकार में भी बदलाव कर सकती हैं।
मानव स्वास्थ के प्रति माइक्रोप्लास्टिक के बढ़ते खतरे को उजागर करने वाला यह शोध जर्नल केमिकल रिसर्च टॉक्सिकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है। इसके निष्कर्ष मानव स्वास्थ्य पर माइक्रोप्लास्टिक्स के दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में सवाल उठाते हैं। खासकर उन लोगों के लिए जो पहले ही सांस सम्बन्धी बीमारियों से ग्रस्त हैं।
गौरतलब है कि प्लास्टिक के बड़े टुकड़े टूटकर जब छोटे कणों में बदल जाते हैं, तो उन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। इसके साथ ही कपड़ों और अन्य वस्तुओं के माइक्रोफाइबर के टूटने पर भी माइक्रोप्लास्टिक्स बनते हैं। सामान्यतः प्लास्टिक के 1 माइक्रोमीटर से 5 मिलीमीटर के टुकड़े को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है।
इससे पहले माइक्रोप्लास्टिक पर जर्नल एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित एक शोध से पता चला है कि 18 या उससे छोटी उम्र के बच्चों के टिश्यू में औसतन माइक्रोप्लास्टिक के 8,300 कण जमा हो सकते हैं, जिनका वजन करीब 6.4 नैनोग्राम तक हो सकता है, जबकि 70 वर्ष की आयु तक एक वयस्क के शरीर में औसतन 50,100 माइक्रोप्लास्टिक कण जमा हो सकते हैं, जिनका वजन करीब 40.7 नैनोग्राम तक हो सकता है। ऐसे में इस समस्या की गम्भीरता समझी जा सकती है।
इस शोध से जुड़ी शोधकर्ता किंग-जियांग एमी सांग के अनुसार प्लास्टिक हमारे दैनिक जीवन के लिए बहुत उपयोगी है। लेकिन मनुष्य के रूप में हम स्वस्थ जीवन चाहते हैं, ऐसे में हमें इसके संभावित खतरों को कम करने के तरीकों पर विचार करने की जरुरत है।
इस शोध में शोधकर्ताओं ने पॉलीस्टाइरीन पर ध्यान केंद्रित किया है जो आमतौर पर डिस्पोजेबल कटलरी, डिब्बों और मेडिकल आइटम में उपयोग किया जाता है। यह बहुत मजबूत होता है यही वजह है कि कई वस्तुओं में इसका उपयोग किया जाता है।
कैसे करता है माइक्रोप्लास्टिक कोशिकाओं पर असर
शोध से पता चला है कि एक बार जब यह माइक्रोप्लास्टिक के रूप में शरीर में पहुंच जाता है तो यह कोशिकाओं को खत्म तो नहीं करता पर इसके कारण उनमें कुछ बदलाव आने लगते हैं। जैसे उसके कुछ दिनों के संपर्क से ही कोशिकाओं की मेटाबोलिज्म प्रक्रिया धीमी पड़ गई थी। उसका विकास रुक गया था और उसके आकार में भी बदलाव आ गया था। साथ ही टीम को यह भी पता चला है कि माइक्रोप्लास्टिक के इन कणों ने कोशिका में नाभिक के चारों और एक छल्ला सा बना दिया था।
यह निष्कर्ष एक बार फिर माइक्रोप्लास्टिक्स से स्वास्थ्य के प्रति खतरे को उजागर करते हैं। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए बड़ा खतरा है जो पहले ही फेफड़ों के कैंसर, अस्थमा, निमोनिया, फाइब्रोसिस या क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी सांस की बीमारियों से ग्रस्त हैं।
शोधकर्ताओं के अनुसार माइक्रोप्लास्टिक्स का सेल के नाभिक में पहुंचना अपने आप में दिलचस्प है। शोधकर्ता गुडमैन ने बताया कि हमने केवल 24 घंटों के भीतर ही नाभिक में माइक्रोप्लास्टिक्स को देखा था। हम वास्तव में यह जानना चाहते हैं कि यह टुकड़े वहां क्यों जा रहे हैं और वहां पहुंचने के बाद उनका क्या हो रहा है।
शोधकर्ताओं के अनुसार यह माइक्रोप्लास्टिक लम्बी अवधि में विशेष रूप से बढ़ते शिशुओं और फेफड़ों के रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो सकते हैं। जिस पर और शोध करने की जरुरत है। जिससे मानव स्वास्थ्य पर इनके प्रभावों को बेहतर तरीके से समझा जा सके।