25 नवंबर से दक्षिण कोरिया के बुसान में आयोजित संयुक्त राष्ट्र वैश्विक प्लास्टिक संधि पर वार्ता में नए नियमों को पेश करने का अवसर है। फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, डाईंग रिजीम
प्रदूषण

आईएनसी-5 बुसान: मजबूत प्लास्टिक संधि के लिए समान विचारधारा वाले देशों के बीच सहयोग की है दरकार

अन्य विकासशील देशों के साथ मिलकर, समान विचारधारा वाले देश न केवल अपने हितों की रक्षा कर सकते हैं, साथ ही सशक्त एकजुट रुख का भी समर्थन कर सकते हैं

Siddharth Ghanshyam Singh, Lalit Maurya

दुनिया भर में प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने के लिए वार्ता का दौर दक्षिण कोरिया के बुसान में शुरू हो चुका है। लेकिन जैसे-जैसी वैश्विक संधि पर बातचीत की समय-सीमा एक दिसंबर के करीब पहुंच रही है, ऐसे में पक्षकारों के बीच एकजुटता के बजाए मतभेद उभरने लगे हैं। इससे संधि की मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण की सुरक्षा के उद्देश्यों को पूरा करने की क्षमता पर खतरा पैदा हो गया है।

गौरतलब है कि अंतर-सरकारी वार्ता समिति (आईएनसी-5) की इस पांचवीं बैठक में करीब 140 देशों ने वित्तपोषण और कार्यान्वयन योजनाओं पर प्रस्ताव और दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं।

वहीं अमेरिका के नेतृत्व में विकसित देशों ने 37 देशों का संयुक्त प्रस्ताव प्रस्तुत किया है। इनमें से कई देश उच्च महत्वाकांक्षा गठबंधन (एचएसी) के सदस्य हैं। इसके विपरीत, विकासशील देश अधिक विभाजित दिखाई दिए।

हालांकि अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और द्वीपीय देशों के 90 देशों ने एकजुट होकर एक साझा योजना का प्रस्ताव रखा, लेकिन सऊदी अरब जैसे समान विचारधारा वाले देशों (एलएमसी) ने अलग-अलग प्रस्ताव रखने का विकल्प चुना।

प्रस्तावों में कई बिंदुओं पर है समानता

अपने मतभेदों के बावजूद, विकसित देशों और अफ्रीकी ब्लॉक द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावों में कई बिंदुओं पर समानता है।

इनमें पहला साझा बिंदु है वित्तीय प्रणाली तंत्र स्थापित करना। सभी पक्ष मानते हैं कि इसकी जरूरत है - चाहे यह नए समर्पित बहुपक्षीय कोष के माध्यम से हो या ग्लोबल एनवायरनमेंट फैसिलिटी जैसे मौजूदा फंड के जरिए। पक्षकारों के मुताबिक यह विकासशील देशों की सहायता के लिए आवश्यक है ताकि संधि के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके।

प्रत्येक प्रस्ताव में विकासशील देशों, विशेष रूप से छोटे द्वीपीय देशों (एसआईडीएस) और कमजोर (एलडीसी) की विशिष्ट आवश्यकताओं को भी स्वीकार किया गया है। इन सभी में क्षमता निर्माण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और अतिरिक्त लागतों को कवर करने के लिए समर्थन और विशेष प्रावधानों के महत्व पर जोर दिया गया है।

इसी तरह विकसित और विकासशील दोनों ही देशों के प्रस्तावों में सार्वजनिक वित्तपोषण के साथ-साथ निजी क्षेत्र के समर्थन की भी बात कही गई है। वे आम तौर पर मिश्रित वित्त और सार्वजनिक-निजी भागीदारी जैसे तंत्रों का सुझाव देते हैं।

प्रस्तावों में पार्टियों के सम्मेलन (कॉप) के प्राधिकार के तहत मजबूत प्रशासन की आवश्यकता पर भी सहमति व्यक्त की गई है, ताकि पारदर्शिता, जवाबदेही और वित्तीय प्रणाली की नियमित समीक्षा सुनिश्चित की जा सके।

कई मुद्दों पर अभी भी है तकरार

हालांकि मुख्य लक्ष्यों पर सहमति होने के बावजूद, विवरणों में अभी भी मुख्य अंतर हैं। एक बड़ा अंतर यह है कि क्या वित्तीय प्रणाली एक समर्पित फण्ड होना चाहिए या एक व्यापक तंत्र।

अफ्रीकी समूह, जीआरयूएलएसी और अन्य देशों ने स्थिर और समर्पित वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए एक नए, स्वतंत्र बहुपक्षीय कोष की वकालत की है।

इसके विपरीत, विकसित देश जीईएफ जैसे मौजूदा तंत्रों का लाभ उठाने के पक्ष में हैं। जो अधिक लचीले और कई स्रोतों से धन जुटाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

एक और अंतर यह है कि बढ़ती लागतों से कैसे निपटा जाए।

विकासशील देश, जिनमें अफ्रीकी देश भी शामिल हैं, उनका तर्क है कि सभी अतिरिक्त लागतों को पूरी तरह कवर किया जाना चाहिए। ये वे अतिरिक्त खर्च हैं जो विकासशील देशों को संधि के लक्ष्यों को पूरा करने में उठाने पड़ते हैं, जैसे स्वच्छ तकनीक का उपयोग या अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़े बुनियादी ढांचे का निर्माण करना।

जहां विकसित देश निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के साथ वित्तीय प्रवाह को संरेखित करने पर जोर देते हैं, लेकिन बढ़ती अतिरिक्त लागतों को कवर करने के बारे में वो उतने स्पष्ट नहीं हैं।

असहमति का एक और बिंदु क्लियरिंगहाउस के कार्य हैं।

विकासशील देश क्लियरिंगहाउस के कार्यों की आवश्यकता पर जोर देते हैं, जो तकनीकी सहायता, क्षमता निर्माण और सूचना साझा करने के लिए केंद्र के रूप में कार्य करते हैं। इन कार्यों का उद्देश्य विकासशील देशों में ज्ञान और संसाधन के अंतराल को भरना है, जिससे विकासशील देशों के लिए संधि के लक्ष्यों को हासिल करना आसान हो जाए।

वहीं दूसरी ओर विकसित देश इन कार्यों पर कम तथा वित्तीय प्रणालियों को संरेखित करने पर अधिक ध्यान देते हैं।

एकजुटता में ही है शक्ति

साझा प्रस्ताव आमतौर पर विशेषज्ञता और संसाधनों को एकत्रित करने में सक्षम बनाते हैं, जिससे स्थिति मजबूत और स्पष्ट होती है। ऐसे प्रस्ताव अक्सर बहुपक्षीय वार्ता में अधिक महत्व रखते हैं, जिससे दूसरों पक्ष भी उन्हें गंभीरता से लेने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।

वहीं एकल प्रस्ताव विकसित देशों को लाभ पहुंचा सकते हैं। इनसे उनके लिए विकासशील देशों की एकीकृत मांगों को दरकिनार करना आसान हो जाएगा।

ऐसे में यदि समान विचारधारा वाले देश, अफ्रीकी ब्लॉक के साथ शामिल हो जाते, तो वे स्थिर वित्तपोषण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की मांग को मजबूत कर सकते थे। इससे क्लियरिंगहाउस से जुड़े कार्यों और अतिरिक्त लागतों को कवर करने के लिए ढांचे जैसे सह-विकास तंत्र को विकसित करने में मदद मिलती।

वहीं अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए, समान विचारधारा वाले देशों के बीच मतभेद यह दर्शाते हैं कि आम सहमति तक पहुंचना कितना कठिन है। यह एक ऐसा लक्ष्य है जिसके लिए समान विचारधारा वाले देशों ने प्रत्येक आईएनसी वार्ता में जोर दिया है। यह आपसी सामंजस्य स्थापित करने और विभाजन को रोकने के लिए विचार-विमर्श की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

ऐसे में अपने प्रभाव को बढ़ाने और बेहतर परिणाम पाने के लिए, एलएमसी को वित्त जैसे मुद्दों पर अफ्रीकी ब्लॉक जैसे अन्य विकासशील देशों के साथ मिलकर काम करने पर विचार करना चाहिए। इससे उनकी सौदेबाजी की शक्ति बढ़ जाएगी और वित्तीय मामलों पर एक आवाज उभरेगी।

ऐसे में प्रस्तावों में साझा बिंदुओं जैसे कि अतिरिक्त लागतों को कवर करना, क्लियरिंगहाउस के कार्य, तथा कॉप के अंतर्गत प्रशासन पर ध्यान केंद्रित करने से समझौते की दिशा में गति प्रदान करने में मदद मिल सकती है।

देखा जाए तो जैसे-जैसे दुनिया प्लास्टिक प्रदूषण को जड़ से खत्म करने के लिए एक संधि को अंतिम रूप देने के करीब पहुंच रही है, एलएमसी को अलगाव के बजाय एक साथ मिलकर काम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अन्य विकासशील देशों के साथ मिलकर, वे यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उनके हितों का प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व किया जाए। साथ ही यह एक सशक्त एकजुट रुख बनाने में मदद कर सकता है।

वहीं दूसरी और खंडित दृष्टिकोण से अल्पकालिक लक्ष्य तो हासिल हो सकते हैं, लेकिन इससे मजबूत, निष्पक्ष संधि का बड़ा उद्देश्य कमज़ोर पड़ सकता है। इस वैश्विक प्रयास से वास्तव में लाभ उठाने के लिए, एलएमसी को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए और अकेले चलने की रणनीति से बचना चाहिए।