प्रदूषण

समुद्री जीवों में प्रजनन से लेकर हार्मोनल चक्र तक में गड़बड़ी की वजह बन रहा प्रकाश प्रदूषण

रिसर्च से पता चला है कि कृत्रिम प्रकाश समुद्री जीवों के बीच आपसी व्यवहार से लेकर प्रजनन और हार्मोनल चक्र में बदलाव की वजह बन सकता है

Lalit Maurya

इसमें कोई शक नहीं कि यह इंसानी युग है, जिसमें मानव प्रकृति के बीच की दूरियां बढ़ रही हैं। इंसान प्राकृतिक परिवेश में अपने फायदे के लिए ज्यादा से ज्यादा बदलाव करने में लगा है। ऐसा ही एक बदलाव है कृत्रिम प्रकाश, जिसने दिन-रात के अंतर को दूर कर दिया है। देखा जाए तो अब कृत्रिम प्रकाश, प्रकाश प्रदूषण का रूप ले चुका है, जो अपने आप में एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।

यह प्रदूषण हम इंसानों के साथ-साथ जमीन पर रहने दूसरे जीवों को भी प्रभावित कर रहा है। इनमें जुगनू, और पक्षियों से लेकर हाथी जैसे विशाल जीव भी शामिल हैं। लेकिन क्या यह प्रकाश प्रदूषण समुद्री जीवों पर भी असर डाल रहा है, यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है। इसके प्रभावों को लेकर अब तक की गई ज्यादातर रिसर्च में वैज्ञानिकों ने जमीनी जीवों पर बढ़ते प्रकाश प्रदूषण के प्रभावों को लेकर चिंता जताई है, लेकिन हाल ही में कॉर्नेल विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों ने समुद्री जीवों पर भी इसके प्रभावों को भी उजागर किया है।

इस बारे में किए गए अध्ययन से पता चला है यह कृत्रिम प्रकाश प्रवाल, प्‍लैंकटन, कछुओं और छोटी मछलियों से लेकर विशाल व्हेल तक सभी तरह के समुद्री जीवों पर असर डाल रहा है। जो उनमें प्रजनन से लेकर हार्मोनल चक्र तक में गड़बड़ी की वजह बन रहा है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल एक्वेटिक कंजर्वेशन में प्रकाशित हुए हैं।   

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता कोलीन आर मिलर का कहना है कि, समुद्री जीव प्राकृतिक प्रकाश की तीव्रता और पैटर्न के अनुकूल होने के लिए लाखों वर्षों में विकसित हुए हैं। लेकिन अब उन्हें तटीय क्षेत्रों में प्रकाश प्रदूषण का सामना करना पड़ रहा है।

कैसे समुद्री जीवों को प्रभावित कर रहा कृत्रिम प्रकाश

चांद और तारों की रोशनी अंधेरे में समुद्री जीवों के लिए महत्वपूर्ण संकेत के रूप में काम करती है, जो उनको नेविगेशन में मददगार देती है। वहीं कृत्रिम प्रकाश में उनकी चमक आसानी से धूमिल पड़ सकती है, जो समुद्री जीवों को उनके पथ से भटका सकती है।

इसी तरह समुद्रों में प्रकाश प्रदूषण को लेकर किए अध्ययनों से पता चला है कि यह प्रदूषण प्रजातियों के बीच आपसी व्यवहार से लेकर प्रजनन और हार्मोनल चक्र में बदलाव की वजह बन सकता है। इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण समुद्री कछुए हैं।

मिलर के मुताबिक रात में बढ़ती कृत्रिम रोशनी समुद्री कछुओं के लिए दो तरह से हानिकारक है। पहला मादाएं अपने अंडे देने के लिए तटों के आसपास शांत अंधेरी जगहों की तलाश करती है, लेकिन बढ़ते कृत्रिम प्रकाश के चलते वो किनारे पर नहीं आ पाती। वहीं दूसरी तरफ अंडों से निकले बच्चे चांद की रोशनी की जगह, विपरीत दिशा में कृत्रिम प्रकाश की ओर बढ़ते हैं तो फिर पानी की कमी और भूख के चलते मर जाते हैं।

वहीं जैसे-जैसे एलईडी बल्ब का उपयोग बढ़ रहा है उसके साथ-साथ कृत्रिम प्रकाश की प्रकृति भी बदल रही है। एलईडी में आमतौर पर पुरानी तकनीकों की तुलना में अधिक छोटी तरंग दैर्ध्य वाली रोशनी होती है, जो पानी में गहराई तक प्रवेश कर सकती है। इसकी वजह से यह तटीय क्षेत्रों में गहराई में रहने वाले समुद्री जीवों को प्रभावित कर सकती है।

मिलर के अनुसार प्रवासी पक्षियों की मदद के लिए रात्रि के समय रोशनी को बंद करने से तटीय शहरों के पास दूसरे समुद्री जीवों को भी मदद मिलेगी। इसी तरह लाल रोशनी का उपयोग भी फायदेमंद हो सकता है जो पानी में गहराई तक नहीं पहुंचता है। एक और विकल्प यह है कि हम कृत्रिम प्रकाश को समुद्र तट तक पहुंचने से रोकने के लिए अवरोध भी लगा सकते हैं।

देखा जाए तो प्रकाश प्रदूषण समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिए एक तत्काल चिंता का विषय है क्योंकि समुद्री जीवों का प्राकृतिक पर्यावरण के साथ गहरा नाता होता है। जैसे-जैसे दुनिया एंथ्रोपोसीन की गहराई में आगे बढ़ रही है, उसके चलते इस तरह के खतरे भी बढ़ रहे हैं।

ऐसे में मिलर ने अपने इस अध्ययन में व्यापक पैमाने पर रात्रि के समय कृत्रिम प्रकाश के प्रभावों की जांच के महत्व पर जोर दिया है। उनके मुताबिक बड़े क्षेत्रों में यह कृत्रिम प्रकाश अलग-अलग जीवों को कैसे प्रभावित कर रहा है इसके लिए व्यापक पैमाने पर आंकड़ों की आवश्यकता है। साथ ही इस बात पर भी तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है कि रात में कृत्रिम प्रकाश समुद्री पारिस्थितिक तंत्र को कैसे प्रभावित कर रहा है।