देशभर में वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर और महंगे तेल ने इस बात पर सोचने पर मजबूर कर दिया है कि इसके सही विकल्प की तलाश हो। तभी प्रदूषण और महंगे तेल की बढ़ती विकराल समस्या से निजात मिलगी। इस दिशा में केंद्र सरकार के साथ-साथ कई राज्य सरकारों ने एथेनॉल के लिए नई पॉलिसी बनाई है। ताकि आम लोगों को वायु प्रदूषण के साथ महंगे तेल से राहत मिल सके।
एथेनॉल को ग्रीन फ्यूल कहा जाता है और ऐसा अनुमान है कि आने वाले सालों में यह पेट्रोल और डीजल का विकल्प साबित होगा। यही कारण है कि पेट्रोलियम आयात पर अत्यधिक निर्भरता रोकने के लिए केंद्र सरकार ने एथेनॉल ईधन को अपनाने पर जोर दे रही है। अब इस दिशा में झारखंड राज्य सरकार भी एक अहम कदम उठाने जा रही है।
झारखंड सरकार ने राज्य में एथेनॉल उत्पादन प्लांट लगाने पर 50 करोड़ रुपए तक की सब्सिडी देने की तैयारी कर रही है। इस संबंध में राज्य सरकार ने झारखंड एथेनॉल उत्पादन प्रोत्साहन नीति-2022 के प्रस्ताव तैयार किया है और इसे 21 अक्टूबर को होने वाली राज्य सरकार की केबिनेट बैठक में पास किए जाने की संभावना है।
राज्य सरकार एथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए निवेशकों को 25 प्रतिशत तक कैपिटल सब्सिडी देगी। लघु उद्योगों के लिए यह राशि अधिकतम 10 करोड़ तथा बड़े उद्योगों के लिए 50 करोड़ रुपये होगी।
साथ ही राज्य सरकार एथेनॉल उत्पादन उद्योगों को स्टांप ड्यूटी में 100 प्रतिशत तक की छूट देगी। प्रस्ताव में इस बात की भी व्यवस्था की गई है कि उद्योगों को अपने कर्मचारियों के स्किल डवलपमेंट के लिए प्रति कर्मचारी 13 हजार रुपये की दर से स्किल डवलमेंट सब्सिडी भी प्रदान की जाएगी।
राज्य के एथेनॉल उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि एथेनॉल उद्योग की काफी संभावनाएं हैं। चूंकि एथेनॉल के कच्चे माल के रूप में चावल, मक्का, गन्ना आदि का उत्पादन झारखंड में सरप्लस होता है। इससे इस उद्योग की संभावना झारखंड में अधिक है। ध्यान रहे कि वर्तमान में देश में एथेनॉल का उत्पादन तीन हजार मिलियन लीटर है, जबकि खपत 3,820 मिलियन लीटर है।
यही नहीं नेशनल पॉलिसी ऑन बायोफ्यूल्स के तहत जीएसटी 18 प्रतिशत से घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया गया है।
ध्यान रहे कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जैव ईंधन पर बनी राष्ट्रीय नीति-2018 में संशोधन किया है। अब ईंधन कंपनियों को 2025 से 2030 तक पेट्रोल में एथेनॉल का प्रतिशत बढ़ाकर 20 प्रतिशत करना होगा। यह नीति आगामी एक अप्रैल 2023 से प्रभावी होगी।
नीति आयोग द्वारा जारी 2021 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2025 तक 20 प्रतिशत एथेनॉल सम्मिश्रण से देश को अत्यधिक लाभ मिल सकता है, जैसे कि प्रति वर्ष 30,000 करोड़ विदेशी मुद्रा की बचत, ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि, कार्बन उत्सर्जन में कमी, बेहतर वायु गुणवत्ता, आत्मनिर्भरता, क्षतिग्रस्त खाद्यान्न का बेहतर उपयोग, किसानों की आय में वृद्धि और निवेश के अधिक अवसर प्राप्त होंगे।
प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अनुसार, भारत ने 13 मार्च, 2022 तक 9.45 प्रतिशत एथेनॉल सम्मिश्रण हासिल किया है। केंद्र का अनुमान है कि यह वित्तीय वर्ष 2022 के अंत तक 10 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। सरकार ने पहली बार दिसंबर 2020 में 20 प्रतिशत सम्मिश्रण लक्ष्य को आगे बढ़ाने की अपनी योजना की घोषणा की थी।
10 प्रतिशत सम्मिश्रण के लिए इंजन में किसी भी बड़े बदलाव की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन 20 प्रतिशत मिश्रण में कुछ बदलावों की आवश्यकता हो सकती है और यहां तक कि वाहनों की कीमतों में भी वृद्धि संभव है। सम्मिश्रण के अधिक प्रतिशत का अर्थ यह भी हो सकता है कि गन्ना जैसी पानी आधारित फसलों के लिए अधिक भूमि का उपयोग किया जा रहा है, जिसे सरकार वर्तमान में सब्सिडी देती है।
सरकार ने पहली बार दिसंबर 2020 में 20 प्रतिशत सम्मिश्रण लक्ष्य को आगे बढ़ाने की अपनी योजना की घोषणा की। नीति आयोग वाहनों को अपनाने के आधार पर 2025 तक 10.16 बिलियन लीटर एथेनॉल की मांग करता है।
भारत में मौजूदा एथेनॉल उत्पादन क्षमता 4.26 बिलियन लीटर है, जो शीरा-आधारित डिस्टिलरीज से प्राप्त होती है और 2.58 बिलियन लीटर अनाज-आधारित डिस्टिलरीज से। इसके क्रमशः 7.6 बिलियन लीटर और 7.4 बिलियन लीटर तक बढ़ने की उम्मीद है और 2025 तक प्रति वर्ष छह मिलियन टन चीनी और 16.5 मिलियन टन अनाज की आवश्यकता होगी। भूमि का बढ़ा हुआ आवंटन उस उत्सर्जन में वास्तविक कमी पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है जो पेट्रोल के साथ एथेनॉल मिलाने से होता है।