प्रदूषण

क्या विश्व में घटती प्रजनन दर के लिए जीवाश्म ईंधन के कारण होने वाला प्रदूषण भी है जिम्मेवार

Lalit Maurya

क्या जीवाश्म ईंधन के कारण होने वाला प्रदूषण, वैश्विक स्तर पर प्रजनन दर को भी प्रभावित कर रहा है। बात अटपटी लग सकती है, पर सही है। हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगेन के शोधकर्ताओं द्वारा किए एक शोध से पता चला है कि अन्य कारणों के साथ-साथ जीवाश्म ईंधन के कारण होने वाला वायु प्रदूषण भी प्रजनन दर में आती गिरावट के लिए जिम्मेवार है। इससे जुड़ा शोध अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है। 

वर्तमान में विकसित देश अपनी घटती आबादी को लेकर चिंतित है। सरकार के प्रोत्साहन के बावजूद इटली, जापान और डेनमार्क सहित कई अन्य समृद्ध देश अपनी आबादी को संतुलित कर पाने में नाकाम रहे हैं, जोकि उनके लिए समस्या का एक सबब बन चुका है। वहीं भले ही वैश्विक आबादी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी है पर यह भी सही है कि पिछले कुछ दशकों में वैश्विक प्रजनन दर में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई है।

यूएनएफपीए द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक जहां वैश्विक आबादी 787.5 करोड़ हो चुकी है। वहीं लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि 1950 के बाद से प्रजनन दर करीब आधी हो चुकी है। गौरतलब है कि जहां 1950 में वैश्विक प्रजनन दर 4.7 थी, वो 2017 में घटकर 2.4 रह गई है। भारत में भी 1960 में जहां प्रजनन दर 5.91 थी वो 2019 के लिए विश्व बैंक द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार घटकर 2.2 रह गई है।     

इस गिरती प्रजनन दर के लिए आमतौर पर सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक कारकों को जिम्मेवार ठहराया जाता रहा है। समाज में महिलाओं की बदलती भूमिका, स्वास्थ्य सुविधाओं में आता सुधार, गर्भनिरोधक तरीकों तक बेहतर पहुंच और जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों को प्रमुख रूप से गिरती प्रजनन दर के लिए जिम्मेवार माना जाता है। पर कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता नील्स एरिक स्काकेबेक के अनुसार यह पूरी तस्वीर नहीं है।

इन कारकों के साथ-साथ पर्यावरण से जुड़े कारक भी प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक और निर्णात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। उन्होंने डेनमार्क का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां स्वस्थ डेनिश पुरुषों में सीमेन की गुणवत्ता 50 साल पहले की तुलना में काफी गिर चुकी है। इतना ही नहीं डेनमार्क सहित दुनिया के अन्य देशों में भी टेस्टिकुलर कैंसर के मामलों में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि दर्ज की गई है।  

शोध से पता चला है कि प्रजनन दर में गिरावट का आना औद्योगीकरण के साथ ही शुरू हुआ था जब उद्योगों में बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन को जलाने की शुरुआत हुई थी। ऐसे में शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इन जीवाश्म ईंधनों के कारण होने वाला प्रदूषण शुक्राणुओं की संख्या में आती गिरावट का कारण हो सकता है, जो मानव प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है।

स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं रोजमर्रा में उपयोग होने वाले उत्पाद

शोधकर्ताओं के मुताबिक आज दुनिया में जितना भी जीवाश्म ईंधन खपत किया जा रहा है उसका करीब 10 फीसदी किसी न किसी रूप में हमारे आसपास मौजूद है, जिसमें खिलौनों से लेकर कपड़े, सौंदर्य प्रसाधन, भोजन, पैकेजिंग और निर्माण सामग्री तक अनगिनत उत्पाद शामिल हैं, इन उत्पादों में केमिकल के साथ जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया जाता है। 

इनमें से कई पदार्थ ऐसे हैं जो हमारे शरीर में अंतः स्रावी ग्रंथियों (एंडोक्राइन) को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकते हैं। गौरतलब है कि यह ग्रंथियां शरीर में हार्मोन को पैदा करती हैं। जिसका अर्थ है कि यह केमिकल शरीर के पूरे हार्मोनल सिस्टम को खराब कर सकते हैं, जो प्रजनन क्षमता पर भी असर डाल सकते हैं।

यह पदार्थ ऐसे हैं जो रोजमर्रा में उपयोग किए जाते हैं ऐसे में इनके संपर्क में आने का खतरा भी काफी बढ़ जाता है। गौरतलब है कि जीवाश्म ईंधन के यह अंश लोगों के यूरिन, रक्त, दूध, शुक्राणु और फैटी टिश्यू में भी पाए गए हैं।

ऐसे में जरुरी है कि जितना हो चुके इन जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कमी की जाए और इससे होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित किए जाए। साथ ही लोगों को चाहिए कि वो ऐसे उत्पादों के उपयोग से बचें, जिनमें मौजूद केमिकल उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके लिए जरुरी है कि सरकार इन उत्पादों के लिए मानक निर्धारित करे।