प्रदूषण

खतरनाक हो सकती है चर्म-शोधन कारखानों के अपशिष्‍ट जल से सिंचाई

लंबे समय तक अपशिष्ट जल से सिंचाई करने पर कानपुर के कई इलाकों की मिट्टी में हानिकारक धातुओं की मात्रा बढ़ गई है।

Umashankar Mishra

पानी की कमी के चलते अ‍पशिष्‍ट जल का उपयोग दुनिया भर में सिंचाई के लिए होता है। लेकिन ऐसा करना मिट्टी और भूमिगत जल की सेहत के लिए ठीक नहीं है। कानपुर में चमड़े का शोधन करने वाली इकाइ‍यों से निकले अपशिष्‍ट जल से सिंचित कृषि क्षेत्रों की मिट्टी एवं भूजल के नमूनों का अध्‍ययन करने के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं।

शोधकर्ताओं के अनुसार चर्म-शोधन इकाइयों से निकले अपशिष्‍ट जल से लंबे समय तक सिंचाई करने से हानिकारक धात्विक तत्‍व मिट्टी और भूमिगत जल में जमा हो जाते हैं। भोपाल स्थित मृदा विज्ञान संस्‍थान के शोधकर्ताओं के अनुसार लंबे समय तक चर्म-शोधन इकाइयों से निकले अपशिष्ट जल का उपयोग सिंचाई के लिए करने से कानपुर के कई इलाकों की मिट्टी में हानिकारक धातुओं की मात्रा बढ़ गई है, जिसमें क्रोमियम की मात्रा सबसे अधिक पाई गई है।

अध्‍ययन के दौरान चमडे़ का शोधन करने वाली औद्योगिक इकाइयों से निकले अपशिष्‍ट जल, भूमिगत जल और मिट्टी के नमूने उन कृषि क्षेत्रों से एकत्रित किए गए थे, जहां इस प्रदूषित पानी से सिंचाई की जाती है। अपशिष्‍ट जल से सिंचित क्षेत्र के नमूनों की तुलना अन्‍य इलाकों की मिट्टी और भूमिगत जल के नमूनों से की गई। भूमिगत जल के कुछ नमूनों में क्रोमियम की मात्रा संयुक्‍त राष्‍ट्र की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के मानकों से काफी अधिक पाई गई है। यह अध्‍ययन ‘बुलेटिन ऑफ एन्‍वायरमेंटल कन्‍टैमिनेशन ऐंड टॉक्सिलॉजी’ में प्रकाशित किया गया है। 

शोधकर्ताओं की टीम में शामिल एम.एल. दोतानिया के अनुसार ‘चर्म-शोधन इकाइयां पर्यावरण में क्रोमियम के प्रवाह का प्रमुख स्रोत हैं और चर्म-शोधन उद्योग में उपयोग होने वाले कुल क्रोमियम का करीब 40 प्रतिशत हिस्‍सा पर्यावरण में हानिकारक तत्‍व के रूप में सीधे निस्‍तारित कर दिया जाता है।

शोधकर्ताओं द्वारा तैयार किए गए भू-संचय सूचकांक से पता चलता है कि मिट्टी के कुछ नमूनों में कॉपर, निकिल, जिंक, कैडमियम और लेड जैसी धातुओं का स्‍तर सामान्‍य से अधिक था। चर्म-शोधन इकाइयों से निकाले अपशिष्‍ट जल के नमूनों में कैडमियम का मामूली स्‍तर पाया गया है, जबकि क्रोमियम की मात्रा सबसे अधिक थी। अपशिष्‍ट जल का उपचार करके निस्‍तारित करना काफी खर्चीली प्रक्रिया है।

शोधकर्ताओं के अनुसार घरेलू अथवा छोटी औद्योगिक इकाइयों से निकले अपशिष्‍ट जल को बिना उपचारित किए सीधे छोड़ दिया जाता है, जिससे मिट्टी एवं जल प्रदूषित होता है।

कानपुर को "लेदर सिटी" के नाम से भी जाना जाता है। भारत के कई बड़े चर्म-शोधन कारखाने यहीं पर स्थित हैं। यहां चर्म-शोधन इकाइयों से निकले अपशिष्‍ट जल का उपयोग सिंचाई के लिए करने से मिट्टी में कुल क्रोमियम का स्‍तर सामान्‍य कृषि क्षेत्रों की मिट्टी की अपेक्षा 28-30 गुना अधिक पाया गया है। कानपुर और इसके आसपास के इलाकों में लंबे समय से मिट्टी और भूमिगत जल प्रदूषित होने के कारण यहां फसलों की उपज में कमी आई है और कुल फसल क्षेत्र भी घटा है।

चमड़े का शोधन करने वाली इकाइयों से निकले अपशिष्‍ट जल में घुलनशील रासायनिक ऑक्‍सीजन, जैव रासायनिक ऑक्‍सीजन, कार्बोनेट, क्‍लोराइड, कैल्शियम और क्रोमियम की मात्रा भारतीय मानक ब्‍यूरो (बीआईएस) के तय मापदंड से अधिक पाई गई है। इसलिए चर्म-शोधन कारखानों से निकले अपशिष्‍ट जल का उपयोग सिंचाई के लिए करना ठीक नहीं है क्‍योंकि इसका सीधा असर पर्यावरण और मानवीय स्‍वास्‍थ्‍य पर भी पड़ता है।

मिट्टी में लवण और धातुओं की सांद्रता बढ़ने से उसकी गुणवत्‍ता कम हो सकती है और और इसका सीधा असर खाद्य श्रृंखला पर भी पड़ सकता है। अध्‍ययनकर्ताओं के मुताबिक ‘इस समस्‍या से निजात पाने के लिए अपशिष्‍ट जल का उपचार करने वाले संयंत्रों की नियमित निगरानी जरूरी है। यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरण में इन अपशिष्‍टों को को निस्‍तारित करने से पहले नियमों का पूरी तरह से पालन किया जाए। इसके साथ-साथ लोगों को जागरूक करना भी जरूरी है, ताकि अपशिष्‍ट जल का उपयोग सिंचाई में करने से रोका जा सके।’
(इंडिया साइंस वायर)