प्रदूषण

अगली पीढ़ियों का भी इम्यून सिस्टम बिगाड़ सकता है औद्योगिक प्रदूषण: वैज्ञानिक

Dayanidhi

नए शोध से पता चला है कि औद्योगिक प्रदूषण मां की कोख में पल रहे बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम को नुकसान पहुंचा सकता है और इस नुकसान का प्रभाव बाद की पीढ़ियों तक पहुंच जाता है, जिससे इनके शरीर में इन्फ्लूएंजा वायरस जैसे संक्रमणों से लड़ने की क्षमता कमजोर हो जाती है।  

इस अध्ययन का नेतृत्व पैगे लॉरेंस द्वारा किया गया था, जो रोचेस्टर मेडिकल सेंटर (यूआरएमसी) के पर्यावरण चिकित्सा विभाग में है। यह शोध सेल प्रेस जर्नल आईसाइंस में प्रकाशित हुआ है। यह शोध चूहों पर किया गया था, जिनकी रोग प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) मनुष्यों के समान होते हैं।

लॉरेंस ने कहा कि एक पुरानी कहावत है कि 'जैसा आप खाएंगे, आपके शरीर पर उसका वैसा ही प्रभाव दिखेगा', वह मानव स्वास्थ्य के कई पहलुओं पर लागू होता है। लेकिन शरीर के संक्रमणों से लड़ने की क्षमता के संदर्भ में, यह अध्ययन बताता है कि एक निश्चित सीमा तक आप भी उसी तरह के हो सकते हैं, अर्थात पीढ़ी–दर–पीढ़ी आसानी से संचरित होने वाले मौलिक गुण (जिन्हें आनुवांशिक गुण कहा जाता है) का आप में भी होना स्वाभाविक है, जैसे कि आपकी दादी-नानी आदि हैं।

जबकि अन्य अध्ययनों से पता चला है कि प्रदूषकों के वातावरण में फैलने तथा इनके संपर्क में आने से कई पीढ़ियों में प्रजनन, श्वसन और तंत्रिका तंत्र के कार्य पर प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन पहली बार नए शोध से पता चलता है कि इससे प्रतिरक्षा प्रणाली अर्थात शरीर के रोगों से लड़ने की क्षमता भी प्रभावित होती है। 

लॉरेंस ने कहा जब आप संक्रमित होते हैं या आप पर फ्लू का टीका लगाया जाता है, तो आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है। यह विशिष्ट प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएं विकसित होती हैं, जो शरीर को संक्रमण से लड़ने की क्षमता बढ़ाती है। लेकिन अध्ययन के दौरान पाया गया कि चूहों की कई पीढ़ियों में श्वेत रक्त कोशिकाएं विकसित नहीं हो पाती, इसका मतलब है कि आपका शरीर संक्रमण से नहीं लड़ सकता है और आप बीमार हो सकते हैं।

अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने गर्भवती चुहियों पर डाइऑक्सिन नामक एक रासायनिक के प्रभाव का प्रयोग किया, जो सामान्यतः औद्योगिक प्रदूषण के कारण वातावरण में पाया जाता है। डाइऑक्सिन,  पॉलीक्लोराइनेटेड बिपेनिल्स (पीसीबी) की तरह है, जो औद्योगिक उत्पादन और अपशिष्ट से उत्पन्न होता है और यह कुछ उपयोग होने वाले उत्पादों में भी पाया जाता है। ये रसायन भोजन प्रणाली में चले जाते हैं और लोग इनका उपभोग कर लेते हैं। डाइऑक्सिन और पीसीबी जैव-संचय करते हैं क्योंकि वे खाद्य श्रृंखला को आगे बढ़ाते हैं और पशु-आधारित खाद्य उत्पादों में अधिक पाए जाते हैं।

वैज्ञानिकों ने साइटोटोक्सिक-टी कोशिकाओं के विकास और कार्य को देखा। श्वेत रक्त कोशिकाएं शरीर को बाह्य रोगाणुओं जैसे वायरस और बैक्टीरिया से बचाने और नष्ट हुई कोशिकाओं तक पहुंच कर उन्हें बदल देती हैं। लेकिन ये कोशिकाएं अगर नष्ट हो जाएं तो कैंसर का कारण बन सकती हैं। इसका पता तब चला, जब चूहों को इन्फ्लूएंजा ए-वायरस से संक्रमित किया गया।

रोगों से लड़ने की यह कमजोर क्षमता न केवल उन चूहों की संतानों में देखी गई, जिनकी मां रासायनिक डायोक्सिन के संपर्क में थी, अपितु इसके बाद की पीढ़ियों में भी यह देखी गई, जहां तक पोते-पोतियों में भी इसके लक्षण बराबर दिखाई देते हैं। शोधकर्ताओं ने इसके प्रभाव को चुहियों में अधिक स्पष्ट पाया।